दौलताबाद क़िला का इतिहास और जानकारी | Daulatabad Killa History in Hindi

Daulatabad Killa / दौलताबाद का क़िला महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित मध्यकालीन भारत का सबसे ताकतवर क़िला है। दौलताबाद महाराष्ट्र का एक शहर है जिसका प्राचीन नाम देवगिरि था। यह मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी था। इस किले पर यादव, ख़िलजी, तुग़लक़ वंश ने शासन किया। 

दौलताबाद क़िला का इतिहास और जानकारी | Daulatabad Killa History in Hindi

दौलताबाद क़िला की जानकारी – Daulatabad Killa Aurangabad in Hindi

दौलताबाद औरंगाबाद से 14 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बसा एक 14वीं सदी का शहर है। शुरू में इस क़िले का नाम देवगिरी था, जिसका निर्माण कैलाश गुफ़ा का निर्माण करने वाले राष्ट्रकूट शासक ने किया था। अपने निर्माण वर्ष (1187-1318 ई.) से लेकर 1762 तक इस क़िले ने कई शासक देखे। क़िले पर यादव, ख़िलजी, तुग़लक़ वंश ने शासन किया।

मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने देवगिरि को अपनी राजधानी बनाकर इसका नाम दौलताबाद कर दिया था। आज दौलताबाद का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है। दौलताबाद का क़िला मध्ययुगीन दक्कन का सबसे शक्तिशाली क़िला था। यही एक मात्र एक ऐसा क़िला है, जिसे कभी कोई जीत नहीं सका।

किले में चरणबद्ध कुएं, बारदरी,जलाशयों, मीनार, हम्माम, विभिन्न महलों, मंदिरों, मस्जिदों जैसे 10 अधूरी चट्टानों की कटौती गुफाओं के अलावा और भी संरचनाएं शामिल हैं। अजंता-एलोरा की गुफाएं यहां से केवल 16 किलोमीटर दूर हैं।

दौलताबाद किला की बनावट और स्थिति – Daulatabad Fort Architecture

दौलताबाद अपने दुर्जेय पहाड़ी किले के लिए प्रसिद्ध है। 190 मीटर ऊंचाई का यह किला शंकु के आकार का है। क़िले की बाहरी दीवार और क़िले के आधार के बीच दीवारों की तीन मोटी पंक्तियां हैं जिसपर कई बुर्ज बने हुए हैं। प्राचीन देवगिरी नगरी इसी परकोटे के भीतर बसी हुई थी। इस किले की सबसे प्रमुख ध्यान देने वाली बात ये है कि इसमें बहुत से भूमिगत गलियारे और कई सारी खाईयां हैं। ये सभी चट्टानों को काटकर बनाए गए हैं। इस दुर्ग में एक अंधेरा भूमिगत मार्ग भी है, जिसे ‘अंधेरी’ कहते हैं। इस मार्ग में कहीं-कहीं पर गहरे गड्ढे भी हैं, जो शत्रु को धोखे से गहरी खाई में गिराने के लिए बनाये गये थे।

किले के प्रवेश द्वार पर लोहे की बड़ी अंगीठियां बनी हैं, जिनमें आक्रमणकारियों को बाहर ही रोकने के लिए आग सुलगा कर धुआं किया जाता था। चांद मीनार, चीनी महल और बरादारी इस किले के प्रमुख स्मारक हैं। चांद मीनार की ऊंचाई 63 मीटर है और इसे अलाउद्दीन बहमनी शाह ने 1435 में दौतलाबाद पर विजयी होने के उपलक्ष्य में बनाया था। यह मीनार दक्षिण भारत में मुस्लिम वास्तुकला की सुंदरतम कृतियों में से एक है। मीनार के ठीक पीछे जामा मस्जिद है. इस मस्जिद के पिलर मुख्यतः मंदिर से सटे हुए हैं। इसके पास चीनी महल है जहां गोलकोंडा के अंतिम शासक अब्दुल हसन ताना शाह को औरंगजेब ने 1687 में कैद किया था। इसके आस-पास घुमावदार दुर्ग हैं।

दौलताबाद क़िला का इतिहास – Daulatabad Fort History in Hindi

देवगिरी के यादव राजा भिल्लम द्वारा 1187 ईस्वी में इस क़िले का निर्माण कराया गया। कृष्‍णा के पुत्र रामचंद्र देव के शासन काल के दौरान अलाउद्दीन ख़िलजी ने सन् 1296 में देवगिरि पर हमला किया और उस पर कब्‍जा कर लिया। बाद में मलिक काफूर ने क्रमश: सन् 1306-07 और 1312 ई. में रामचंद्र देव और उसके पुत्र शंकर देव के विरूद्ध किए गए दो हमलों का नेतृत्‍व किया। सन् 1312 वाले हमले में शंकर देव मारा गया। इसके परिणामस्‍वरूप देवगिरि के खिलाफ कुतुबुद्दीन मुबारकशाह ख़िलजी ने एक और हमला किया और सफल हुआ और यह किला दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया।

दिल्ली में मुहम्मद बिन तुग़लक़ ख़िलजी वंश का उत्‍तराधिकारी बना और उसने देवगिरि का पुन: नामकरण दौलताबाद कर दिया और इसके अजेय क़िले को देखते हुए उसने अपनी राजधानी सन् 1328 में दिल्‍ली से यहां स्‍थानांतरित कर ली। इसके बहुत गंभीर परिणाम हुए और उसे पुन: अपनी राजधानी स्‍थानां‍तरित करके वापस दिल्‍ली ले जानी पड़ी।

यह क्षेत्र और यहां का क़िला सन् 1347 में हसन गंगू के अधीन बहमनी शासकों के हाथों में और फिर सन् 1499 ई. में अहमदनगर के निजामशाहियों के हाथ में चला गया। सन् 1607 में दौलताबाद निजामशाह राजवंश की राजधानी बन गया। बार-बार होने वाले हमलों तथा इस अवधि के दौरान स्‍थानीय शासक परिवारों के बीच आंतरिक झगड़ों के कारण दक्‍कन ने उथल-पुथल भरा लंबा समय देखा।

अकबर और शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान मुगलों ने यहां कई हमले किए और शाहजहां के शासनकाल के दौरान ही चार माह की लंबी घेरेबंदी के बाद यह क्षेत्र सन् 1633 में पूर्णतया मुगलों के कब्‍जे में आ गया। दौलताबाद क़िले पर कई शासकों का शासन रहा, इस पर बार-बार कब्‍जे होते रहे, कभी यह मुगलों के आधिपत्‍य में रहा, कभी मराठों के और कभी पेशवाओं के और अंत में सन् 1724 ई. में यह हैदराबाद के निजामों के नियंत्रण में आ गया और स्‍वतंत्रता प्राप्ति तक उन्‍हीं के नियंत्रण में रहा।

कैसे पहुंचे – Daulatabad Fort Travels

रेलमार्ग- औरंगाबाद रेलवे स्टेशन दौलताबाद क़िले से निकटतम रेलवे स्टेशन है और लगभग 15 से 20 कि.मी. दूर है। यह रेलवे स्टेशन मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे और नासिक जैसे देश के कई शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़कमार्ग– औरंगाबाद से दौलताबाद के लिए बसों से यात्रा कर सकते हैं। आपके पास एक टैक्सी को किराए पर लेने का विकल्प भी है।

वायुमार्ग– दौलताबाद क़िले से निकटतम हवाई अड्डा 22 कि.मी. की दूरी पर औरंगाबाद में है। यह हवाई अड्डा हैदराबाद, दिल्ली, और मुम्बई जैसे देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है।


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