कुम्भलगढ़ किला का इतिहास और जानकारी | Kumbhalgarh Fort in Hindi

Kumbhalgarh Fort / कुम्भलगढ़ किला, राजस्थान के उदयपुर के उत्‍तर-पश्‍चिम से लगभग 80 कि.मी. दूर अरावली पर्वत शृंखला के बीच स्‍थित है। यह मेवाड़ के प्रसिद्ध किलो में से एक है। 15 वीं शताब्दी के दौरान राणा कुम्भ द्वारा निर्मित, कुम्भलगढ़ महान राजा और मेवाड़ के योद्धा महाराणा प्रताप का जन्मस्थान है। सामरिक महत्त्व के कारण इस किले को वर्ल्ड हेरिटेज साईट का दर्जा प्राप्त हैं।

कुम्भलगढ़ किला का इतिहास और जानकारी | Kumbhalgarh Fort in Hindi

कुम्भलगढ़ किला की जानकारी – Kumbhalgarh Fort Information in Hindi 

Kumbhalgarh Kila- कुम्भलगढ़ किला बनास नदी के तट पर स्थित है। पर्यटक बड़ी संख्या में इस किले को देखने आते हैं क्योंकि यह किला राजस्थान राज्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण किला है। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि इस क़िले का निर्माण प्राचीन महल के स्‍थल पर ही करवाया गया था, जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्‍दी के जैन राजकुमार ‘सम्प्रति’ से संबद्ध था।

यह विशाल किला 13 गढ़, बुर्ज और पर्यवेक्षण मीनार से घिरा हुआ है। कुम्भलगढ़ किला अरावली की पहाड़ियों में 36 किमी में फैला हुआ है। इस किले कि दीवार भी 36 किलोमीटर लम्बी तथा 15 फीट चौड़ी है।

कुम्भलगढ़ किला का इतिहास – Kumbhalgarh Fort History in Hindi

कहा जाता है की इस किले का प्राचीन नाम मछिन्द्रपुर था, जबकि इतिहासकार साहिब हकीम ने इसे माहौर का नाम दिया था। माना जाता है की वास्तविक किले का निर्माण मौर्य साम्राज्य के राजा सम्प्रति ने छठी शताब्दी में किया था। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के दुसरे पुत्र सम्प्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर 1443 से शुरू होकर 15 वर्षों बाद 1458 में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के भी ढलवाये, जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करते थे जिनसे बड़े बड़े लेम्प जला कर प्रकाश किया जाता था।

इसके निर्माण कि कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 1443 में  राणा कुम्भा ने इसका निर्माण शुरू करवाया पर निर्माण कार्य  आगे नहीं बढ़ पाया, निर्माण कार्य में बहुत अड़चने आने लगी। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया। संत ने बताया यह काम  तभी आगे बढ़ेगा  जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।

संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार “हनुमान पोल ” है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है।

दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजेय रहा। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था।

इस किले के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजेय ही रहा है। उस बार भी दुर्ग में पीने का पानी खत्म हो गया था और दुर्ग को बाहर से चार राजाओ कि सयुक्त सेना ने घेर रखा था यह थे मुग़ल शासक अकबर, आमेर के राजा मान सिंह, मेवार के राजा उदय सिंह और गुजरात के सुल्तान।

गुजरात के अहमद शाह प्रथम ने 1457 में किले पर आक्रमण किया था लेकिन उनकी कोशिश व्यर्थ गयी। स्थानिक लोगो का ऐसा मानना है की किले में स्थापित बनमाता देवी ही किले की रक्षा करती है और इसीलिए अहमद शाह प्रथम किले को तोडना चाहता था।

इसके बाद 1458-59 और 1467 में महमूद खिलजी ने किले पर आक्रमण करने की कोशिश की थी लेकिन वह भी असफल रहा। कहा जाता है की 1576 से किले पर अकबर के जनरल शब्बाज़ खान का नियंत्रण था। 1818 में सन्यासियों के समूह ने किले की सुरक्षा करने का निर्णय लिया था लेकिन फिर बाद में किले पर मराठाओ ने अधिकार कर लिया था। इसके बाद किले में मेवाड़ के महाराणा ने कुछ बदलाव भी किये थे लेकिन वास्तविक किले का निर्माण महाराणा कुम्भ ने ही किया था। और बाद में किले की बाकी इमारतो और मंदिर की सुरक्षा भी की गयी थी।

2013 मे, कंबोडिया के पेन्ह में आयोजित वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी के 37 वे सेशन में कुम्भलगढ़ किले के साथ-साथ राजस्थान के दुसरे बहुत से किलो को भी वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया। यूनेस्को ने राजस्थान के किलो की सूचि में इसे शामिल किया है।

वास्तु-कला – Kumbhalgarh Fort Architecture

इस किले में सात बड़े दरवाजे हैं। इनमें से सबसे बड़ा राम पोल के नाम से जाना जाता है। किले की ओर जाने वाले मुख्य रास्ते हनुमान पोल पर पर्यटक एक मंदिर देख सकते हैं। हल्ला पोल, राम पोल, पाघरा पोल, निम्बू पोल, भैरव पोल एवं तोप-खाना पोल किले के अन्य दरवाजे हैं।

इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़े एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं। कुम्भलगढ़ राजस्थान ही नहीं, अपितु भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ट स्थान रखता है। समुद्र तल से 1087 मीटर ऊँचा और 30 कि.मी. व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। नख्से नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मन्दिर, आवासीय इमारते, यज्ञ वेदी, स्तम्भ और छत्रियाँ आदि बने हुए है।

किले के भीतर 360 से अधिक मंदिर हैं, 300 प्राचीन जैन और बाकी हिंदू मंदिर हैं। नीलकंठ महादेव का बना मन्दिर यहाँ पर अपने ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदे के लिए जाना जाता है। इस तरह के बरामदे वाले मन्दिर प्रायः नहीं मिलते। मन्दिर की इस शैली को कर्नल टॉड जैसे इतिहासकार ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं। लेकिन कई विद्वान् इससे सहमत नहीं हैं।

पर्यटक एक पक्षी की तरह किले के ऊपर से आस पास के क्षेत्रों का अवलोकन कर सकते हैं। करतारगढ़ के नाम से जाना जाने वाला एक और किला कुम्भलगढ़ के मुख्य किले के अंदर स्थित है। यह किला ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना के बाद यह सबसे विशाल दीवार वाला दूसरा किला है और चित्तौड़गढ़ किले के बाद यह राजस्थान के बाद दुसरा सबसे बड़ा किला है।


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