बड़ा गणपति मंदिर का इतिहास | Bada Ganpati Mandir in Hindi

Bada Ganpati Temple in Hindi / बड़ा गणपति मंदिर, मध्य प्रदेश के इन्दौर में स्थित हैं। यह मंदिर गणेश जी की विशाल प्रतिमा के कारण विख्‍यात है। गणेश जी की यह मूर्ति 25 फीट ऊंची है जिसे पूरी दुनिया में गणपति की सबसे ऊंची मूर्ति माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1875 में किया गया था। कहा जाता मंदिर हैं की इस मंदिर की आधारशिला एक स्वप्न के बाद रखी गई थी।

बड़ा गणपति मंदिर का इतिहास | Bada Ganpati Mandir in Hindi

बड़ा गणपति मंदिर का इतिहास व जानकारी – Bada Ganpati Mandir History in Hindi

बड़ा गणपति मंदिर इन्दौर के सभी मंदिरों में सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। इस मंदिर में पूजा करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। हर साल, गणेश चतुर्थी के दिन बड़ा गणपति मंदिर में हज़ारों एवं लाखों भक्तजन भगवान के दर्शन के लिए उपस्थित होते हैं।

बड़ा गणपति मंदिर में भक्तजन चाहें वे निम्न वर्ग तथा उच्च स्तर के हों सभी एकत्रित होकर भगवान गणेश जी की आराधना करते हैं। धन, दान के रूप में ग़रीबों तथा ज़रूरतमंद लोगों को दिया जाता है। भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा के कारण ही मंदिर का नाम बड़ा गणपति मंदिर रखा गया।

पौराणिक कथा के अनुसार इन्दौर के एक नागरिक ने स्वप्न में भगवान गणेश को देखा तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उन्होंने गणेशजी की मूर्ति स्थापित करने के लिए तैयारियाँ प्रारंभ कर दीं। यह इस मूर्ति के विन्‍यास का सबसे दिलचस्‍प किस्‍सा है।

मंदिर का निर्माण कार्य सन 1901 में पं. नारायण दाधीच द्वारा पूरा किया गया था। भगवान गणेश यहां पर 25 फीट ऊंची प्रतिमा के रूप में दर्शन देते हैं। इस प्रतिमा के निर्माण में चूना, गुढ, रेत, मैथीदाना, मिट्टी, सोना, चांदी, लोहा, अष्टधातु, नवरत्न का उपयोग किया गया है। साथ ही इस प्रतिमा के निर्माण में सभी तीर्थ नदियों के जल का उपयोग किया गया है। मूर्ति 4 फीट ऊंचे चबूतरे पर विराजमान है। मूर्ति के निर्माण में करीब 3 साल लगे थे।

गणेश जी का श्रृंगार में करीब 8 दिन का समय लगता है। साल में चार बार यह चोला चढ़ाया जाता है। जिसमें भाद्रपद सुदी चतुर्थी, कार्तिक बदी चतुर्थी, माघ बदी चतुर्थी और बैसाख बदी चतुर्थी पर चोला और सुंदर वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है। इसमें करीब सवा मन घी और सिंदूर का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में मंदिर के रख रखाव की जिम्मेदारी नारायण दाधीच की तीसरी पीढ़ी के पं धनेश्वर दाधीच देख रहे हैं।


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