अनंतपुरा मंदिर केरल का इतिहास, कहानी | Ananthapura Lake Temple

Ananthapura Temple / अनंतपुरा मंदिर केरल के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर केरल के कसरगोड में बेकल नामक स्थान पर स्थित है। केरल में केवल यही एक झील या तालाब वाला मंदिर है। मंदिर की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बिना रोक-टोक कोई भी धर्म के लोग यहां जा सकता है। स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार यह मंदिर अनंत पद्मनाभ स्वामी का मूल आसन या मूल स्थान है। इस मंदिर की यह मान्यता है कि यहां की रखवाली एक मगरमच्छ करता है।

अनंतपुरा मंदिर केरल का इतिहास, कहानी | Ananthapura Lake Temple

अनंतपुरा मंदिर की जानकारी  – Ananthapura Lake Temple Information in Hindi

Ananthapura Mandir – अनंतपुरा मंदिर की झील में एक मगर रहता है। ऐसा माना जाता है कि यह सम्मानित प्राणी मंदिर का रक्षक है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब एक मगर की मृत्यु होती है तो आश्चर्यजनक रूप से कोई दूसरा मगर उसका स्थान ले लेता है। इस मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। केरल के इस प्रसिद्ध मंदिर में एक ‘चुत्ताम्बलम’ (मुख्य मंदिर के चारों ओर निर्मित बरामदा) है। मंदिर की झील, जिसमें यह पवित्र स्थल स्थित है, एक बड़ी इमारत के अंदर है। इसका माप लगभग 302 वर्ग फीट है, जो लगभग 2 एकड़ के बराबर होता है।

इस मंदिर की मूर्तियां धातु या पत्थर की नहीं बल्कि 70 से ज्यादा औषधियों की सामग्री से बनी हैं। इस प्रकार की मूर्तियों को ‘कादु शर्करा योगं’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि, 1972 में इन मूर्तियों को पंचलौह धातु की मूर्तियों से बदल दिया गया था, लेकिन अब इन्हें दोबारा ‘कादु शर्करा योगं’ के रूप में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनंत-पद्मनाभस्वामी का मूल स्थान है। स्थानीय लोगों का विश्वास है की भगवान यहीं आकर स्थापित हुए थे।

अनंतपुरा मंदिर का इतिहास – Ananthapura Temple Kerala History in Hindi

केवल कुछ मिथको को छोड़कर इस मंदिर के अन्य सभी इतिहास अस्पष्ट है। ये वही स्थान है जहां महान तुलु ब्राह्मण ऋषि, दिवाकर मुनि विलवमंगलम तपस्या और पूजा किया करते थे। पौराणिक कथाओ के अनुसार एक दिन भगवान् नारायण उनके समक्ष बालक के रूप में प्रस्तुत हुए। उस बालक के मुख पर एक अलौकिक तेज़ था जिसे देखकर ऋषि व्याकुल हो उठे। वे उस बालक में बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हो उठे और उससे कहा की तुम कौन हो। बालक ने कहा की उसके माता, पिता नहीं है और ना ही उसके पास रहने के लिए कोई घर है। इस बात को सुनकर विलवमंगलम को उस पर दया आ गयी और उसे वही रुकने की इजाज़त दे दी। लेकिन उस बालक ने एक शर्त रखी की जब भी वह अपमानित महसूस करेगा इस स्थान से हमेशा के लिए चला जायेगा। कुछ दिनों तक उस बालक ने ऋषि की सेवा की। परन्तु जल्द ही उसके बालपन वाले मज़ाक ऋषि के लिए असहनीय हो गए जिसकी वजह से उन्होंने हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त की। अपमानित होकर बालक वहां से चला गया परन्तु जाते जाते एक घोषणा करके गया की यदि विलवमंगलम उसे दोबारा देखना चाहते है तो उन्हें अनंथनकत (नाग देवता अनंत के जंगल) जाना होगा।

विलवमंगलम को जल्द ही आभास हो गया की वो बालक कोई और नहीं अपितु स्वयं भगवान् थे जिसके बाद उसे अपने किये पर बहुत अफ़सोस हुआ। जिस स्थान पर वह बालक अदृश्य हुआ था वहां उन्होंने एक गुफा की खोज की और उस बालक को ढूंढने हुए उस गुफा के अंदर चले गए। उसके पश्चात वे एक समुद्र तक जा पहुंचे और दक्षिण की ओर बढ़ने लगे। अंत में वे समुद्र के निकट एक पेड़ों से ढके क्षेत्र में जा पहुंचे। विलवमंगलम ने देखा की जो बालक अदृश्य हो गया था वो इल्लिप्पा वृक्ष (महुआ वृक्ष) में विलीन हो रखा था। इसके तुरंत बाद वो पेड़ नीचे गिर गया और भगवान् विष्णु का आकार धारण कर लिए जो हज़ारो सर वाले सर्प पर लेटे हुए थे।

मंदिर की रखवाली मगरमच्छ करता हैं – Ananthapura Temple Crocodile Story in Hindi

इस मंदिर की यह मान्यता है कि यहां की रखवाली एक मगरमच्छ करता है। ‘बबिआ’ नाम के मगरमच्छ से फेमस इस मंदिर में यह भी मान्यता है कि जब इस झील में एक मगरमच्छ की मृत्यु होती है तो रहस्यमयी ढंग से दूसरा मगरमच्छ प्रकट हो जाता है। दो एकड़ की झील के बीचों-बीच बना यह मंदिर भगवान विष्णु (भगवान अनंत-पद्मनाभस्वामी) का है। मान्यता है कि मंदिर की झील में रहने वाला यह मगरमच्छ पूरी तरह शाकाहारी है और पुजारी इसके मुंह में प्रसाद डालकर इसका पेट भरते हैं।

एक अन्य कथा अनुसार, इस अभिभावक मगरमच्छ के पीछे की कहानी का वर्णन करती है। एक बार श्री विलवमंगलथु स्वामी (भगवान विष्णु के भक्त) अपने प्रिय भगवान् के लिए तपस्या कर रहे थे। जिस दौरान वो प्रार्थना कर रहे थे, भगवान् कृष्ण एक छोटे बालक के रूप में उनके सामने प्रस्तुत हुए और उन्हें परेशान करना प्रारंभ कर दिया। उस बालक के व्यवहार से दुखी और परेशान होकर उन्होंने अपने बाएं हाथ से उस बालक को धक्का दे दिया। वो बालक तुरंत ही पास की गुफा में अदृश्य हो गया जिसके बाद संत को सत्य का आभास हो गया। कहा जाता है जिस दरार में श्री कृष्ण अदृश्य हुए थे वह आज भी मौजूद है। वह मगरमच्छ यहाँ के प्रवेश और मंदिर की निगरानी करता है।

कहते है कि 1945 में एक अंग्रेज सिपाही ने तालाब में मगरमच्छ को गोरी मारकर मार डाला और अविश्वसनीय रूप से अगले ही दिन वही मगरमच्छ झील में तैरता मिला। कुछ ही दिनों बाद अंग्रेज सिपाही की सांप के काट लेने से मौत हो गई। लोग इसे सांपों के देवता अनंत का बदला मानते हैं। माना जाता है कि अगर आप भाग्यशाली हैं तो आज भी आपको इस मगरमच्छ के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर के ट्रस्टी श्री रामचन्द्र भट्ट जी कहते हैं, “हमारा दृढ़ विश्वास है कि ये मगरमच्छ ईश्वर का दूत है और जब भी मंदिर प्रांगण में या उसके आसपास कुछ भी अनुचित होने जा रहा होता है तो यह मगरमच्छ हमें सूचित कर देता है”।


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