Ascites ka Ilaj – जलोदर रोग (एसाइटिस) में उदार में जल इकट्ठा हो जाता है और पेट का आकार बढ़ जाता है। इस रोग में पानी किसी भी तरह से यानि मुख या मूत्र के मार्ग से बाहर नहीं आ पता है और फिर रोगी को चलने.फिरने और उठने-बैठने में बहुत दर्द होता है। जलोदर अपने आप में कोई रोग नहीं है। यह गुर्दे की बीमारी, दिल की बीमारी, प्लीहा रोग और रक्तवाहिकाओं आदि बीमारियों के होने का लक्षण है।
ऐसी स्थिति में उल्टी जी मिचलाना, पतला मल आना, पेट फूलना आदि शिकायतें उत्पन्न हो जाती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के जिगर, ह्रदय, आँख और गुर्दों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। इसका मुख्य कारण अजीर्ण एवं कब्ज से होता है।
जलोदर के प्रकार – Types Of Ascites In Hindi
जलोदर मुख्यरूप से 6 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं –
- हेपाटिक : जो लीवर सिरोसिस जैसी लीवर संबंधी दिक्कतों के चलते होता है।
- कार्डियोजेनिक : जलोदर का यह प्रकार कंजेस्टिव कार्डियेक फेलियर (हृदय की पम्प करने की क्षमता का कमजोर होना) और कंस्ट्रक्टिव पेरिकार्डिटिस की स्थिति में हो सकता है।
- नेफ्रोजेनिक : किडनी संबंधी विकार होने की स्थिति में जलोदर का यह प्रकार होने की आशंका अधिक रहती है।
- मैलिग्नेंट : शरीर के विभिन्न अंगों में कैंसर होने की स्थिति में जलोदर का यह प्रकार सामने आ सकता है।
- इन्फेक्शियस एसाइटिस : बैक्टीरिया, फंगल या पैरासाइट इंफेक्शन के कारण होता हैं। जैसे, क्लैमाइडिया
- मिस्लीनियस एसाइटिस : जलोदर का यह प्रकार लिपिड, पित्त तरल और ओवरी से जुड़ी समस्या के कारण देखने को मिल सकता है।
जलोदर के कारण – Causes Of Ascites in Hindi
जलोदर का मुख्य कारन अधिक दबाव और एल्ब्यूमिन प्रोटीन की कमी से होता हैं। इसके आलावा-
- जलोदर लिवर के पुराने रोग से उत्पन्न होता है।
- इसके आलावा घी खाने, उल्टी करके के बाद ठंडा पानी पीने से, यकृत की धमनी में अधिक दबाव बढ़ जाने से प्लीहा (तिल्ली), वृक (किड़नी), हृदय, स्वरयंत्र (गला), कैंसर, ब्लड वैस्लस, कैकेक्सिया, क्षय (टी.बी.) आदि के कारण भी यह रोग होता हैं।
- खून में एल्ब्युमिन के स्तर में गिरावट होने का भी जलोदर से संबंध रहता है।
- लंबे समय से शराब का सेवन करने के कारण भी हो सकता हैं।
- एक कारण किडनी डायलिसिस भी हैं।
- पेरिटोनियम (पेट के अंदरूनी अंगों को ढ़कने वाली दो परतों से बनी झिल्ली)
जलोदर के लक्षण – Symptoms Of Ascites in Hindi
जलोदर में थकान, जी मचलाना, दम फूलना, थकान महसूस होना, भूख न लगना और कब्ज की समस्या होती है। इसके आलावा –
- पेट का फूलना
- पेट में दर्द होना
- सांस में तकलीफ
- टांगों की सूजन
- बेचैनी और भारीपन मेहसूस होना
- नाभि का बाहर निकलना
- पेशाब कम आना
- कमजोरी होना
- चलने-फिरने में तकलीफ का अनुभव
जलोदर का घरेलु उपचार – Jalodar ka Gharelu Ayurvedik Ilaj
⇒ शुद्ध पारद 5 ग्राम, शुद्ध गंधक 10 ग्राम, मैनसिल, हल्दी, दूध जमालगोटा, हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, पीपल, कालीमिर्च, चित्रक छाल 5 ग्राम तथा दंतिमूल का काढ़ा, थूहर का दूध और भांगरे का रस आवश्यकता के अनुसार खरीद लाए। फिर पारद और गंधक को मिलाकर खूब घोटे। कज्जली हो जाने पर मैनसिल मिलाकर रख दे। शेष सभी चीजों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और अन्य वस्तुए मिला ले। अब पहले दंतिमूल कड़े की, फिर थूहर के दूध की और अंत मे भांगरा के रस की भावना देकर एक-एक रक्ति की गोली बनाकर सूखा ले। एक -एक गोली सुबह शाम दशमूल काढ़े, पानी या गर्म दूध के साथ रोगी को दे।
⇒ शिरीष की छाल दो भाग, हल्दी, नीम की छाल, बायविडंग के बीज के बीज, गोखरू, आंवला, नागरमोथा एवं पुनरनर्व एक-एक भाग (कुल मिलाकर 20 ग्राम) को 1 लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक वह एक चौथाई ना रह जाए। इस काढ़े की आधी मात्रा सुबह और आधी शाम को लेने से जलोदर के रोगी ठीक हो जाते हैं।
⇒ करेला का जूस 30-40 मिली आधा गिलास जल में दिन में तीन बार पियें। इससे जलोदर रोग निवारण में अच्छी मदद मिलती है।
⇒ एक चम्मच खाने का मीठा सोडा,एक कप ताजे गौमूत्र में छानकर पीने से जलोदर रोग शांत हो जाता है। इसे दिन में एक ही बार लेना चाहिए।
⇒ डेढ़ सौ ग्राम पानी में लहसुन के रस की आठ बूंदें मिलाकर पीने से जलोदर रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
⇒ देसी चना करीब 30 ग्राम 300 मिली पानी में उबालें कि आधा रह जाए। ठंडा होने पर छानकर पियें। 25 दिन जारी रखें।
⇒ जलोदर रोगी को पानी की मात्रा कम कर देना चाहिये। शरीर के लिये तरल की आपूर्ति दूध से करना उचित है। लेकिन याद रहे अधिक तरल से टांगों की सूजन बढेगी।
⇒ छाछ और गाजर का रस उपकारी है। ये शक्ति देते हैं और जलोदर में तरल का स्तर अधिक नहीं बढाते हैं।
⇒ आधा कप पानी में मूली के पत्तों का रस मिलाकर तीन टाइम पीते रहने से जलोदर रोग से मुक्ति मिलती है।
⇒ काली मिर्च, सौंठ और पीपली का थोड़ा-थोड़ा चूर्ण को छाछ में डालकर पीने से जलोदर की बीमारी ठीक होती है।
⇒ खाना खाने के बाद हमेशा पचास ग्राम की मात्रा में गुड़ खाते रहने से जलोदर की बीमारी में फायदा मिलता है।
⇒ ज्योतिष्मती का तेल 10 से 15 बूंदो को सुबह और शाम दूध में थोड़ी-सी मात्रा में भूनी हींग और जवाखार आदि को मिलाकर देने से जलोदर में आराम होगा।
⇒ नील की जड़ का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक की मात्रा में सुबह और शाम खुराक के रूप में लेने से पेट साफ होकर जलोदर समाप्त हो जाता है।
इन बातों का ध्यान रखे – Ascites in Hindi
⇒ गर्मियों के मौसम में रोज खरबूजे का सेवन करने से जलोदर रोग ठीक होता है।
⇒ इस रोग का उपचार करने के लिए रोगी को ऐसे पदार्थ अधिक खाने चाहिए जिनसे कि पेशाब अधिक मात्रा में आए तथा पेशाब साफ हो। जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को अपनी पाचनक्रिया को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए क्योंकि जब पाचनक्रिया ठीक हो जाएगी तभी यह रोग ठीक हो सकता है।
⇒ इस रोग से पीड़ित रोगी को पानी पीना बंद कर देना चाहिए तथा भोजन भी बंद कर देना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति को प्यास लग रही हो तो उसे दही का पानी, मखनियां, ताजा मट्ठा, फलों का रस तथा गाय के दूध का मक्खन देना चाहिए। इसके अलावा रोगी को और कुछ भी सेवन नहीं करना चाहिए।
⇒ जलोदर पीड़ित व्यक्ति को भोजन में चने का सूप, पुराने चावल, ऊंटडी का दूध, सलाद, लहसुन, हींग को समुचित स्थान देना चाहिये।
⇒ जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में सूर्य के प्रकाश के सामने बैठकर पेट की सिंकाई करनी चाहिए। यह क्रिया कम से कम आधे घण्टे के लिए करनी चाहिए। उपचार करते समय रोगी व्यक्ति को नारंगी रंग का शीशा अपने पेट के सामने इस प्रकार रखना चाहिए कि उससे गुजरने वाले नीले रंग का प्रकाश सीधा पेट पर पड़े।
डिस्क्लेमर: यह घरेलु उपचार और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।