Shani Shingnapur / शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिला में स्थित शनिदेव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर शिंगणापुर गांव में स्थित हैं। माना जाता है इस गाँव के राजा शनिदेव हैं, इसलिए यहाँ कभी चोरी नहीं होती। इस गाँव के लोग अपने घर में ताला नहीं लगाते हैं, लेकिन उनके घर से कभी एक कील भी चोरी नहीं होती। श्रद्धालु बताते हैं कि गांव में हर व्यक्ति स्वयं को भय से मुक्त समझता है। यहां के कण-कण में शनिदेव व्याप्त हैं।
शनि शिंगणापुर की जानकारी – Shani Shingnapur Information in Hindi
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव न्याय के देवता हैं। वे हर जीव-जंतु को उसके कर्म देखकर फल देते हैं। पूरे भारत में शनि महाराज के दो प्रमुख निवास स्थान हैं जिनमें एक मथुरा के पास स्थित कोकिला वन है और दूसरा महाराष्ट्र के शिंगणापुर धाम। इनमें शिंगणापुर का विशेष महत्व है। यहां पर शनि महाराज की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि एक बड़ा सा काला पत्थर है जिसे शनि का विग्रह माना जाता है।
शनि के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए देश विदेश से लोग यहां आते हैं और शनि विग्रह की पूजा करके शनि के कुप्रभाव से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि यहां पर शनि महाराज का तैलाभिषेक करने वाले को शनि कभी कष्ट नहीं देते। मंदिर में आने वाले भक्त अपनी इच्छानुसार यहां तेल का चढ़ावा भी देते हैं।
यहां घर और प्रत्येक व्यक्ति पर उनकी नजर है। इसलिए जो भी व्यक्ति गलती करता है, उसे उसका फल जरूर मिल जाता है। गांव में चोरी और बुरी नीयत से प्रवेश करने वाला व्यक्ति तो अतिशीघ्र दंड भोगता है। अत: लोग घरों पर ताले न लगाकर भी बेखौफ रहते हैं।
शनि मंदिर का इतिहास – Shani Shingnapur Temple History in Hindi
पौराणिक कथा के अनुसार लगभग 300 साल पहले शिंगणापुर में बहुत तेज बारिश हुई जिससे वहां बाढ़ आ गई। लोगों का कहना है कि उस भयंकर बाढ़ के दौरान कोई दैवीय ताकत पनासनाला नदी के पानी में बह रही थी। जब पानी का स्तर कुछ कम हुआ तो एक व्यक्ति ने पेड़ की झाड़ पर एक बड़ा सा पत्थर देखा। जोकि एक शिला था।
ऐसा अजीबोगरीब पत्थर उसने आज तक नहीं देखा था, तो लालचवश उसने उस पत्थर को बीचे उतारा और उसे तोड़ने के लिए जैसे ही उसमें कोई नुकीली वस्तु मारी उस पत्थर में से खून बहने लगा। यह देखकर वह वहां से भाग खड़ा हुआ और गांव वापस लौटकर उसने सब लोगों को यह बात बताई।
सभी दोबारा उस स्थान पर पहुंचे जहां वह पत्थर रखा था, सभी उसे देख भौचक्के रह गए। लेकिन उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिरकार इस चमत्कारी पत्थर का क्या करें। इसलिए अंतत: उन्होंने गांव वापस लौटकर अगले दिन फिर आने का फैसला किया।
उसी रात गांव के एक शख्स के सपने में भगवान शनि आए और बोले ‘मैं शनि देव हूं, जो पत्थर तुम्हें आज मिला उसे अपने गांव में लाओ और मुझे स्थापित करो’। अगली सुबह होते ही उस शख्स ने गांव वालों को सारी बात बताई, जिसके बाद सभी उस पत्थर को उठाने के लिए वापस उसी जगह लौटे। बहुत से लोगों ने प्रयास किया, किंतु वह पत्थर अपनी जगह से एक इंच भी ना हिला। काफी देर तक कोशिश करने के बाद गांव वालों ने यह विचार बनाया कि वापस लौट चलते हैं और कल पत्थर को उठाने के एक नए तरीके के साथ आएंगे।
उस रात फिर से शनि देव उस शख्स के स्वप्न में आए और उसे यह बता गए कि वह पत्थर कैसे उठाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ‘मैं उस स्थान से तभी हिलूंगा जब मुझे उठाने वाले लोग सगे मामा-भांजा के रिश्ते के होंगे’। तभी से यह मान्यता है कि इस मंदिर में यदि मामा-भांजा दर्शन करने जाएं तो अधिक फायदा होता है।
इसके बाद पत्थर को उठाकर एक बड़े से मैदान में सूर्य की रोशनी के तले स्थापित किया गया। तब शनि देव ने गाँव वालो को आशीर्वाद दिया और गांव को खतरे से बचाने का वादा किया। मूर्ति को स्थापित करने के बाद, वहां के लोगो ने सभी दरवाजे को हटवाने का निर्णय लिया। क्योकि अब भगवान उनकी निगरानी करने के लिए स्वयं मौजूद थे।
दर्शन की व्यवस्था – Shani Shingnapur Puja Vidhi in Hindi
यहां जाने वाले आस्थावान लोग केसरी रंग के वस्त्र पहनकर ही जाते हैं। कहते हैं मंदिर में कथित तौर पर कोई पुजारी नहीं है, भक्त प्रवेश करके शनि देव जी के दर्शन करके सीधा मंदिर से बाहर निकल जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति पहली बार शनि शिंगणापुर जा रहा है तो यहाँ भक्तों की श्रद्धा व विश्वास का नज़ारा देखकर वह आश्चर्यचकित हो जायेगा। केवल बड़े-बुजुर्ग ही नहीं अपितु तीन-चार वर्ष के शिशु भी इस शीतल जल से स्नान कर शनि देव के दर्शन के लिए अपने पिता के साथ चल पड़ते हैं।
शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को तथा प्रत्येक शनिवार को महाराष्ट्र के कोने-कोने से दर्शनाभिलाषी इस मन्दिर में आते हैं तथा शनि भगवान की पूजा, अभिषेक आदि करते हैं। प्रतिदिन प्रातः 4 बजे एवं सायं काल 5 बजे यहाँ आरती होती है। रोज़ाना शनि देव जी की स्थापित मूरत पर सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है।
ऐसी मान्यता भी है कि जो भी भक्त मंदिर के भीतर जाए वह केवल सामने ही देखता हुआ जाए। उसे पीछे से कोई भी आवाज़ लगाए तो मुड़कर देखना नहीं है। शनि देव को माथा टेक कर सीधा-सीधा बाहर आ जाना है, यदि पीछे मुड़कर देखा तो बुरा प्रभाव होता है। भगवान शनि देव के इस मन्दिर में स्त्रियों का शनि प्रतिमा के पास जाना वर्जित है। महिलाएँ दूर से ही शनि देव के दर्शन करती हैं।
कैसे जाएँ – Shani Shingnapur Tour in Hindi
सड़क मार्ग – यात्री औरंगाबाद-अहमदनगर राजमार्ग संख्या 60 पर घोड़ेगाँव में उतरकर वहाँ से 5 किलोमीटर पर शनि शिंगणापुर या मनमाड-अहमदनगर राजमार्ग संख्या 10 पर राहुरी उतरकर वहाँ से 32 किलोमीटर पर स्थित शिंगणापुर के लिए बस या शटल सेवा ले सकते हैं।
रेल मार्ग – भारत के किसी भी कोने से शिंगणापुर आने के लिए रेलवे सेवा का उपयोग भी किया जा सकता है, जिसके लिए श्रद्धालुओं को अहमदनगर, राहुरी, श्रीरामपुर (बेलापुर) उतरकर एस.टी. बस, जीप, टैक्सी आदि की सेवा से शिंगणापुर पहुँच सकते हैं।
हवाई मार्ग – हवाई मार्ग से यहाँ पहुँचने वाले श्रद्धालु मुंबई, औरंगाबाद या पुणे आकर आगे के लिए बस या टैक्सी सेवा ले सकते हैं।
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