कोंडापल्ली किला का इतिहास, जानकारी | Kondapalli Fort History in Hindi

Kondapalli Fort / कोंडापल्ली किला भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के दूसरे सबसे बड़े शहर विजयवाड़ा के निकट कृष्णा जिले में स्थित है। यह किला कोंडापल्ली शहर के पहाड़ी पर स्थित है इसलिए किले को कोंडापल्ली किले के नाम से जाना जाता हैं। किले का निर्माण 14 वीं शताब्दी में मसुनुरी नायक ने करवाया था। ब्रिटिशो ने इस स्थान पर किले पर नज़र रखने के लिए यहाँ एक मजबूत चौकी का निर्माण किया था।

कोंडापल्ली किला का इतिहास, जानकारी | Kondapalli Fort History in Hindi

कोंडापल्ली किले की जानकारी – Kondapalli Fort, Andhra Pradesh Information

कोंडापल्ली शहर केवल कोंडापल्ली किले के लिए ही महशूर नहीं, बल्कि यहाँ मिलने वाले खिलौनों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ मौजूद पौराणिक आंकड़े, महिलाओं और पशुओं सहित जीवंत चित्रित खिलौनों का निर्माण करने के लिए बहुत ही हलकी सफ़ेद रंग की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। इसके आलावा कृष्णा जिले में एक कोंडापल्ली संरक्षित जंगल भी है। यह जंगल भी प्रसिद्ध हैं।

कोंडापल्ली किले का इतिहास – Kondapalli Fort History in Hindi

कोंडापल्ली किले का निर्माण 1360 ई. में मसुनुरी नायक ने करवाया था। निर्माण के कई वर्षो पश्चात तक ये उत्तरी और दक्षिणी भारत के कई शासकों और ब्रिटिशो के मध्य हुए युद्धों का स्थल था। 1541 में, मुहमदं ने कोंडापल्ली किले और राज्य पर कब्ज़ा कर लिया था। कुछ समय के लिए ये किला बहमानी राज्य के कब्जे में था, जिसके पश्चात ओड़िसा के गणपति शासक जिनका अनुगमन विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेवराय कर रहे थे। उसके पश्चात 16 वीं शताब्दी के दौरान इस किले का नियंत्रण मुस्लिम राजे कुतुबशाही के हाथों में चला गया।

ओडिसा के गजपति कपिलेंद्र देवा (1435–1466) के पुत्र हामवीरा ने रेड्डियों के खिलाफ युद्ध किया जिसमे वे विजय हुए और 1454 ई. में कोण्डविदु के पुरे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। परंतु ओडिसा के सिंहासन के सत्ता के लिए हुए ऐतिहासिक संघर्ष में, हामवीरा ने अपने भाई पुरुषोत्तम के साथ युद्ध किया, जो अपने पिता की मृत्यु की पश्चात उस सिंहासन के उत्तराधिकारी थे। इस युद्ध में उसने बहमानी सुल्तानों से मदद मांगी। 1472 ई में, वो अपने भाई को परास्त करने में सफल रहा और ओडिसा राज्य के सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया। परन्तु एक संधि के अनुसार उसने कोंडापल्ली और राजमुंदरी को बहमानी सुल्तानों को दे दिया। लेकिन कुछ साल बाद ही 1476 में पुरोषोत्तम ने एक लड़ाई में हमविरा को हरा दिया और फिर से ओड़िसा के सिंघासन पर कब्ज़ा जमा लिया।

लेकिन ऐसा भी कहा जाता है 1476 ई में, जब बहमानी राज्य में आकाल पड़ा था कोंडापल्ली में एक क्रांति हुई थी। इसके पश्चात कोंडापल्ली की चौकी के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और इस किले का नियंत्रण हामवीरा को सौंप दिया।

राजा बनने के पश्चात पुरुषोत्तम ने बहमानी सुलतान III से कोंडापल्ली और राजमुंदरी को वापस प्राप्त करने का प्रयास किया। जब उसने राजमुंदरी पर घेरेबंदी की तो किसी अज्ञात कारण के वजह से उसने सुलतान के साथ एक संधि कर ली, जिसके परिणाम स्वरुप विजयनगर और बहमानी शासकों के संबंध ख़राब हो गए। परन्तु 1481 ई में, सुलतान महमद की मृत्यु के पश्चात बहमानी राज्य अव्यवस्थित हो गया। इसका लाभ उठाकर पुरुषोत्तम में सुलतान के पुत्र महमद शाह के साथ युद्ध किया और राजमुंदरी और कोंडापल्ली किले का शासन अपने नियंत्रण में ले लिया।

गजपति पुरोषत्तम देवा की मृत्यु 1508 में हुई जिसके पश्चात उनके पुत्र गजपति प्रतापरुद्र देवा को उनका उत्तराधिकारी बना दिया गया। 1509 में गजपति प्रतापरुद्र देव ने विजयनगर के कृष्णदेवराय के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था लेकिन उसे उस युद्ध में पीछे उत्तर की ओर हटना पड़ा था क्यु की उसपर बंगाल के अल्लौद्दीन हसन शाह ने आक्रमण कर दिया था।

इसका अंजाम यह हुआ की उस लड़ाई में कृष्णदेवराय को बड़ी आसानी से सन 1515 के जून में जीत मिली और उन्होंने कोंडापल्ली पर कब्ज़ा जमा लिया था। 1519 में जो आखिरी लड़ाई लड़ी गयी उसमे भी कृष्णदेवराय ने ओडिसा के राजा को हरा दिया था। इस युद्ध के पश्चात, कृष्णदेवराय ने गजपति प्रतापरुद्र देवा की पुत्री कलिंग की राजकुमारी जगनमोहिनी से विवाह कर लिया।

जैसे की देखा जाये की कोंडापल्ली का किला बहुत ही मजबूत था उसी वजह से किले को ख़ुद के कब्जे में लेने के बाद भी कृष्णदेवराय को तीन महीने बाद ख़ुद किले पर नजर रखनी पड़ी थी। 17 वी शताब्दी में वहा का सारा इलाका मुग़ल के कब्जे में चला गया था। 18 वी शताब्दी के शुरुवात में मुग़ल का साम्राज्य पूरी तरह से बिखरने के बाद निज़ाम उल मुल्क जो बाद में हैदराबाद का निज़ाम बन चूका था उसने सिंघासन पर आते ही उसके आजूबाजू का इलाका ख़ुद के कब्जे में कर लिया था।

18 वीं शताब्दी के अंत तक ये स्थान निज़ाम शासकों के ही अधीन था, उसके पश्चात निज़ाम अली और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई एक संधि में इस किले का नियंत्रण अंग्रेजो को सौंप दिया गया। ये संधि 12 नवम्बर 1766 में हुई थी। दूसरी संधि 1 मार्च 1768 में हुई थी, जिसमे निज़ाम ने ब्रिटिश मुग़ल शासक शाह आलम द्वारा प्रदान किये अनुदान को मानयता दी थी। परन्तु मित्रता के संकेत के रूप में ब्रिटिशो को निज़ाम को 50,000 पाउंड्स का भुगतान करना पड़ा।

अंग्रेजो के हाथ में जाने के बाद प्रारंभिक वार्षो में, इस किले का प्रयोग व्यवसायिक केंद्र के रूप में किया जाता था परन्तु 1766 में ब्रिटिशो के इस किले पर कब्ज़ा करने के पश्चात इसे सैन्य प्रशिक्षण स्थल में परिवर्तित कर दिया गया।

कोंडापल्ली किले की संरचना – Kondapalli Fort Architecture

कोंडापल्ली किले तीन प्रवेश द्वार हैं जो देखने बहुत सुन्दर हैं। मुख्य प्रवेश द्वार को दरगाह दरवाज़ा के नाम से जाना जाता है जिसका निर्माण ग्रेनाइट के एक ब्लॉक से किया गया है। ये किले 4 मी. चौड़ा और 5 मी. ऊंचा है। इस दरवाज़े का नाम गुलाब शाह की दरगाह के नाम पर रखा गया जिनकी हत्या यहाँ हुए एक युद्ध के दौरान की गयी थी। दरगाह दरवाज़े को छोड़कर एक दूसरा प्रवेश द्वार है जिसे गोलकोंडा दरवाज़े के नाम से जाना जाता है जो पहाड़ी के अन्य छोर पर है, जो जगगैपेट गांव की ओर जाता है। किले की दीवारों में मीनारे और बटलमेंट है।

किले के दूर अंत में तनीषा महल है जो दो पहाड़ियों के बीच के शिखर पर स्थित है। इस महल का आकार बहुत ही अच्छा है जिसके भूतल में कई कक्ष है और ऊपरी मंजिल पर एक विशाल कक्ष है। इसके अलावा किले में और भी कई इमारते है जो वर्तमान में खंडहर में परिवर्तित हो चुकी है।

महल के निकट ही एक गहरा जलाशय है। कहा जाता है इस जलाशय का पानी बहुत ठंडा होता है, इतना ठंडा की आपको बुखार भी आ सकता है। किला परिसर में और भी कई छोटे छोटे तालाब है जो गर्मियों के दौरान सुख जाते है। किले के खंडहर में एक अन्न भण्डार है जो जलाशय के पीछे है जहां अब चमगादड़ निवास करते है। किला परिसर में एक अंग्रेजी बैराक है जो आज भी मौजूद है, जिसमे आठ विशाल कक्ष है और एक उपभवन है। किले में एक कब्रिस्तान भी है जो अंग्रेजो का हैं।


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