Zoroastrianism / Parsi Dharma / पारसी धर्म या ‘ज़रथुष्ट्र (ज़रथुष्त्र) धर्म’ विश्व का अत्यंत प्राचीन धर्म है, जिसकी स्थापना आर्यों की ईरानी शाखा के एक पैगंबर ज़रथुष्ट्र ने की थी। पारसी धर्म (Parsi Dharma) के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो ‘आहुरा माज्दा’ कहलाते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं। पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।
पारसी धर्म का इतिहास – Parsi Dharma History & Information in Hindi
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प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी। इस्लाम धर्म के पूर्व प्राचीन ईरान में ज़रथुष्ट्र धर्म का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों को जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये। वर्तमान में भारत में उनकी जनसंख्या लगभग एक लाख है, जिसका 70% बम्बई में रहते हैं।
जरथुस्त्र व उनके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास ज्ञात नहीं है। कारण यह कि पहले सिकंदर की फौजों ने तथा बाद में अरब आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का लगभग सारा धार्मिक एवं सांस्कृतिक साहित्य नष्ट कर डाला था। आज हम इस इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत है।
पैगम्बर ज़रथुष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना जाता है। परन्तु ऋग्वेदिक ऋषियों के विपरीत ज़रथुष्ट्र ने एक ईश्वरीय धर्म का प्रतिपादन किया। सम्भवत: किसी एक ईश्वरीय धर्म के वे प्रथम पैगम्बर थे। ईसा मसीह की ही भांति पारसी धर्म की स्थापना करने वाला ज़रथुष्ट्र के माने में मान्यता है कि उनका जन्म लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व एक कुंआरी माता “दुघदोवा” से हुआ था। उनके नाम पर ही पारसियों का धर्म जोरोस्ट्रियन कहलाता है।
हालाँकि इतिहासकारों का मानना है कि वे 1700-1500 ई.पू. के बीच सक्रिय थे। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुघदोवा (दोग्दों) था। 30 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई।
फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। उनके अनुसार ईश्वर एक ही है (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी)। इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने ‘अहुरा मजदा’ कहा अर्थात ‘महान जीवन दाता’। अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व है, शक्ति है, ऊर्जा है।
ज़रथुस्त्र की मृत्यु के बाद (551 ई. पू.) उनकी शिक्षाएं धीरे-धीरे बैक्ट्रिया और फ़ारस में फैलीं। तीसरी सदी में फ़ारस में सासेनियाई राजवंश के उदय के साथ पारसी धर्म को मान्यता मिलने लगी और इसे देश का आधिकारिक धर्म बना दिया गया। इसके पुरोहितों के पास काफ़ी अधिकार आ गए।
633 ई. में अरब मुसलमानों का आक्रमण शुरू होने पर इराक़ को और फिर 651 ई. में ईरान को जीत लिया गया। अग्नि मंदिर नष्ट किए गए, धार्मिक ग्रंथ जलाए गए और लोगों को बलपूर्वक धर्मांतरित किया गया। कई लोग भागकर रेगिस्तान या पहाड़ों में छिप गए। अन्य दक्षिण ईरान के प्राचीन राज्य पर्सिस चले गए और वहां उन्होंने स्वयं को सुरक्षित कर लिया। कुछ अन्य हॉरमुज़ खाड़ी पर स्थित हॉरमुज़ तक पहुंच गए। वहां वे 100 साल रहे और गुप्त रूप से पालदार जहाज़ बनाते रहे। अंतत: वे जहाज़ से भारत रवाना हुए और गुजरात में काठियावाड़ के सिरे पर मछुआरों के दिऊ गांव पहुंचे। भारतीय पारसी इन्हीं प्रारंभिक बसने वालों के वंशज हैं।
ये समुदाय आगे चलकर भारत के सबसे अमीर लोगों का समूह बना, जिनका मुंबई के विकास में भी बड़ा योगदान माना जाता है। पारसी समुदाय के चमकते सितारों में उद्योगपति टाटा समूह से लेकर रॉकस्टार फ्रेडी मर्करी तक शामिल हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नौरोजी और भीकाजी कामा भी पारसी ही थे।
पारसी धर्मग्रंथ – Zoroastrianism Scripture
पारसियों का प्रवित्र धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, जो ऋग्वेदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखी गई है। ईरान के सासानी काल में जेंद अवेस्ता का पहलवी भाषा में अनुवाद किया गया, जिसे ‘पंजंद’ कहा जाता है। परन्तु इस ग्रंथ का सिर्फ़ पाँचवा भाग ही आज उपलब्ध है। इस उपलब्ध ग्रंथ भाग को पांच भागों में बांटा गया है-
- यस्त्र (यज्ञ)– अनुष्ठानों एवं संस्कारों के मंत्रों का संग्रह,
- विसपराद– राक्षसों एवं पिशाचों को दूर रखने के नियम,
- यष्ट– पूजा-प्रार्थना,
- खोरदा अवेस्ता– दैनिक प्रार्थना पुस्तक,
- अमेश स्पेन्ता– यज़तों की स्तुति।
“किस्सा ए संजान” पारसियों का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना बहमान कैकोबाद ने की थी।
एक ईश्वरीय धर्म –
पारसी या जरथुस्ट्र लोग एक ईश्वर ‘अहुरमज्द’ में आस्था रखते हुए भी अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं नकारते। यद्यपि अहुरमज्द उनके सर्वोच्च देवता हैं, परन्तु दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्मकांडों में ‘अग्नि’ उनके प्रमुख देवता के रूप में दृष्टिगत होते हैं। इसीलिए पारसियों को अग्निपूजक भी कहा जाता है। पारसियों की शव-विसर्जन विधि विलक्षण है। वे शवों को किसी ऊँची मीनार पर खुला छोड़ देते हैं, जहाँ गिद्ध-चील उसे नोंच-नांचकर खा जाते हैं। बाद में उसकी अस्थियाँ एकत्रित कर दफना दी जाती है। परन्तु हाल के वर्षों में इस परम्परा में कमी हो रही है और शव को सीधे दफनाया जा रहा है।
धर्मदीक्षा संस्कार –
ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों के दो अत्यंत पवित्र चिह्न हैं- सदरो (पवित्र कुर्ती) और पवित्र धागा। धर्मदीक्षा संस्कार के रूप में ज़रथुष्ट्रधर्मी बालक तथा बालिका- दोनों को एक विशेष समारोह में ये पवित्र चिह्न दिये जाते हैं, जिन्हें वे आजीवन धारण करते हैं। मान्यता है कि इन्हें धारण करने से व्यक्ति दुष्प्रभावों और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षित रह सकता है। विशेष आकृति वाली सदरों को निर्माण सफ़ेद सूती कपड़े के नौ टुकड़ों से किया जाता है। इसमें एक जेब होती है, जिसे ‘किस्म-ए-कर्फ’ कहते हैं। पवित्र धागा, जिसे ‘कुश्ती’ कहते हैं, ऊन के 72 धागों को बंटकर बनाते हैं और उसे कमर के चारों ओर बांध दिया जाता है, जिसमें दो गांठें सामने और दो गांठे पीछे बांधी जाती हैं।
पारसी धर्म के बारे में और अधिक जानकारी –
पारसी समुदाय में बाहर के लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता। यदि किसी पारसी लड़की ने किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह किया है तो उसके पति तथा बच्चों को पारसी समुदाय में प्रवेश नहीं दिया जाता। इसी तरह लड़के ने बाहर के धर्म में विवाह किया है तो उसकी पत्नी को भी पारसी बनने की अनुमति नहीं होती।
पारसियों का नया वर्ष (Parsi New Yeas) 24 अगस्त को आरंभ होता है। इस दिन को नवरोज भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन जरस्थ्रु का जन्म हुआ था। पारसी एक साल को 360 दिन का मानते हैं। बाकी पांच दिन को वे गाथा कहते हैं। इन पांच दिनों में वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
पारसी धर्म को मानने वाले लोग ईरान, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बहुत से देशों में फैले हुए हैं। लेकिन पारसी समुदाय के सामने अब ये समस्या मुंह बाए खड़ी है कि घटती जनसंख्या के साथ साथ अपने धर्म और संस्कृति को कैसे बचाया जाए। इनकी घटती आबादी की वजह से पारसी लोगों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। दुनिया भर में इनकी औसत संख्या 2004 से 2012 के बीच 10 प्रतिशत से भी ज्यादा गिर कर 112,000 से भी कम रह गई है।
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