Bhagwan Mahavir / महावीर स्वामी जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ की परम्परा में 24वें जैन तीर्थंकर थे। वे अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उन्होंने मानवता के कल्याण के लिये राजपाट को छोड़कर ताप और त्याग का मार्ग अपनाया था। उन्हें एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं था। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए थे, उसी युग में महावीर पैदा हुए। उन्होंने इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई और अहिंसा का भरपूर विकास किया। महावीर को ‘वर्धमान’, वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है।
महावीर स्वामी जी का परिचय – Bhagwan Mahavir Biograph in Hindi
पूरा नाम | महावीर स्वामी (Mahaveer Swami) |
जन्म दिनांक | 13 ई.पू. 599 |
जन्म भूमि | क्षत्रिय कुण्डग्राम (कुंडलपुर, वैशाली) बिहार |
मृत्यु | 527 ई. (पावापुरी) |
पिता का नाम | सिद्धार्थ |
माता का नाम | त्रिशला देवी |
पत्नी | यशोदा |
वंश | ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिय (गोत्र ‘काश्यप’) |
पुत्री | प्रियदर्शिनी |
मोक्ष | कार्तिक अमावस्या |
मोक्ष स्थान | पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार |
तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है- अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका को इन पंचशील गुणों का पालन करना अनिवार्य है। महावीर ने अपने उपदेशों और प्रवचनों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाई और मार्गदर्शन किया।
महावीर स्वामी जी इतिहास – Bhagwan Mahavir History in Hindi
महावीर स्वामी का जीवन काल 599 ई. ईसा पूर्व से 527 ई. ईसा पूर्व तक माना जाता है। इनकी माता का नाम ‘त्रिशला देवी’ और पिता का नाम ‘सिद्धार्थ’ था। बचपन से ही उनमें महानता के लक्षण दृष्टिगत होने लगे थे। उनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण ‘महावीर’ कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें ‘जीतेंद्र’ भी कहा जाता है।
दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों के अनुसार भगवान महावीर बिहार प्रांत के कुंडलपुर नगर में आज (सन 2013) से 2612 वर्ष पूर्व महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के गर्भ से चैत्र कृष्ण तेरस को जन्मे थे। वह कुंडलपुर वर्तमान में नालंदा ज़िले में अवस्थित है।
शादी – Mahavir Swami Wife
दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता -पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में एक कन्या भी उत्पन्न हुई जिसका नाम प्रियदर्शिनी था। युवा होने पर उसका विवाह राजकुमार जमाली के साथ हुआ। जैन विद्वान, चम्पत राय जैन के अनुसार,
ज्ञान की प्राप्ति – Mahavir Swami Gyan Prapti
अपने माता पिता की मृत्यु के पश्चात महावीर स्वामी के मन मे वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई, परंतु जब उन्होने इसके लिए अपने बड़े भाई से आज्ञा मांगी, तो उन्होने अपने भाई से कुछ समय रुकने का आग्रह किया। तब महावीर स्वामी जी ने अपने भाई की आज्ञा का मान रखते हुये 2 वर्ष रुके।
ज्ञान की प्राप्ति के लिए इन्होंने 30 वर्ष की उम्र में अपने ज्येष्ठबंधु की आज्ञा लेकर घर-बार छोड़ दिया। महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके यक्ष का नाम ‘ब्रह्मशांति’ और यक्षिणी का नाम ‘सिद्धायिका देवी’ था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। महावीर ने मार्गशीर्ष दशमी को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात 2 दिन बाद खीर से इन्होंने प्रथम पारणा किया।
दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 वर्ष और 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे ‘साल वृक्ष’ के नीचे भगवान महावीर को ‘कैवल्य ज्ञान’ की प्राप्ति हुई थी। ज्ञान प्राप्ति के बाद उनके उपदेश चतुर्दिक फैलने लगे। बिम्बिसार जैसे बड़े-बड़े राजा उनके अनुयायी बन गये।
महावीर स्वामी के कारण ही 23 वें तीर्थकर पार्श्वनाथ व्दारा प्रतिपादित सिध्दान्तों ने एक विशाल धर्म का रूप धारण किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है।
भगवान के अनुयायी जैन कहलाते थे और उनकी मान्यता के अनुसार जैन धर्म अनादिकाल से चला आ रहा है और इसका प्रचार करने के लिए समय-समय पर तीर्थकरों का आविर्भाव होता रहता है। महावीर 24 वें तथा अंतिम तीर्थकर थे और उनके व्दारा प्रतिपादित धर्म के स्वरूप का ही पालन आज इसके अनुयायियों व्दारा किया जाता है।
महावीर स्वामी के चार नाम – Mahavir Swami Name
1). वर्धमान नाम – जन्मोत्सव पर ज्योतिषों द्वारा चक्रवर्ती राजा बनने की घोषणा की गयी। उनके जन्म से पूर्व ही कुंडलपुर के वैभव और संपन्नता की ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई। अत: महाराजा सिद्धार्थ ने उनका जन्म नाम ‘वर्धमान’ रखा। चौबीस घंटे दर्शनार्थिंयों की भीड़ ने राज-पाट की सारी मयार्दाएँ तोड़ दी। वर्धमान ने लोगों में संदेश प्रेरित किया कि उनके द्वार सभी के लिए हमेशा खुले रहेंगे।
2). वीर नाम – जैसे-जैसे महावीर बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उनके गुणों में बढ़ोतरी हो रही थी। एक बार जब सुमेरू पर्वत पर देवराज इंद्र उनका जलाभिषेक कर रहे थे। तब कहीं बालक बह न जाए इस बात से भयभीत होकर इंद्रदेव ने उनका अभिषेक रुकवा दिया। इंद्र के मन की बात भाँप कर उन्होंने अपने अँगूठे के द्वारा सुमेरू पर्वत को दबा कर कंपायमान कर दिया। यह देखकर देवराज इंद्र ने उनकी शक्ति का अनुमान लगाकर उन्हें ‘वीर’ के नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया।
3). सन्मति का नाम – बाल्यकाल में महावीर महल के आँगन में खेल रहे थे। तभी आकाशमार्ग से संजय मुनि और विजय मुनि का निकलना हुआ। दोनों इस बात की तोड़ निकालने में लगे थे कि सत्य और असत्य क्या है? उन्होंने ज़मीन की ओर देखा तो नीचे महल के प्राँगण में खेल रहे दिव्य शक्तियुक्त अद्भुत बालक को देखकर वे नीचे आएँ और सत्य के साक्षात दर्शन करके उनके मन की शंकाओं का समाधान हो गया है। इन दो मुनियों ने उन्हें ‘सन्मति’ का नाम दिया और खुद भी उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे।
4). पराक्रम ने बनाया अतिवीर – युवावस्था में लुका-छिपी के खेल के दौरान कुछ साथियों को एक बड़ा फनधारी साँप दिखाई दिया। जिसे देखकर सभी साथी डर से काँपने लगे, कुछ वहाँ से भाग गए। लेकिन वर्द्धमान महावीर वहाँ से हिले तक नहीं। उनकी शूर-वीरता देखकर साँप उनके पास आया तो महावीर तुरंत साँप के फन पर जा बैठे। उनके वजन से घबराकर साँप बने संगमदेव ने तत्काल सुंदर देव का रूप धारण किया और उनके सामने उपस्थित हो गए। उन्होंने वर्द्धमान से कहा- स्वर्ग लोक में आपके पराक्रम की चर्चा सुनकर ही मैं आपकी परीक्षा लेने आया था। आप मुझे क्षमा करें। आप तो वीरों के भी वीर ‘अतिवीर’ है।
आचार-संहिता –
महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह इस प्रकार है –
- किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना।
- किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना।
- मिथ्या भाषण न करना।
- आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना।
- वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना।
जैन ग्रंथ एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। आपने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बनाकर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। आपने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रांति सम्पन्न की।
उद्घोष किया कि आँख मूँदकर किसी का अनुकरण या अनुसरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, रूढ़ि नहीं है, प्रदर्शन नहीं है, किसी के भी प्रति घृणा एवं द्वेषभाव नहीं है। आपने धर्मों के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाई। धर्म को कर्म-कांडों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाला। घोषणा की कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में, बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परमशक्ति का अवतार बनकर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन हो जाने में नहीं है, बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है।
शिक्षा – Vows
सत्य- सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
अहिंसा- इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
अपरिग्रह- परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
क्षमा- क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- ‘मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।’ वे यह भी कहते हैं ‘मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।’
धर्म– धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।
भगवान महावीर के प्रमुख ग्यारह गणधर – Mahavir Swami Gandhar
- श्री इंद्र्भूती जी
- श्री अग्निभूति जी
- श्री वायुभूति जी
- श्री व्यक्त स्वामीजी
- श्री सुधर्मा स्वामीजी
- श्री मंडितपुत्रजी
- श्री मौर्यपुत्र जी
- श्री अकम्पित जी
- श्री अचलभ्राता जी
- श्री मोतार्यजी
- श्री प्रभासजी
निर्वाण – Mahavir Swami Death
विश्वबंधुत्व और समानता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्णा 14 (दीपावली की पूर्व संध्या) को निर्वाण को प्राप्त हुये।
भगवान महावीर की कई प्राचीन प्रतिमाओं के देश और विदेश के संग्रहालयों में दर्शन होते है। महाराष्ट्र के एल्लोरा गुफाओं में भगवान महावीर की प्रतिमा मौजूद है। कर्नाटक की बादामी गुफाओं में भी भगवान महावीर की प्रतिमा स्थित है।
महावीर स्वामी जयंती – Mahavir Jayanti
पूरे भारत वर्ष मे बड़ी उत्साह के साथ महावीर जयंती भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे मनाई जाती है। जैन समाज द्वारा मनाए जाने वाले इस त्योहार को महावीर जयंती के साथ-साथ महावीर जन्म कल्याणक नाम से भी जानते है। महावीर जयंती हर वर्ष चैत्र माह के 13 वे दिन मनाई जाती है। महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं। उसके बाद भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा निकालने के तत्पश्चात् स्वर्ण एवं रजत कलशों से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है।
इस दिन हर तरह के जैन दिगम्बर, श्वेताम्बर आदि एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते है। भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे मनाए जाने वाले इस त्योहार मे पूरे भारत मे सरकारी छुट्टी घोषित की गयी है। जैन समाज द्वारा दिन भर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करके महावीर का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
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A very good tips