बागोर की हवेली का इतिहास | Bagore ki Haveli Udaipur History in Hindi

Bagore ki Haveli / बागोर की हवेली, राजस्थान के ऐतिहासिक शहर उदयपुर में स्थित हैं। अठारहवीं शताब्दी में निर्मित बागोर की हवेली का निर्माण ठाकुर अमरचंद बड़वा ने करवाया था। बगोर की हवेली उदयपुर के उन कई खूबसूरत स्थलों में से है जो अपनी बनावट के लिए जाने जाती है।

बागोर की हवेली का इतिहास | Bagore ki Haveli Udaipur History in Hindi

बागोर की हवेली की जानकारी – Bagore ki Haveli Udaipur in Hindi

बागोर की हवेली को राजस्थान का एक प्रमुख आकर्षक पर्यटन स्थल माना जाता है। यह झील उदयपुर के पिछोला झील के पास स्थित हैं। बागोर की हवेली में वास्तुकला एवं भित्तिचित्रों को इस तरह से संजोया गया है कि यहां आने वाले देशी-विदेशी पयर्टक इसे देखना नहीं भूलते। इस हवेली में 138 कमरे हैं। बारीक नक्काशी और सुंदर कांच का काम इस हवेली का प्रमुख आकर्षण है।

एक जमाने में उदयपुर रियासत के कुलीन परिवारों की आवास स्थली यह हवेली 1986 में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र को हस्तांतरित होने से पूर्व आधी सदी तक गुमनामी में रही। हवेली में केंद्र के विभागीय गतिविधियां तो संचालित होती ही हैं, साथ ही अलग-अलग कक्षों में पुरातन वस्तुओं के संग्रहालय भी सैलानियों के आकर्षण बने हुए हैं।

यहाँ के अलग अलग कक्षों को मौसम के अनुकूल बनाने के लिए, अलग -अलग रंग दिए हैं। यही नहीं बल्कि यहाँ हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस ऐतिहासिक हवेली में वास्तुकला एवं भित्तिचित्रों को संजोया गया है। हवेली में राजाओं के जमाने के शतरंज, चौपड़, सांप सीढ़ी और गंजीफे आज भी मौजूद हैं, जिसका उपयोग राजपरिवार की महिलाएं खेल, व्यायाम तथा मनोरंजन के लिए किया करती थीं।

हवेली के मुख्य द्वार के पूर्व में कलात्मक शस्त्रागार (हाथी का कुमाला) में प्रदर्शित विभिन्न प्रकार की ढाल-तलवारें, छुरे, भाले और फरसे, तीर-कमान और कटारें, बख्तरबंद आदि इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करती हैं। इसके अलावा इसमें बागौर ठिकाने से गोद गए तत्कालीन महाराणा सरदार सिंह, शंभूसिंह, स्वरूपसिंह व सज्जन सिंह के पोट्र्रेट भी लगे हुए हैं। कहा जाता है कि अनूठी वास्तु कला के चलते पूर्व में इसी हॉल (कुमाला) में राजे-रजवाड़े अपने हाथी बांधा करते थे।

उसी जगह बीते जमाने के अस्त्र-शस्त्रों की चांदी के मुलम्मे चढ़ी प्रतिकृतियां सुशोभित हो रही हैं। यहां प्रदर्शित बुरछ, खाण्डा, करणशाही और कदलीवन तलवार, बख्तरफाड़ चोंच, पर्शियन ढाल, दखन हैदराबादी कटार, अंकुश, चमड़े की ढाल, बंदूक टोपीदार और शोरदानी आदि रखे हैं।

बागोर की हवेली का इतिहास – Bagore ki Haveli History in Hindi 

बागोर की हवेली का निर्माण 1751 से 1781 ई. के बीच मेवाड़ के शासक के तत्कालीन प्रधानमंत्री अमर चन्द्र बडवा की देखरेख में हुआ था। हालाँकि मेवाड़ के इतिहास के अनुसार महाराणा शक्ति सिंह ने बागोर की इस हवेली में निवास के दौरान ही त्रिपौलिया पर महल का निर्माण कराया था, जिसका 1878 ई. में विधिवत मुर्हूत हुआ था।

वर्ष 1880 में महाराणा सज्जन सिंह ने बागोर की हवेली का वास्तविक स्वामी अपने पिता महाराणा शक्ति सिंह को घोषित कर दिया। वर्ष 1930 से 1955 के बीच महाराणा भूपाल सिंह ने इस हवेली का नए सिरे से जीणोद्धार कराकर इसे राज्य की तीसरी श्रेणी का विश्राम गृह घोषित कर दिया।

मेवाड़ रियासत के राजस्थान में विलय के बाद यह हवेली ‘लोकनिर्माण विभाग’ के अधिकार में चली गई। वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सांस्कृतिक विकास के लिए देश में सांस्कृतिक विकास केन्द्रों की स्थापना की और इसी क्रम में ‘पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र’ का मुख्यालय इस हवेली में बनाया गया।

इसके बाद केन्द्र के सौजन्य से इस ऐतिहासिक हवेली की साफ-सफाई एवं नए सिरे से रंग रोगन किया गया। केन्द्र के अधिकारियों के अनुसार साफ-सफाई के दौरान हवेली के जनाना महल में दो सौ वर्ष पुराने मेवाड़ शैली के भित्तिचित्र मिले हैं, जो यहां के राजा-रजवाडे़ के जमाने के रहन-सहन एवं ठाट-बाट को प्रदर्शित करते हैं।

हवेली के द्वारों पर कांच एवं प्राकृतिक रंगों से चित्रों का संकलन आज भी मनोहारी है। इस हवेली में स्नानघरों की व्यवस्था थी, जहां मिट्टी, पीतल, तांबा और कांस्य की कुंडियों में दुग्ध, चंदन और मिश्री का पानी रखा होता था और राज परिवार के लोग सीढ़ी पर बैठकर स्नान किया करते थे।

प्रत्येक मौसम के लिए अलग-अलग रंग में रंगे कक्षों की साफ-सफाई एवं मरम्मत से उदयपुर की ढाई सौ साल पुरानी बागोर की हवेली पयर्टकों को खूब लुभाती है। इस हवेली में ऐसे अनेक कक्ष अलग-अलग रंगों में रंगे हैं, जिनका उपयोग मौसम के अनुकूल हुआ करता था।


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