पारसी धर्म का इतिहास, जानकारी | Parsi Zoroastrianism in Hindi

Zoroastrianism / Parsi Dharma in Hindi / पारसी धर्म या ‘ज़रथुष्ट्र (ज़रथुष्त्र) धर्म’ विश्व का अत्यंत प्राचीन धर्म है, जिसकी स्थापना आर्यों की ईरानी शाखा के एक पैगंबर ज़रथुष्ट्र ने की थी। पारसी धर्म (Parsi Dharma) के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो ‘आहुरा माज्दा’ कहलाते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं। पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।

पारसी धर्म का इतिहास, जानकारी, तथ्य | Zoroastrianism History in Hindi

पारसी धर्म की जानकारी – Parsi Dharm Information in Hindi

आज का ईरान और अफगानिस्तान स्थित हैं, वही जगह कभी पारसी धर्म का गढ़ हुवा करता था। प्राचीन कल में इस जगह को पर्सिया के नाम से जाना जाता था। पारसी धर्म की अग्रणी धार्मिक ग्रंथ आवेस्ता है, जिसे जोरस्त्रियन धर्म के महत्वपूर्ण भाग में से एक माना जाता है। आवेस्ता वेदों की तरह होती है और यह जोरस्त्रियन धर्म के सिद्धांतों, पूजा विधियों, उपासना विधियों, नैतिकता और शिक्षाओं को विस्तार से वर्णित करती है।

पारसी दर्शन के अनुसार संसार दैवी और दानवी शक्तियों का प्र्त्क अहुरमजदा है। यह महान देवता है, जिसने पृथ्वी, मनुष्य व स्वर्ग की रचना की। अहुरमजदा शक्ति कहती है कि ”ऐ मनुष्यों बुरी बात न सोचो सद्मार्ग न छोड़ो तथा पाप न करों। पारसी धर्म के अनुसार शरीर के दो भाग है 1. शारीरिक तथा 2. अध्यात्मिक. मरने के बाद शरीर तो नष्ट हो जाता है किन्तु आध्यात्मिक भाग जीवित रहता है। पारसी धर्म दर्शन के अनुसार वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी से मिलकर बना है। जरथुस्त्र के कही गई बातें पांच गाथा में समाहित हैं। पारसी धर्म में रोशनी और बुद्धि को प्राथमिकता दी गई।

ऋग्वेदिक काल में ईरान को पारस्य देश कहा जाता था। 1380 ईस्वी पूर्व जब ईरान में धर्म-परिवर्तन की लहर चली तो कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन जिन्हें यह मंजूर नहीं था वे देश छोड़कर भारत आ गए। इन्हें भारत के गुजरात में ठिकाना मिला। यहां इन्होंने इंडियन पारसी कम्युनिटी की स्थापना की। जोरोएस्ट्रिनिइज्म को ही ईरान में पर्शा बोला जाता है और ये गुजरात आकर पारसी बन गए। अग्नि मंदिर पारसी लोगों का धर्म स्थल है। भारत में पारसी लोगों के प्रार्थन स्थल को आतिश बेहराम या दर ए मेहर कहा जाता है। आतिश का अर्थ है अग्नि। पारसियों के धर्म स्थल में कोई मूर्ति नहीं होती है।

सबसे खास बात ये कि समाज के लोग धर्म-परिवर्तन के खिलाफ होते हैं। अगर पारसी समाज की लड़की किसी दूसरे धर्म में शादी कर ले, तो उसे धर्म में रखा जा सकता है, लेकिन उसके पति और बच्चों को धर्म में शामिल नहीं किया जाता है। ठीक इसी तरह लड़कों के साथ भी होता है। लड़का भी यदि किसी दूसरे समुदाय में शादी करता है तो उसे और उसके बच्चों को धर्म से जुड़ने की छूट है, लेकिन उसकी पत्नी को नहीं।

पारसी धर्म का इतिहास – Parsi Dharma History in Hindi

प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी। इस्लाम धर्म के पूर्व प्राचीन ईरान में ज़रथुष्ट्र धर्म का ही प्रचलन था।

जरथुस्त्र का जन्म पश्चिमी ईरान के अजरबेजान प्रान्त में हुआ था. उनके पिता का नाम पोमशष्पा और माता का नाम दुरोधा था। तीस वर्ष की आयु में सबलाना पर्वत पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, अधिकाँश विद्वान जरथुष्ट्र का काल 600 ई.पू. मानते है।

सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों को जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये। वर्तमान में भारत में उनकी जनसंख्या लगभग एक लाख है, जिसका 70% बम्बई में रहते हैं।

जरथुस्त्र व उनके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास ज्ञात नहीं है। कारण यह कि पहले सिकंदर की फौजों ने तथा बाद में अरब आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का लगभग सारा धार्मिक एवं सांस्कृतिक साहित्य नष्ट कर डाला था। आज हम इस इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत है।

पैगम्बर ज़रथुष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना जाता है। परन्तु ऋग्वेदिक ऋषियों के विपरीत ज़रथुष्ट्र ने एक ईश्वरीय धर्म का प्रतिपादन किया। सम्भवत: किसी एक ईश्वरीय धर्म के वे प्रथम पैगम्बर थे। ईसा मसीह की ही भांति पारसी धर्म की स्थापना करने वाला ज़रथुष्ट्र के माने में मान्यता है कि उनका जन्म लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व एक कुंआरी माता “दुघदोवा” से हुआ था। उनके नाम पर ही पारसियों का धर्म जोरोस्ट्रियन कहलाता है।

हालाँकि इतिहासकारों का मानना है कि वे 1700-1500 ई.पू. के बीच सक्रिय थे। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुघदोवा (दोग्दों) था। 30 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई।

फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। उनके अनुसार ईश्वर एक ही है (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी)। इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने ‘अहुरा मजदा’ कहा अर्थात ‘महान जीवन दाता’। अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व है, शक्ति है, ऊर्जा है।

ज़रथुस्त्र की मृत्यु के बाद (551 ई. पू.) उनकी शिक्षाएं धीरे-धीरे बैक्ट्रिया और फ़ारस में फैलीं। तीसरी सदी में फ़ारस में सासेनियाई राजवंश के उदय के साथ पारसी धर्म को मान्यता मिलने लगी और इसे देश का आधिकारिक धर्म बना दिया गया। इसके पुरोहितों के पास काफ़ी अधिकार आ गए।

633 ई. में अरब मुसलमानों का आक्रमण शुरू होने पर इराक़ को और फिर 651 ई. में ईरान को जीत लिया गया। अग्नि मंदिर नष्ट किए गए, धार्मिक ग्रंथ जलाए गए और लोगों को बलपूर्वक धर्मांतरित किया गया। कई लोग भागकर रेगिस्तान या पहाड़ों में छिप गए। अन्य दक्षिण ईरान के प्राचीन राज्य पर्सिस चले गए और वहां उन्होंने स्वयं को सुरक्षित कर लिया। कुछ अन्य हॉरमुज़ खाड़ी पर स्थित हॉरमुज़ तक पहुंच गए। वहां वे 100 साल रहे और गुप्त रूप से पालदार जहाज़ बनाते रहे। अंतत: वे जहाज़ से भारत रवाना हुए और गुजरात में काठियावाड़ के सिरे पर मछुआरों के दिऊ गांव पहुंचे। भारतीय पारसी इन्हीं प्रारंभिक बसने वालों के वंशज हैं।

ये समुदाय आगे चलकर भारत के सबसे अमीर लोगों का समूह बना, जिनका मुंबई के विकास में भी बड़ा योगदान माना जाता है। पारसी समुदाय के चमकते सितारों में उद्योगपति टाटा समूह से लेकर रॉकस्टार फ्रेडी मर्करी तक शामिल हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नौरोजी और भीकाजी कामा भी पारसी ही थे।

पारसी धर्मग्रंथ – Zoroastrianism Scripture (Parsi holy book )

पारसियों का प्रवित्र धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, जो ऋग्वेदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखी गई है। ईरान के सासानी काल में जेंद अवेस्ता का पहलवी भाषा में अनुवाद किया गया, जिसे ‘पंजंद’ कहा जाता है। परन्तु इस ग्रंथ का सिर्फ़ पाँचवा भाग ही आज उपलब्ध है। इस उपलब्ध ग्रंथ भाग को पांच भागों में बांटा गया है-

  1. यस्त्र (यज्ञ)– अनुष्ठानों एवं संस्कारों के मंत्रों का संग्रह,
  2. विसपराद– राक्षसों एवं पिशाचों को दूर रखने के नियम,
  3. यष्ट– पूजा-प्रार्थना,
  4. खोरदा अवेस्ता– दैनिक प्रार्थना पुस्तक,
  5. अमेश स्पेन्ता– यज़तों की स्तुति।

“किस्सा ए संजान” पारसियों का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना बहमान कैकोबाद ने की थी।

नया साल – Parsi New Year

नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। जिसे सभी पारसी बड़े धूमधाम से मनाते है तथा एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। इस दिन अग्नि मन्दिरों में पूजा आदि के कार्यक्रम होते हैं। ईरान में इस दिन को ऐदे नवरोज कहा जाता हैं। पारसियों में 1 वर्ष 360 दिन का और शेष 5 दिन गाथा के लिए होते हैं। गाथा यानी अपने पूर्वजों को याद करने का दिन। साल खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले से इसे मनाया जाता है।

एक ईश्वरीय धर्म –

पारसी या जरथुस्ट्र लोग एक ईश्वर ‘अहुरमज्द’ में आस्था रखते हुए भी अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं नकारते। यद्यपि अहुरमज्द उनके सर्वोच्च देवता हैं, परन्तु दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्मकांडों में ‘अग्नि’ उनके प्रमुख देवता के रूप में दृष्टिगत होते हैं। इसीलिए पारसियों को अग्निपूजक भी कहा जाता है।

अंतिम संस्कार

पारसी धर्म में अंतिम संस्कार में अलग रिवाज़ हैं। पारसी समुदाय में मौत के बाद व्यक्ति के शव को टावर ऑफ साइलेस पर रखा जाता है। यह एक गोलाकार ढांचा होता है। इसे दखमा भी कहते हैं। यहां शव रखने के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए चार दिन प्रार्थन की जाता है। इस प्रार्थन को अरंध कहते हैं। यहां रखे शव को गिद्ध खाते हैं। यह पारसी समुदाय की परंपरा का हिस्सा है। ऐसा कहा जाता हैं की पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करना माना गया है। पारसी धर्म में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है। पारसी धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि को बहुत ही पवित्र माना गया है। इसलिए शवों को जलाना या दफनाना धार्मिक नजरिये से पूरी तरह से गलत है। परन्तु हाल के वर्षों में इस परम्परा में कमी हो रही है और शव को सीधे दफनाया जा रहा है।

धर्मदीक्षा संस्कार –

ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों के दो अत्यंत पवित्र चिह्न हैं- सदरो (पवित्र कुर्ती) और पवित्र धागा। धर्मदीक्षा संस्कार के रूप में ज़रथुष्ट्रधर्मी बालक तथा बालिका- दोनों को एक विशेष समारोह में ये पवित्र चिह्न दिये जाते हैं, जिन्हें वे आजीवन धारण करते हैं। मान्यता है कि इन्हें धारण करने से व्यक्ति दुष्प्रभावों और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षित रह सकता है। विशेष आकृति वाली सदरों को निर्माण सफ़ेद सूती कपड़े के नौ टुकड़ों से किया जाता है। इसमें एक जेब होती है, जिसे ‘किस्म-ए-कर्फ’ कहते हैं। पवित्र धागा, जिसे ‘कुश्ती’ कहते हैं, ऊन के 72 धागों को बंटकर बनाते हैं और उसे कमर के चारों ओर बांध दिया जाता है, जिसमें दो गांठें सामने और दो गांठे पीछे बांधी जाती हैं।

पारसी धर्म में शादी कैसे होती है?

पारसियों की शादी में लोग एक दूसरे के सामने बैठते हैं। शादी के दौरान भी तीन बार पूछा जाता है। पहले लड़की को पूछा जाता है पसंदे कदम और फिर लड़के को पूछा जाता है। इसका मतलब है कि आप मानते हो कि इससे शादी करनी है। यदि लड़का और लड़की राजी है तो तीन बार सिर हिलाकर अपनी सहमति देते हैं। इससे यह पुष्ट होता है कि लड़की और लड़के दोनों को यह शादी मंजूर करना पड़ता है।

पारसी धर्म के बारे में और अधिक जानकारी – Facts About Parsi Religion in Hindi

  • पारसी समुदाय में बाहर के लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता। यदि किसी पारसी लड़की ने किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह किया है तो उसके पति तथा बच्चों को पारसी समुदाय में प्रवेश नहीं दिया जाता। इसी तरह लड़के ने बाहर के धर्म में विवाह किया है तो उसकी पत्नी को भी पारसी बनने की अनुमति नहीं होती।
  • पारसियों का नया वर्ष (Parsi New Yeas) 24 अगस्त को आरंभ होता है। इस दिन को नवरोज भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन जरस्थ्रु का जन्म हुआ था। पारसी एक साल को 360 दिन का मानते हैं। बाकी पांच दिन को वे गाथा कहते हैं। इन पांच दिनों में वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
  • पारसी धर्म को मानने वाले लोग ईरान, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बहुत से देशों में फैले हुए हैं। लेकिन पारसी समुदाय के सामने अब ये समस्या मुंह बाए खड़ी है कि घटती जनसंख्या के साथ साथ अपने धर्म और संस्कृति को कैसे बचाया जाए। इनकी घटती आबादी की वजह से पारसी लोगों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। दुनिया भर में इनकी औसत संख्या 2004 से 2012 के बीच 10 प्रतिशत से भी ज्यादा गिर कर 112,000 से भी कम रह गई है।
  • पारसी समाज में अग्नि का भी विशेष महत्व है और इसकी खास पूजा भी की जाती है। नागपुर, मुंबई, दिल्ली और गुजरात के कई शहरों में आज भी कई सालों से अखंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है। इस ज्योत में बिजली, लकड़ी, मुर्दों की आग के अलावा तकरीबन 8 जगहों से अग्नि ली गई है। इस ज्योत को रखने के लिए भी एक विशेष कमरा होता है जिसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में खिड़की, दक्षिण में दीवार होती है।
  • इस समुदाय के लोग देश के अग्रणी उद्यमी हैं। बड़े कानूनविद्, स्वतंत्रा सेनानी से लेकर सैन्य बलों में भी इनकी मौजूदगी और गहरी छाप है। पारसी समुदाय ने देश को पहली स्टील मिल 1907 में जमशेद जी टाटा ने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के नाम से जमशेदपुर में स्थापित की थी। जेआरडी टाटा ने 1932 में देश के पहले एयरलाइंस टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी। बाद में यह एयर इंडिया बना। भारत का पहला लग्जरी होटल ताज टाटा की ही देन है।

FAQ

क्या पारसी मुसलमान होते हैं?

पारसी धर्म एक अलग धरम हैं यह मुस्लिम नहीं होते हैं।

पारसी धर्म में किसकी पूजा की जाती है?

पारसी एक ईश्वर को मानते हैं जिन्हें अहुरा मज़्दा या होरमज़्द कहते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं।

पारसी मृत शवो का अंतिम संस्कार कैसे करते हैं?

शव को जलाने या दफनाने की बजाय पक्षियों के भोजन के रूप में खुला छोड़ दिया जाता हैं।

क्या पारसी अग्नि की पूजा करते हैं?

हाँ, पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।


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