कौलेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास और जानकारी | Kauleshwari Devi Temple

कौलेश्वरी देवी मंदिर झारखण्ड के चतरा जिले के कोल्हुआ पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर 10 वीं सदी में बनाया गया था और हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों का एक जैसा लोकप्रिय तीर्थ स्थल है।

कौलेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास और जानकारी | Kauleshwari Devi Temple History in Hindi

कौलेश्वरी देवी मंदिर की जानकारी – Kauleshwari Devi Temple History in Hindi 

कौलेश्वरी मंदिर चतरा के एक पर्वत पर स्थित हैं। हंटरगंज ब्लॉक के 40.14 एकड़ में फैला यह क्षेत्र झारखंड के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशन की तरह है। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना रहा यह पर्वत हिंदू, जैनबौद्ध धर्म का संगम माना जाता है। नवरात्र के अवसर पर पूरे इलाके के लोगों की आस्था यहां उमड़ती है। यहां हर साल चीन, बर्मा, थाईलैंड, श्रीलंका, ताइवान आदि देशों से काफी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।

डॉ एम.ए. स्टिन के अनुसार यहां पर दसवें र्तीथाकर शीतला स्वामी का जन्म हुआ था। उनके भक्तों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया था। मन्दिर के पास एक गुफा भी है जिसमें 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ की प्रतिमा देखी जा सकती है। इस प्रतिमा में उनके गलें में सांप है और वह साधना में लीन हैं कौलेश्वरी देवी (Kauleshwari Devi) के मन्दिर तक पहुंचना दुर्गम है। लेकिन इसके आस-पास खूबसूरत जंगल हैं। वसंत पंचमी और राम नवमी के दौरान मंदिर कोल्हुआ मेला मनाया जाता है। मंदिर के देवता को झारखंड के कोई समुदाय के लोग पूजते है।

माँ कौलेश्वरी के बारे मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मन्नत रखता है माँ उसकी मुरादे अवश्य पूरी करती है कोई भी भक्त यहाँ से कभी निराश नहीं लौटा है। यहाँ खासकर भक्तगण संतान प्राप्ति के आते है यहाँ मौजूद एक तालाब की बिशेषता यह है की इसके अन्दर सात कुवें है जिसमे पानी सालो भर कभी सूखता नहीं है कहते है की यहाँ द्रोपदी (पांचाली) पांडवो के साथ अज्ञातवास में यहाँ आयी थी और वो यहाँ स्नान किया करते थे। भक्तो को मंदिर तक पहुंचने के लिए खड़ी पहाड़ी की चढाई करनी पड़ती है।

कौलेश्वरी पर्वत के मंदिरों-मूर्तियों पर सबसे पहले अंग्रेज अफसर सर विलियम हंटर का ध्यान गया। उन्होंने इसका उल्लेख डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में किया। सन् 1900 में एक अन्य अफसर जेएम स्टेन भी कोल्हुआ पहाड़ आए थे। उन्होंने भी अपनी यात्रा वृतांत में पहाड़ पर स्थित प्रतिमाओं और उनकी विशेषताओं का वर्णन किया है। 1914 में प्रकाशित एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी मंदिर की ऐतिहासिकता-पौराणिकता का उल्लेख किया गया।


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