छत्तीसगढ़ का चैतुरगढ़ किला (Chaiturgarh Fort) को लाफागढ़ क़िले के नाम से भी जाना जाता है। यह 3060 मीटर ऊँचे पहाड़ पर बसा हुआ है और कोरबा से 70 किमी की दूरी पर स्थित है। यह भारत के सबसे मजबूत प्राकृतिक किलों में से एक है। चेतुरागढ़ क़िले में महिषासुर मर्दिनी मन्दिर है।
चैतुरगढ़ किला का इतिहास और जानकारी – Chaiturgarh Fort History & Information in Hindi
Chaiturgarh Kila – चैतुरगढ़ क़िले का निर्माण राजा पृथ्वी देव ने कराया था। इस किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 अर्थात 1069 ईस्वी में हुआ। यह एक क़िला है इसमें तीन प्रवेश द्वार हैं, इन प्रवेश द्वारों के नाम मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार हैं। यह पाली से 19 किमी की दूरी पर स्थित है और छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक है। किले के ज्यादातर भाग में प्राकृतिक दीवारें हैं। केवल कुछ दीवारों का निर्माण किया गया है।
चैतुरगढ़ किला क़िले का क्षेत्रफल 5 किमी वर्ग में फैला हुआ है और इसमें पाँच तालाब हैं इन पाँच तालाबों में तीन तालाब सदाबहार हैं, जो पूरे साल जल से भरे रहते हैं। चेतुरागढ़ क़िले में महिषासुर मर्दिनी मन्दिर है। मन्दिर के गर्भ में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसके बारह हाथ हैं।
महिषासुर मर्दिनी मन्दिर के पास ख़ूबसूरत शंकर गुफ़ा भी है, जो लगभग 25 फीट लंबी है और गुफ़ा का प्रवेश द्वार बहुत छोटा है। नागर शैली में निर्मित मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है।
हरियाली से आच्छादित पर्यटन व आस्था स्थल छग के कश्मीर चैतुरगढ़ में स्थित ऐतिहासिक महिषासुर मर्दिनी के दरबार में नवरात्र पर्व भर भक्तों की कतार लगी रहेगी। प्राचीन काल से यह मंदिर साधना व शक्ति आराधना का केंद्र रहा है। मंदिर में पूजा पहले राजा फिर जमींदार द्वारा किये जाने की परंपरा रही है।
नवरात्रों में यहाँ पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, स्थानीय निवासी इस पूजा में बड़ी श्रद्धा से भाग लेते हैं। यहाँ पर पाँच तालाब स्थित हैं जो हरे भरे पेड़ों से घिरे हैं और विभिन्न प्रजाति के पक्षी और जानवर देखे जा सकते हैं। इस जगह की प्राकृतिक सुन्दरता मनमोहक है।
वर्तमान में यह जिला पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्थल की श्रेणी में आता है। इस ऐतिहासिक धरोहर को संवारने और सहेजने का काम पूजा एवं विकास समिति द्वारा सक्रिय रूप से किया जा रहा है। एसईसीएल गेवरा क्षेत्र ने किले पर श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण कार्य कराए हैं। पर्यटकों के रुकने हेतु तीन कमरों की मातृछाया का निर्माण कराया गया है। वन विभाग द्वारा वन संपदा और हरियाली की रक्षा करने के साथ ही वन क्षेत्र व प्राणियों की सुरक्षा के उद्देश्य से चैतुरगढ़ मृगवन का प्रस्ताव शासन को पूर्व के वर्षों में भेजा है। चैतुरगढ़ की वादियों में वनोषधियों का भी विपुल भंडार है।
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