Udayagiri and Khandagiri Caves / उदयगिरि और खंडगिरि गुफ़ाएँ ओडीशा के भुवनेश्वर में दो पहाड़ियाँ पर स्थित है। ये गुफ़ाएँ उदयगिरि और खण्डगिरि पहाडियों में पत्थरों को काट कर बनाई गई हैं। ये दोनों गुफाएं लगभग दो सौ मीटर के अंतर पर हैं और एक दूसरे के सामने हैं। इनका निर्माण राजा खारावेला के शासनकाल में विशाल शिलाखंडों से किया गया था और यहां पर जैन साधु निर्वाण प्राप्ति की यात्रा के समय करते थे। उदयगिरि में 18 गुफाएं हैं और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं।
उदयगिरि और खंडगिरि गुफ़ाएँ का इतिहास – Udayagiri and Khandagiri Caves History in Hindi
उदयगिरि और खंडगिरि ओडीशा में भुवनेश्वर के पास स्थित दो पहाड़ियाँ हैं। इन पहाड़ियों में आंशिक रूप से प्राकृतिक व आंशिक रूप से कृत्रिम गुफाएँ हैं जो पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व की हैं। हाथीगुम्फा शिलालेख में इनका वर्णन ‘कुमारी पर्वत’ के रूप में आता है। ये गुफाएं अजन्ता और एलोरा जितनी प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन इनका निर्माण बहुत सुंदर ढंग से किया गया है। इतिहास, वास्तुकला, कला और धर्म की दृष्टि से इन गुफाओं का विशेष महत्व है। उदयगिरि में 18 गुफाएं हैं और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं। कुछ गुफाएं प्राकृतिक हैं, लेकिन ऐसी मान्यता है कि कुछ गुफाओं का निर्माण जैन साधुओं ने किया था और ये प्रारंभिक काल में चट्टानों से काट कर बनाए गए जैन मंदिरों की वास्तुकला के नमूनों में से एक है।
यहाँ से कलिंग के प्रसिद्ध शासक खारवेल का लेख मिलता है। यहाँ खारवेल ने जैन साधुओं के लिए विहार (209-170 ईसा पूर्व के बीच) बनवाये थे। इन गुफ़ाओं में की गई अधिकांश चित्रकारी नष्ट हो गई है। उदयगिरि में रानी गुफ़ा तथा खण्डगिरि में अनन्तगुफ़ा उत्कीर्ण रिलीफ चित्रकला की दृष्टि से उच्चकोटि के है।
शिलालेखों में इन गुफाओं को ‘लेना’ कहा गया है और इन्हें न जाने कितनी पूर्णिमा वाली चाँदनी रातों में बनाया गया था। गुफाओं के मुंह दरवाजों जैसे हैं, जहां से दिन के समय सूरज की रोशनी आ सकती है और पथरीले फर्श गर्म रहते हैं। रात को चाँद की रोशनी गुफा में आती है और गुफाओं में उजाला रहता है। इन गुफाओं में साधु लोग आकर रहते थे, जो संसार को त्याग कर अपने तन और मन की शक्तियों के प्रवाह से निर्वाण के लिए तपस्या करते थे। सुगन्धित फूलों, चहचहाते पक्षियों, पत्तों की सरसराहट, उजली धूप और शीतल चंद्रमा के सान्निध्य में वे प्रकृति के साथ एक रूप हो जाते थे। इन गुफाओं में बैठकर साधुजन शांति से समाधि लगाते थे और कठोर तपस्या करते थे। विद्वान लोग भी सत्य, शांति, मोक्ष और सौन्दर्य बोध के लिए यहां आते थे।
उदयगिरि की गुफाएं लगभग 135 फुट और खंडगिरि की गुफाएं 118 फुट ऊंची हैं। ये गुफाएं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की हैं। इन गुफाओं का निर्माण अधिकतर शिलाओं के ऊपरी भाग में होता था और गुफाओं के आवास साधना और प्रार्थना के लिए सूखे वाले स्थान होते थे, जहां वर्षा का पानी नहीं ठहरता था, इनके साथ बरामदा या आँगन होता था। छोटी-छोटी सुविधाओं की भी व्यवस्था होती थी। हालांकि छत की ऊँचाई कम होती थी और कोई व्यक्ति सीधे खड़ा नहीं हो सकता था। मुख्य रूप से ये विश्राम स्थल या शयन कक्ष थे। एक ही कक्ष में बहुत साधु रहते थे। कक्ष में एक खास बात थी कि प्रवेश स्थल के सामने की ओर का फर्श ऊँचा उठा हुआ था, जो शायद सोने के समय सिरहाने का काम देता था। ये कक्ष तंग और सपाट होते थे और इनके प्रवेश द्वार पर विभिन्न वस्तुओं की वास्तुकला कृतियां होती थीं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इन गुफाओं की गणना कराई और इन वस्तुओं के आधार पर इनके अलग-अलग नाम रखे। इन वस्तुओं में विभिन्न प्रकार के दरबार के दृश्य, पशु-पक्षी, शाही जुलूसों, शिकार अभियानों और दैन्य जीवन के दृश्य होते थे। ये लेख ब्राह्मी लिपि में हैं और जैनियों के मूल मंत्र- णमोकार मंत्र से शुरू होते हैं। इसके बाद राजा खारावेला के जीवन और कार्यों से संबंधित दृश्य हैं, जो सभी धार्मिक व्यवस्थाओं का सम्मान करते थे और धर्म स्थलों का जीर्णोद्धार करते थे। अलग-अलग गुफाओं पर उनके संरक्षकों के नाम हैं। अधिकतर संरक्षक राजा के वंशज हैं। कलिंग विजय के बाद जब अशोक का शासन हुआ और राजा खारावेला की सभी संपत्तियों पर उनका अधिकार हो गया, तो धीरे-धीरे जैन धर्म के स्थान पर बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा।
उदयगिरि गुफ़ाएँ – Udayagiri Caves in Hindi
उदयगिरि गुफ़ाएँ दक्षिण मध्य ओडीशा राज्य के भुवनेश्वर के समीप एक गांव में स्थित है। इस गाँव में बौद्ध एवं जैन धर्म से सम्बन्धित चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफ़ाएँ और प्रतिमाएँ हैं। इन गुफ़ाओं में निर्मित चैत्य गृह जैन धर्म से सम्बन्ध रखते हैं। उदयगिरि चैत्य गृह का निर्माण शुंग काल में हुआ था। इनमें से एक दुमंजिला गुफ़ा है, जिसको रानी गुफ़ा कहते हैं। इसमें कई कक्ष हैं। यह गुफ़ा अलंकृत है। उदयगिरि की मंचपुरी गुफ़ा से रिलीफ स्थापत्य के सुन्दर उदाहरण मिलते हैं। उदयगिरि गुफाओं में फर्श को पत्थरों की समतल शिलाओं से बनाया गया है। सीढ़ीनुमा पत्थरों पर चलते-चलते 18 गुफाओं के दर्शन हो जाते हैं।
यहां की गुफाओ पर नरेश के विजय अभियान और उनकी यात्रा को दर्शाया गया है। यहां पर रक्षकों के कक्ष हैं जिन्हें पहाड़ी से गिरते झरनें, फलों से लदे वृक्षों, वन्य जीवों, बानरों और कमल-ताल में अठखेलिया करते हाथियों की मूर्तियों से सजाया गया है।
खण्डगिरि गुफ़ाएँ – Khandagiri Caves
भुवनेश्वर से सात मील दूर पश्चिमोत्तर में उदयगिरि के निकट की पहाड़ी खण्डगिरि कहलाती है। खण्डगिरि का शिखर 123 फुट उँचा है, जो आस-पास की पहाड़ियों में सबसे ऊँचा है। कलिंग नरेश खारवेल का प्रसिद्ध हाथी गुम्फा अभिलेख खण्डगिरि से कुछ ही दूरी पर है। खण्डगिरि की गुफ़ाएँ जैन सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं। ये गुफ़ाएँ लगभग प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित की गई मालूम पड़ती हैं।
यहां की पहली और दूसरी गुफाएं तातोवा गुम्फा 1 और दो कहलाती हैं, जो प्रवेश स्थल पर रक्षकों और दो बैलों तथा सिंहों से सुसज्जित है। प्रवेश तोरण पर तोते की आकृतियां हैं। गुफा संख्या 3 अनंत गुफा कहलाती है, जहां स्त्रियों, हाथियों, खिलाड़ियों और पुष्प उठाए हंसों की मूर्तियां हैं। गुफा संख्या 4 तेन्तुली गुम्फा है। गुफा संख्या 5 खंडगिरि गुम्फा दो मंजिली है, जो सामान्य तरीके से काटी गई हैं। गुफा संख्या 12, 13 और 14 के कोई नाम नहीं है। गुफा संख्या 6 से गुफा संख्या 11 के नाम हैं- ध्यान गुम्फा, नयामुनि गुम्फा, बाराभुजा गुम्फा, त्रिशूल गुम्फा, अम्बिका गुम्फा और ललतेंदुकेसरी गुम्फा। गुफा सख्या 11 की पिछली दीवार पर जैन तीर्थंकरों, महावीर और पार्श्वनाथ की नक्काशी वाली उभरी हुई मूर्तियां हैं। गुफा संख्या 14 एक साधारण कक्ष है, जिसे एकादशी गुम्फा के नाम से जाना जाता है।
कैसे जाये –
उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं। यहां से आप टैक्सी ले सकते हैं। और यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भुवनेश्वर स्टेशन हैं।
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