Kanyakumari / कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। यह ऐसी जगह हैं जहाँ अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी का सुंदर संगम होता है। भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी केवल एक नगर ही नहीं बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। देश के मानचित्र के अंतिम छोर पर होने के कारण अधिकांश लोग इसे देख लेने की इच्छा रखते हैं। यह प्रायद्वीपीय भारत का सबसे बड़ा दक्षिणी द्वीप है।
कन्याकुमारी शहर की जानकारी – Kanyakumari, Tamil Nadu Information in Hindi
नाम | कन्याकुमारी (Kanyakumari) |
राज्य | तमिलनाडु |
ज़िला | कन्याकुमारी |
क्षेत्रफल | 26 कि.मी² |
जनसंख्या | 19, 678 (2001 से) |
भौगोलिक स्थिति | 8° 4′ 40.8″ उत्तर, 77° 32′ 27.6″ पूर्व |
कब जाएँ | अक्टूबर से फरवरी |
कहाँ ठहरें | होटल एवं धर्मशालाओं में ठहरा जा सकता है। |
एस.टी.डी. कोड | 91-4651 और 91-4652 |
भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। यहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है। कन्याकुमारी में समुद्र के बीचोंबीच चट्टान पर विवेकानंद स्मारक यहाँ की पहचान है। यहाँ हर साल आध्यात्म के इस सूर्य स्मारक के दर्शन करने हजारों लोग आते हैं। कन्याकुमारी में समुद्र के बीचोंबीच चट्टन पर विवेकानंद स्मारक यहाँ की पहचान है।
तमिलनाडु के कन्याकुमारी को पहले केप कोमोरन के नाम से जाना जाता था। ये एक शांत शहर है। शहर का नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर पड़ा है, जिन्हें माता पार्वती का अवतार माना गया है। यह जगह चोला, चेरा, पण्ड्या और नायका राज्यों का घर रहा है। कला और धर्म-संस्कृति का पुराना गढ़ है। कन्याकुमारी में तीन समुद्रों-बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता है। इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है।
कन्याकुमारी में देखने लायक बहुत सारे स्थान हैं। भारत के दक्षिणी छोर पर बसा कन्याकुमारी हमेशा से ही पर्यटकों की पसंदीदा जगह रही है। हर साल कन्याकुमारी पहुंचने वाले देसी-विदेशी पर्यटकों की संख्या लगभग 20 से 25 लाख के बीच रहती है।
कन्याकुमारी से जुड़ी कथा – Kanyakumari Story in Hindi
इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बाणासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को पार्वती देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी इच्छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी।
लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बाणासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बाणासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बाणासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है।
ऐसा भी माना जाता है कि शादी के लिये एकत्रित किये गये अनाज बिना पकाये ही छोड़ दिया गया और सब पत्थरो में बदल गये। आज भी यात्री कभी न आयोजित हुई इस शादी की स्मृति में इन अनाज की तरह दिखने वाले पत्थरों को खरीद सकते हैं।
कन्याकुमारी शहर का इतिहास – Kanyakumari History in Hindi
कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान् शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इसके तुरन्त बाद शहर वेनाद वंश के शासकों के अधीन हो गया। उस दौरान शहर की राजधानी पद्मनाभपुरम में स्थित थी। 1729 ई0 से 1758 ई0 के बीच वेनाड शासक अनिझम थिरूनल मरथंडा वर्मा ने ट्रैवेनकोर की स्थापना की और आज का जो क्षेत्र कन्याकुमारी जिले के अन्तर्गत आता है, वह प्रसिद्ध दक्षिण ट्रैवेनकोर था।
परावार राजाओं के शासनकाल के बाद 1947 ई0 में भारत की स्वतन्त्रता तक शहर पर अंग्रेजों के अधीन ट्रैवेनकोर के राजाओं का शासन रहा। 1947 ई0 में ट्रैवेनकोर को भारतीय गणराज्य का स्वशासित भाग माना जाता था और ट्रैवेनकोर राजाओं का शासन समाप्त हो गया। कन्याकुमारी केवल अपने धार्मिक और कला के कन्द्रों के लिये ही नहीं प्रसिद्ध रहा है बल्कि कई सदियों से यह वाणिज्य और व्यापार के लिये भी प्रसिद्ध रहा है।
कन्याकुमारी के लोग और संस्कृति – Kanyakumari Culture in Hindi
कन्याकुमारी हजारों साल से अपनी कला, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। यहाँ तमिल एवं मलयालम भाषा बोली जाती है। लेकिन पर्यटन स्थल होने के कारण हिन्दी एवं अंग्रेज़ी जानने वाले लोग भी मिल जाते हैं। शहर में ईसाई, इस्लाम और हिन्दू धर्मो का मिश्रण देख सकते हैं और इसीलिये यह स्थान अपनी मिश्रित संस्कृति के लिये प्रसिद्ध रहा है। अपने विस्तृत सांस्कृतिक विरासत के कारण कन्याकुमारी सदियों से हजारों की संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।
सुन्दर गिरजाघर, मन्दिर, मूर्तियाँ और धार्मिक स्तम्भ यात्रियों का ध्यान आकर्षित करते हैं। शहर की मिश्रित संस्कृति झलक यहाँ के निर्माण, कला और खानपान में भी दिखती है। कन्याकुमारी का पारम्परिक नृत्य शैली प्रसिद्ध कथकली है। यहाँ आयोजित होने वाले कुछ प्रमुख त्यौहारों में कैथोलिक चर्च का वार्षिक उत्सव, नवरात्रि और चैत्र पूर्णिमा हैं।
कन्याकुमारी के प्रसिद्द दर्शनीय स्थल – Kanyakumari Tourist Place Information in Hindi
1). कन्याकुमारी अम्मन मंदिर – Kanyakumari Temple
सागर के मुहाने के दाई और स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। हिंदू पौराणिक कथाओं में 108 शक्ति पिठों में से एक है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यह मंदिर भारत भर के प्रमुख हिंदू मंदिरों में से एक है और लगभग सभी प्राचीन हिंदू शास्त्रों में इसका उल्लेख किया गया है। मंदिर में हर साल हजारों तीर्थयात्रियों ने यात्रा की है और मंदिर की वास्तुकला भी अद्वितीय है। मंदिर 3000 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस मंदिर को भगवान परशुराम ने स्थापित किया था।
2). महात्मा गांधी स्मारक – Mahatma Gandhi Smarak
यह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है। इसकी संरचना मंदिर, मस्जिद और चर्च के मिले-जुले आकार वाली है।
3). पद्मनाभापुरम पैलेस – Padmanabhapuram Palace
प्राचीन ग्रेनाइट किला त्रावणकोर शासकों का निवास था और इसका निर्माण 1601 ईस्वी के आसपास हुआ था। किले परिसर में किंग की काउंसिल चैंबर, थाई कोट्टाराम या माता के महल और नाटकिका या प्रदर्शन के घर जैसे कई महत्वपूर्ण इमारतों को शामिल किया गया है। किले के पास एक छोटा सा संग्रहालय भी है जिसमें पुराने समय से कई कलाकृतियों और तलवारें और खंजर, चित्रकारी, चीनी जार और लकड़ी के फर्नीचर के बहुत सारे हथियार शामिल हैं।
4). तिरूवल्लुवर मूर्ति – Thiruvalluvar Statue
तिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।
5). विवेकानन्द रॉक मेमोरियल – Vivekananda Rock Memorial
समुद्र के बीच में इसी जगह पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था। यहां उनकी विशाल आदमकद मूर्ति है। कहा जाता है कि समुद्र के बीचोंबीच बनी इसी चट्टान पर विवेकानंद जी अपनी साधना और मनन-चिंतन किया करते थे। यहाँ तक पहुंचने के लिए स्टीमर या नौका की सहायता लेनी पड़ती है।
6). नागराज मंदिर – Nagraj Temple
सुचिंद्रम से 8 किलोमीटर दूरी पर नागरकोविल शहर है। यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर चीन की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहाँ नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमा उकेरी नज़र आती है। नागरकोविल एक छोटा-सा व्यावसायिक शहर है। इसलिए यहाँ हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
7). सूर्योदय और सूर्यास्त
कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को अरब सागर में डूबते सूर्य को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर क़रीब दो-तीन किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वाइंट भी है।
8). सुविन्द्रम – Suchindram
एक मंदिर शहर, सुचितंदम कन्याकुमारी शहर से 11 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां के मंदिर विशिष्ट द्रविड़ शैली में बने हैं और बड़े पैमाने पर गोपुरों के साथ सजे हुए हैं जो सभी द्रविड़ मंदिरों की एक सामान्य विशेषता हैं। उच्चतम गोपुरम 134 फीट ऊंचा है और मंदिरों के अंदर कई अति सुंदर रॉक कट स्तंभ और गेटवे खेल रहे हैं। एक प्राचीन मंदिर शहर होने के नाते यह प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों द्वारा अक्सर जाता है।
9). गुगनाथस्वामी मंदिर – Guganathaswamy Temple
इस मंदिर को यहाँ का प्राचीन और ऐतिहासिक हस्ताक्षर माना जाता है। यह मंदिर यहाँ के चोल राजाओं ने बनवाया था। पुरातत्व की दृष्टि से बेहद खूबसूरत यह मंदिर लगभग हजार साल पुराना माना जाता है।
10). सर्कुलर फ़ोर्ट – Circular Fort
कन्याकुमारी से 6 – 7 किलोमीटर दूर वट्टाकोटाई क़िला यानी सर्कुलर फ़ोर्ट है। काफ़ी छोटा और बहुत ख़ूबसूरत यह क़िला समुद्र के रास्ते से आने वाले दुश्मनों पर निगाह रखने के लिए राजा मरतड वर्मा द्वारा बनवाया गया था। इस क़िले के ऊपर से वट्टाकोटाई बीच का नज़ारा काफ़ी ख़ूबसूरत है।
कन्याकुमारी कैसे पहुँचें – Kanyakumari Tour & Travels Guide in Hindi
तिरूवनन्तपुरम हवाईअड्डा शहर के सबसे नदजीक है। हवाइअड्डे से पर्यटक बाहर निकलकर टैक्सी, रेल या बस लेकर कन्याकुमारी पहुँच सकते हैं। कन्याकुमारी के अन्दर आप ऑटो-रिक्शा या बस लेकर यात्रा कर सकते हैं। आप किराये की निजी टैक्सी भी ले सकते हैं।
इस शहर में आने का सबसे बढ़िया समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का होता है और इस दौरान मौसम बहुत सुहावना होता है। जून से अगस्त के दौरान बारिश का समय होने के कारण यहाँ आने से बचना चाहिये।
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