Amer Fort / आमेर का क़िला राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में स्थित एक ऐतिहासिक नगर आमेर में राजपूत वास्तुकला का अद़भुत उदाहरण है। आमेर का क़िला दिल्ली – जयपुर राजमार्ग की जंगली पहाड़ियों के बीच, अपनी विशाल प्राचीरों सहित नीचे माओटा झील के पानी में छवि दिखाता हुआ खड़ा है। आमेर का किला हिन्दू कला के लिये प्रसिद्ध है. किले में बहोत से दर्शनीय पथदीप, दरवाजे और छोटे तालाब बने हुए है। आमेर किले में पानी का यह मुख्य स्त्रोत है। प्राचीन काल में अम्बावती और अम्बिबकापुर के नाम से आमेर कछवाह राजाओं की राजधानी रहा है।
आमेर के किले की जानकारी – Amer Fort Information in Hindi
आमेर 4 वर्ग किलोमीटर (1.5 वर्ग मीटर) में फैला एक शहर है जो भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है। आमेर किले ऊँचे पर्वतो पर बना हुआ है, जयपुर क्षेत्र का यह मुख्य पर्यटन क्षेत्र है। राजस्थान के आकर्षणों में ऐतिहासिक आमेर अपनी गौरवशाली कथाओं और नक्काशी, कलात्मक शैली, शीश महल के लिए विश्व प्रसिद्ध है। आमेर का किला उच्च् कोटि की शिल्प-कला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। इस किले के अंदर बने महल अपने आपमें बे-मिसाल हैं। इन्हीं महलों में शामिल है शीश महल जो अपनी आलीशान अद्भुत नक्काशी के लिए जाना जाता है।
ऐतिहासिक किले को राजा मानसिंह, राजा जयसिंह, और राजा सवाई सिंह ने बनवाया था जो अपनी 200 साल पुरातन की ऐतिहासिक गौरवशाली गाथा प्रस्तुत करता है। इस किले को लाल पत्थरों से बनाया गया है और इस महल के गलियारे सफ़ेद संगमरमर के बने हुए हैं। यह किला काफी ऊंचाई पर बना हुआ है इसलिए इस तक पहुँचने के लिए काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।
किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास और शीश महल ओट जय मंदिर और सुख निवास भी बना हुआ है जहा हमेशा ठंडी और ताज़ा प्राकृतिक हवाये चलती रहती है। इसीलिये आमेर किले को कई बार आमेर महल भी कहा जाता है। इस किले के चारो ओर मोटी दीवारे हैं जिसे लाल बलुआ पत्थर द्वारा किया गया हैं। इस महल में पहले राजपूत महाराजा और उनका परीवार रहता था। किले के प्रवेश द्वारा गणेश गेट पर चैतन्य पंथ की देवी सिला देवी का मंदिर बना हुआ है जो राजा मानसिंह को दिया गया था जब उन्होंने 1604 में बंगाल में जैसोर के राजा को पराजीत किया था।
जयगढ़ किले के साथ यह महल चील का टीला के ऊपर ही स्थापित किया गया है। महल और जयगढ़ किले को एक कॉम्पलेक्स ही माना जाता है क्योकि ये दोनों ही एक गुप्त मार्ग से जुड़े हुए है। युद्ध के समय इस मार्ग का उपयोग शाही परिवार के सदस्यों को बाहर निकालने में किया जाता है जिन्हें गुप्त रास्ते से आमेर किले से निकालकर जयगढ़ किले में ले जाया जाता था।
2013 में कोलंबिया के फनों पेन्ह में ली गयी 37 वी वर्ल्ड हेरिटेज मीटिंग में आमेर किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था। एक सर्वेक्षण के अनुसार यहाँ सालाना बिस लाख पर्यटक आते हैं।
किले का प्रारंभिक इतिहास – Amer Fort History in Hindi
आमेर के अतीत पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि छ: शताब्दियों तक यह नगरी ढूंढाढ़ क्षेत्र के सूर्यवंशी कछवाहों की राजधानी रही है। इस किले को अपना नाम आमेर यानी भगवान शिव के एक नाम अंबिकेश्वर पर पड़ा है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि यह नाम देवी दुर्गा के नाम अंबा से लिया गया है।
बलुआ पत्थर से बने आमेर के किले का निर्माण 1558 में राजा भारमल ने शुरू करवाया था। निर्माण की प्रक्रिया बाद में राजा मानसिंह और राजा जयसिंह के समय में भी जारी रही। करीब सौ वर्ष के अंतराल के बाद राजा जयसिंह सवाई के काल में यह किला बन कर पूरा हुआ। उसी दौर में कछवाहा राजपूत और मुगलों के बीच मधुर संबंध भी बने, जब राजा भारमल की पुत्री का विवाह अकबर से हुआ था। बाद में राजा मानसिंह अकबर के नवरत्नों में शामिल हुए और उनके सेनापति बने। वही आमेर घाटी और इस किले का स्वर्णिम काल था।
कछवाहों द्वारा अपनी राजधानी जयपुर स्थानांतरित करने के बाद आमेर का वैभव लुप्त होने लगा। लेकिन यह गौरवशाली किला आज भी उसी शान से खड़ा है। बाहरी परिदृश्य में यह किला मुगल शैली से प्रभावित दिखाई पड़ता है। जबकि अंदर से यह पूर्णतया राजपूत स्थापत्य शैली में है। पर्यटक आमेर किले के ऊंचे मेहराबदार पूर्वी द्वार से प्रवेश करते हैं। यह द्वार सूरजपोल कहलाता है।
इसके सामने एक बड़ा सा चौक स्थित है। इसे जलेब चौक कहते हैं। आमेर फोर्ट पहाड़ी के ढलान पर विभिन्न सोपानों पर बना है। जलेब चौक इनमें सबसे निचले सोपान पर स्थित है। विशाल चौक के तीन ओर कुछ कक्ष बने हैं। बताते हैं कि उस समय यहां सैन्य आवास तथा घुड़साल आदि होते थे। आज इनमें हैंडीक्राफ्ट आदि की दुकानें हैं। इसके पश्चिम दिशा में चांदपोल नामक एक अन्य द्वार है।
आमेर किले की वास्तुकला – Amber Fort Architecture in Hindi
आमेर का किला पारंपरिक हिंदू और राजपुताना शैली में बना हुआ है, जिसको संगमरमर और लाल बलुआ पत्थरों बनाया गया है। हालाँकि बाहरी परिदृश्य में यह किला मुगल शैली से प्रभावित दिखाई पड़ता है। इस किले में आपको प्राचीन शिकार शैलियों और महत्वपूर्ण राजपूत शासकों के चित्र देखने को मिलेंगे। आमेर का किला चार भागों में विभाजित है जिसका प्रत्येक भाग अपने अलग प्रवेश द्वार और आंगन से सजा हुआ है। इस विशाल किले के अंदर बने ऐतिहासिक महल, उद्यान, जलाशय एवं सुंदर मंदिर इसकी खूबसूरती को और बढ़ाते हैं।
इस किले के मुख्य द्वार को ‘सूरज पोल’ या सूर्य द्वार कहा जाता है जो मुख्य प्रांगण की ओर जाता है। पूर्व की ओर स्थित इस प्रवेश द्वार का नाम सूर्य द्वार उगते सूर्य के संबंध में इसकी स्थिति की वजह से पड़ा है। इस किले में सीढ़ियों की मदद से आप महल परिसर में ‘जलेब चौक’ नामक एक प्रभावशाली प्रांगण की तरफ पहुँच जाते हैं। यह सीढ़ियाँ सीतला माता मंदिर की ओर जाती हैं। जलेब चौक का उपयोग सेना द्वारा अपने युद्ध के समय को फिर से प्रदर्शित करने के लिए किया गया था जहां महिलाओं को केवल खिड़कियों के माध्यम इसे देख सकती थी।
दीवान-ए-आम – Diwan-E-Khas
दीवान-ए-आम, को आम जनता के लिए बनाया गया था, इस भव्य हॉल में सम्राटों द्धारा आम जनता की समस्याएं सुनी जाती थी और उसका निस्तारण किया जाता है। इस हॉल में बेहद आर्कषक 40 खंभे बने हुए हैं, जिसमें से कुछ संगमरमर के भी हैं, वहीं इस खंभों पर बेशकीमती स्टॉन्स लगे हुए हैं। इस खास ऐतिहासिक इमारत के पत्थरों पर अलग-अलग बेहद सुंदर चित्रों की मूर्तियां खुदी हुई हैं। दीवान ए आम के सामने सुख निवास स्थित है जिसके दरवाजों को हाथी दांत से सजाया गया है।
सुख निवास – Sukh Niwas
दीवान-ए-आम के पास स्थित सुख निवास चंदन और हाथी दांत से बना है, बताया जाता है कि यह इस जगह का इस्तेमाल राजा अपनी रानियों के साथ समय बिताने के लिए करते थे, जिसकी वजह से इस जगह को सुख निवास कहा जाता है। सुख निवास की अद्भुत कलाकारी और बेहतरीन नक्काशी पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचती है।
शीश महल – Sheesh Mahal
इस किले में शीश महल को बेहद अनूठे तरीके से निर्मित किया गया है, शीश महल के अंदर जब कुछ प्रकाश की किरण पड़ती है, तब पूरे हॉल में रोशनी हो जाती है। बताया जाता है कि इस हाल को प्रकाशित करने के लिए सिर्फ एक मोमबत्ती की रोशनी ही काफी है।
आमेर के किले में लाइट एवं साउंड शो – Amer Fort Light Show in Hindi
इस विशाल किले में रोजाना शाम को लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है। यह शो पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचता है। वहीं यह शो आमेर के किले के खूबसूरत इतिहास एवं साहसी राजाओं के बारे में बताया जाता है। यह शो करीब 50 मिनट तक चलता है।
आमेर किले के बारे में रोचक बाते – Interesting Facts About Amer Fort Jaipur in Hindi
- अम्बेर में स्थापित, जयपुर से 11 किलोमीटर की दुरी पर स्थित आमेर किला कछवाह राजपूतो की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन जयपुर के बनने के बाद जयपुर उसकी राजधानी बन गयी थी।
- आमेर घाटी को फूलों की घाटी कहा जाता है। घाटी में प्रवेश करते ही दूर से विशाल दुर्ग की प्राचीर, उसके गुंबद, बुर्ज और प्रवेशद्वार नजर आने लगते हैं। जिस पहाड़ी पर आमेर दुर्ग स्थित है उसके सामने एक सुंदर झील है। इसे मावठा सरोवर कहते हैं।
- आमेर का नामकरण अम्बा माता से हुआ था, जिन्हें मीनाओ की देवी भी कहा जाता था।
- महल के मुख्य द्वार के बाहर कछवाहा राजाओं की कुल देवी शिला माता का मंदिर है।
- हिन्दू और फ़ारसी शैली के मिश्रित स्वरूप का यह क़िला देश में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है।
- महल में घुसते ही 20 खम्भों का राजपूत भवन शैली पर सफ़ेद संगमरमर व लाल पत्थर का बना दीवाने आम है।
- रानियों के लिये अनेक निजी कक्ष भी निर्मित है। रानियों के निजी कक्षों में जालीदार परदों के साथ खिड़कियाँ हैं ताकि राज परिवार की महिलाऐं शाही दरबार में होने वाली कारवाइयों को गोपनीयता पूर्वक देख सकें।
- महल का एक और आकर्षण प्रवेश द्वार गणेश गेट है, जिसे प्राचीन समय की कलाकृतियों और आकृतियों से सजाया गया है।
- आमेर का किला गुलाबी नगरी जयपुर से केवल 11 किलोमीटर दूर है। किले तक जाने के लिए हाथी की सवारी भी की जा सकती है। हालांकि यह छोटा सा ट्रिप काफी महंगा होता है।
आमेर फोर्ट कब और कैसे जाएँ – How To Reach Amber Fort & Best Time in Hindi
सर्दियां में अक्टूबर से मार्च तक होती हैं और जयपुर शहर में छुट्टियों का आनंद लेने का सबसे अच्छा समय है। वैसे तो आप किसी भी समय यहां जा सकते हैं। आमेर किला जयपुर से 11 किमी उत्तर में स्थित है। जयपुर से किले के लिए हर 30 मिनट में हवा महल से बसें रवाना होती हैं। इसके अलावा आप कैब और टैक्सी की मदद से भी पहुँच सकते हैं। जयपुर रेलवे, वायुमार्ग और रोडवेज के माध्यम से देश के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
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