Marble Palace Kolkata History / मार्बल पैलेस, पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में स्थित एक महल हैं। मार्बल पैलेस का निर्माण 1835 ई. में राजा राजेंद्र मूलिक बहादुर ने की थी। यहाँ भारतीय और पश्िचमी हस्तशिल्पों का सुंदर संग्रह है। यह भवन मुक्ताराम बाबू गली में स्थित है। यह महल भारत की सबसे अच्छी तरह से संरक्षित की गई रचनाओं की सूचि में शामिल है।
मार्बल पैलेस की जानकारी – Marble Palace Information in Hindi
मार्बल पैलेस अपनी संगमरमर की दीवारों, फर्श और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, जहां से इसका नाम निकला है। यह 19वीं सदी के कलकत्ता के सर्वश्रेष्ठ-संरक्षित और सबसे सुंदर घरों में से एक है। एम जी रोड पर स्थित आप इस पैलेस की समृद्धता देख सकते हैं। सुंदर झूमर, यूरोपियन एंटीक, वेनेटियन ग्लास, पुराने पियानो और चीन के बने नीले गुलदान आपको उस समय के अमीरों की जीवनशैली की झलक देंगे।
महल के अंदर प्रवेश करने के लिए आपको सबसे पहले पश्चिम बंगाल के पर्यटन विभाग से बकायदा अनुमति लेनी होगी। यहाँ प्रतिदिन केवल 4000 पर्यटक ही घूमने के लिए आ सकते हैं। महल का यह नाम इसके मार्बल के फर्श और दीवारों के होने की वजह से पड़ा।
महल के अंदर कई खूबसूरत चित्र जो दुनिया भर के अलग-अलग महान कलाकारों द्वारा बनाये गए हैं, बड़े-बड़े शीशे, महल की छतों पर लटके हुए चमकदार झूमर, कई प्रतिमाएं और पूर्वी अलंकृत कलश अपने भव्य आकर्षण से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
मार्बल पैलेस के बगीचे में कई आकर्षक मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें शेर, क्रिस्टोफर कोलंबस, वर्जिन मेरी, जीसस क्राइस्ट आदि जैसी आकृतियां सम्मिलित हैं। एक बड़ा से पानी का तालाब भी है जो कई सुन्दर और अलग -अलग प्रकार की जाति के पक्षियों का वास है।
महल के परिसर में एक छोटा सा चिड़ियाघर भी है, जहाँ हॉर्नबिल, मोर, सारस और बगुले जैसे पक्षी देखने को मिलते हैं। कहा जाता है कि यह भारत में खुलने वाला सबसे पहला चिड़ियाघर था। यहां बंदरों और हिरणों की कई प्रजातियां शामिल हैं।
मार्बल पैलेस का इतिहास – Marble Palace Kolkata History in Hindi
महल का निर्माण1835 में एक अमीर बंगाली व्यापारिक राजा राजेन्द्रो मल्लिक के निवास स्थल के रूप में हुआ था जो उस समय के धनी मकान मालिक और व्यापारी हुआ करते थे। राजा राजेन्द्र मुलिक निकोलमोनी मलिक के दत्तक पुत्र थे, जिन्होंने जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया था। हालाँकि यह केवल परिवार के सदस्यों के लिए उपलब्ध है। हवेली शैली नियोक्लासिक है, जबकि इसके खुले आंगनों की योजना काफी हद तक परंपरागत बंगाली है।
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