घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर का इतिहास, जानकारी Grishneshwar Temple in Hindi

Grishneshwar Temple / घृष्णेश्वर मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर मीर दूर वेरुलगाँव में स्थित हैं। घ्रुश्नेश्वर मंदिर को कभी-कभी घर्नेश्वर ज्योतिर्लिंग और धुश्मेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और साथ ही शिव पुराण में वर्णित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर का इतिहास, जानकारी Grishneshwar Templeघृष्णेश्वर मन्दिर का इतिहास – Grishneshwar Jyotirlinga Temple History in Hindi

घर्नेश्वर शब्द का अर्थ ‘करुणा के स्वामी’ से है। यह मंदिर हिन्दुओ की शाव्यवाद परंपरा के अनुसार महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव का बारहवां और अंतिम ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। यहाँ पर भी धारेश्वर शिवलिंग स्थित है। यहीं पर श्री एकनाथ जी के गुरु श्री जनार्दन महाराज जी की समाधि भी है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की स्थापना की वास्तविक तिथि किसी को ज्ञात नही हैं। यह मंदिर बहुत प्राचीन हैं। इस मंदिर को आक्रमणकारियों द्वारा कई बार क्षतिग्रस्त किया गया।

एक तथ्य के अनुसार घृष्णेश्वर मन्दिर का जीर्णोद्धार सर्वप्रथम 16 वीं शताब्दी में वेरुल के ही मालोजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा) के द्वारा तथा पुनः 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा करवाया गया था जिन्होंने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर तथा गया के विष्णुपद मंदिर तथा अन्य कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। कहा जाता हैं एक बार भगवान घ्रिश्नेश्वर की कृपा से मालोजी राजे भोंसले को जोकि भगवान् शिव के परम भक्त थे को सांप के बिल में छुपा हुआ खजाना मिला। उन्होंने खजाने से मिले सारे पैसो का उपयोग मंदिर और शिखरशिनगंपुर के उद्धार और पुनर्निर्माण में किया।

प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में इसे कुम्कुमेश्वर के नाम से भी संदर्भित किया गया है। इस मंदिर को इसके चित्ताकर्षक शिल्प के लिए भी जाना जाता है। यदि क्रम की बात करें तो हिन्दुओं के लिए घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का मतलब होता है बारह ज्योतिर्लिंग यात्रा का समापन। घृष्णेश्वर दर्शन के बाद द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूर्णता प्रदान करने के लिए श्रद्धालु काठमांडू, (नेपाल) स्थित पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं।

वर्तमान में यह हिन्दुओ के लिए एक महत्वपूर्ण और सक्रीय धार्मिक स्थल है, जहाँ हर साल लाखो श्रद्धालु आते है। मंदिर में कोई भी प्रवेश कर सकता है लेकिन गर्भ-गृह में प्रवेश करने के लिए हिन्दू परंपराओ का पालन करना अनिवार्य है, यहाँ केवल खुले बदन वाले व्यक्तियों को ही प्रवेश दिया जाता है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना – Grishneshwar Temple Architecture In Hindi

यह मंदिर 240 * 185 फीट में बना भारत का सबसे छोटा ज्योतिलिंग भी है। मंदिर के बीच में भगवान विष्णु के दशावतार का चित्रण भी किया गया है। मंदिर के हॉल का निर्माण 24 पिल्लरो से किया गया है। इन पिल्लरो पर आज भी हमें प्राचीन समय के शिलालेख और हस्तलिपियां दिखाई देती है। गर्भगृह 17 * 17 फीट फैला हुआ है। जहाँ भगवान शिव के पिण्ड का मुख पूर्व की तरफ रखा गया है। मंदिर की दीवारों पर प्राचीन समय के हिन्दू देवी-देवताओ का चित्रण किया गया है। गर्भगृह में पूर्व की ओर शिवलिंग है और इसके मार्ग में नंदिस्वर की मूर्ती के दर्शन भी किए जा सकते हैं।

शिव महापुराण के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा – Grishneshwar Jyotirlinga Story in Hindi

दक्षिण देश में देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई कष्ट उन्हें नहीं था। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। यद्यपि उस ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण का कोई कष्ट न था, किन्तु उनकी धर्मपत्नी सुदेहा बड़ी दु:खी रहती थी। उसके पड़ोसी तथा अन्य लोग भी उसे नि:सन्तान होने का ताना मारा करते थे, जिसके कारण अपने पति से बार-बार पुत्रप्राप्ति हेतु प्रार्थना करती थी। उसके पति उस मिथ्या संसार के सम्बन्ध में उसे ज्ञान का उपदेश दिया करते थे, फिर भी उसका मन नहीं मानता था। उस ब्राह्मणदेव ने भी पुत्रप्राप्ति के लिए कुछ उपाय किये, किन्तु असफल रहे। उसके बाद अत्यन्त दु:खी उस ब्राह्मणी ने अपनी छोटी बहन घुश्मा के साथ अपने पति का दूसरा विवाह करा दिया। सुधर्मा ने द्वितीय विवाह से पूर्व अपनी पत्नी को बहुत समझाया था कि तुम इस समय अपनी बहन से प्यार कर रही हो, इसलिए मेरा विवाह करा रही हो, किन्तु जब इसे पुत्र उत्पन्न होगा,तो तुम उससे ईर्ष्या करने लगोगी। सुदेहा ने संकल्प लिया था कि वह कभी भी अपनी बहन से ईर्ष्या नहीं करेगी।

विवाह के बाद घुश्मा एक दासी की तरह अपनी बड़ी बहन की सेवा करती थी, तथा सुदेहा भी उससे अतिशय प्यार करती थी। अपनी बहन की शिव भक्ति से प्रभावित होकर उसके आदेश के अनुसार घुश्मा भी शिव जी का एक सौ एक पार्थिव लिंग (मिट्टी के शिवलिंग) बनाकर पूजा करती थी। पूजा करने के बाद उन शिवलिंगों को समीप के तालाब में विसर्जित कर देती थी

भगवान शंकर की कृपा से घुश्मा को एक सुन्दर भाग्यशाली तथा सद्गुण सम्पन्न पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र प्राप्ति से जब घुश्मा का कुछ मान बढ़ गया, तब सुदेहा को ईर्ष्या पैदा हो गई। समय के साथ जब पुत्र बड़ा हो गया, तो विवाह कर दिया गया और पुत्रवधू भी घर में आ गई। यह सब देखकर सुदेहा और अधिक जलने लगी। उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई, जिसके कारण उसने अनिष्ट करने की ठान ली। एक दिन रात्रि में उसने सोते समय घुश्मा के पुत्र के शरीर को चाकू से टुकड़े-टुकड़े कर दिया और शव को समेटकर वहीं पास के सरोवर में डाल दिया, जहाँ घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव लिंग का विसर्जन करती थी। सुदेहा शव को तालाब में फेंककर आ गई और आराम से घर में सो गई।

प्रतिदिन की भाँति घृश्मा अपने पूजा कृत्य में लग गई और ब्राह्मण सुधर्मा भी अपने नित्यकर्म में लग गये। सुदेहा भी जब सुबह उठी तो, उसके हृदय में जलने वाली ईर्ष्या की आग अब बुझ चुकी थी, इसलिए वह भी आनन्दपूर्वक घर के काम-काज में जुट गई। जब बहू की नींद खुली, तो उसने देखा कि उसका पति बिस्तर पर नहीं है। बिस्तर भी ख़ून में सना है तथा शरीर के कुछ टुकड़े पड़े दिखाई दे रहे हैं। यह दृश्य देखकर दु:खी बहू ने अपनी सास घुश्मा के पास जाकर निवेदन किया और पूछा कि आपके पुत्र कहाँ गये हैं? उसने रक्त से भीगी शैय्या की स्थिति भी बताई और विलाप करने लगी– ‘हाय मैं तो मारी गयी। किसने यह क्रूर व्यवहार किया है?’ इस प्रकार वह पुत्रवधू करुण विलाप करती हुई रोने लगी।

सुधर्मा की बड़ी पत्नी सुदेहा भी उसके साथ ‘हाय!’ ऐसा बोलती हुई शोक में डूब गई। यद्यपि वह ऊपर से दु:ख व्यक्त कर रही थी, किन्तु मन ही मन बहुत प्रसन्न थी। अपनी प्रिय वधू के कष्ट और क्रन्दन (रोना) को सुनकर भी घुश्मा विचलित नहीं हुई और वह अपने पार्थिव-पूजन व्रत में लगी रही। उसका मन बेटे को देखने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हुआ। इसी प्रकार ब्राह्मण सुधर्मा भी अपने नित्य पूजा-कर्म में लगे रहे। उन दोनों ने भगवान के पूजन में किसी अन्य विघ्न की चिन्ता नहीं की। दोपहर को जब पूजन समाप्त हुआ, तब घुश्मा ने अपने पुत्र की भयानक शैय्या को देखा। देखकर भी उसे किसी प्रकार का दु:ख नहीं हुआ।

उसने विचार किया, जिसने मुझे यह पुत्र दिया है, वे ही उसकी रक्षा भी करेंगे। वे तो भक्तप्रिय हैं, कालों के भी काल हैं तथा सत्पुरुषों के मात्र आश्रय हैं। वे ही सर्वेश्वर प्रभु हमारे भी संरक्षक हैं। वे माला गूँथने वाले माली की तरह जिनको जोड़ते हैं, उन्हें अलग-अलग भी करते हैं। मैं अब चिन्ता करके क्या कर सकती हूँ। इस प्रकार सांसारिक तत्त्वों का विचार कर उसने शिव के भरोसे धैर्य धारण कर लिया, किन्तु शोक का अनुभव नहीं किया।

प्रतिदिन की तरह वह ‘नम: शिवाय’ का उच्चारण करती हुई उन पार्थिव लिंगों को लेकर सरोवर के तट पर गई। जब उसने पार्थिव लिंगों को तालाब में डालकर वापस होने की चेष्टा की, तो उसका अपना पुत्र उस सरोवर के किनारे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा। अपने पुत्र को देखकर घुश्मा के मन में न तो प्रसन्नता हुई और न ही किसी प्रकार का कष्ट हुआ। इतने में ही परम सन्तुष्ट ज्योति: स्वरूप महेश्वर शिव उसके सामने प्रकट हो गये।

भगवान शिव ने कहा कि ‘मै’ तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम वर माँगो। तुम्हारी सौत ने इस बच्चे को मार डाला था, अत: मैं भी उसे त्रिशूल से मार डालूँगा। घुश्मा ने श्रद्धा-निष्ठा के साथ महेश्वर को प्रणाम किया और कहा कि सुदेहा मेरी बड़ी बहन है, कृपया आप उसकी रक्षा करे। शिव ने कहा कि सुदेहा ने तुम्हारा बड़ा अनिष्ट किया है, फिर तुम उसका उपकार क्यों करना चाहती हो? वह दुष्टा तो सर्वदा मार डालने के योग्य है। ‘घुश्मा’ हाथ जोडकर प्रार्थना करने लगी– ‘देव! आपके दर्शन मात्र से सारे पातक भस्म हो जाते हैं। हमने तो ऐसा ही सुना है कि अपकार करने वाले (अनिष्ट करने वाले) पर जो उपकार करता है, उसके भी दर्शन से पाप बहुत दूर भाग जाता है। सदाशिव जो कुकर्म करने वाला है, वही करे, भला मैं दुष्कर्म क्यों करूँ? मुझे तो बुरा करने वाले की भी भलाई करना ही अच्छा लगता है।’ भगवान शिव घुश्मा के भक्तिपूर्ण विकार शून्य स्वभाव से अत्यन्त प्रसन्न हो उठ। दयासिन्धु महेश्वर ने कहा– ‘घुश्मा! तुम्हारे हित के लिए मैं तुम्हें कोई वर अवश्य दूँगा। इसलिए तुम कोई और वर माँगो।’ उसने कहा– ‘महादेव! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं, तो लोगों की रक्षा और कल्याण के लिए आप यहीं सदा निवास करें और आपकी ख्याति मेरे ही नाम से संसार में होवे’

घुश्मा की प्रार्थना और वर-याचना से प्रसन्न महेश्वर शिव ने उससे कहा कि मैं सब लोगों को सुख देने के लिए हमेशा यहाँ निवास करूँगा। मेरा ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश’ के नाम से संसार में प्रसिद्ध होगा। यह सरोवर भी शिवलिंग का आलय अर्थात घर बन जाएगा और इसीलिए यह संसार में शिवालय के नाम से प्रसिद्ध होगा। इस सरोवर का दर्शन करने से सब प्रकार के अभीष्ट प्राप्त होंगे। भगवान शिव ने आशीर्वचन बोलते हुए घुश्मा से कहा कि तुम्हारे एक सौ एक पीढ़ियों तक ऐसे ही श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न हुआ करेंगे। वे सभी सन्तानें उत्तम गुणों से सम्पन्न, सुन्दरी स्त्रियाँ, धन-वैभव, विद्या-बुद्धि और दीर्घायु से युक्त होंगे। वे भोग और मोक्ष दोनों प्रकार के लाभ पाने के पात्र होंगे। तुम्हारे एक सौ एक पीढ़ियों तक वंश का विस्तार शोभादायक, यशस्वी तथा आनन्दवर्द्धक होगा’ इस प्रकार घुश्मा को वरदान देते हुए भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थित हो गये।

‘घुश्मेश’ नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई और सरोवर भी शिवालय के नाम से विख्यात हुआ। सुधर्मा, घुश्मा तथा सुदेहा ने भी उस शिवलिंग की तत्काल एक सौ एक परिक्रमा दाहिनी ओर से की। पूजा करने के बाद परिवार के सभी सदस्यों के मन की मलीनता दूर हो गई। पुत्र को जीवित देखकर सुदेहा बड़ी लज्जित हुई और उसने अपने पति तथा बहन घुश्मा से क्षमा याचना कर प्रायश्चित के द्वारा पाप का शोधन किया। इस प्रकार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का आविर्भाव हुआ, जिसका दर्शन और पूजन करने से सब प्रकार के सुखों की वृद्धि होती है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे – How To Reach Grishneshwar

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का सबसे नजदीकी शहर औरंगाबाद से 30 कि.मी. दुरी पर स्थित है। और औरंगाबाद देश के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हैं। औरंगाबाद से बस टैक्सी या ऑटो से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुँच सकते है। इसके आलावा शिरडी से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 95 किमी, नासिक से घृष्णेश्वर की दूरी 171 किमी, भीमाशंकर से घृष्णेश्वर की दूरी 306 किमी है।

मंदिर से नजदीकी एयरपोर्ट छत्रपति संभाजी महाराज एयरपोर्ट हैं, जो औरंगाबाद में स्थित हैं। रेलवे स्टेशन की बात करे तो, औरंगाबाद रेलवे स्टेशन के लिए देश के प्रमुख रेलवे स्टेशन से कई ट्रेन चलती है। यदि आपके शहर से औरंगाबाद के लिए डायरेक्ट ट्रेन नहीं है, तो आप मनमाड रेलवे जंक्शन पहुच सकते है। यहां से कई ट्रैन औरंगाबाद के लिए जाती हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शन का समय – Grishneshwar Temple Timing In Hindi

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शन का समय सुबह 5:30 बजे से शाम को 9 बजे तक होता हैं। लेकिन श्रवण माह में (अगस्त से सितम्बर माह) में सुबह 3 बजे से रात के 11 बजे तक मंदिर यहां आने वाले भक्तो के लिए खुला रहता हैं।

FAQ

ज्योतिर्लिंग का मतलब क्या होता है?

घर्नेश्वर शब्द का अर्थ ‘करुणा के स्वामी’ से है।

औरंगाबाद में कितने ज्योतिर्लिंग है?

औरंगाबाद में बारहवें ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव मंदिर हैं।

घृष्णेश्वर मंदिर कहाँ है?

घृष्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट मौजूद दौलताबाद से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर वेरुलगाँव में अवस्थित है।

शिरडी से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी

शिरडी से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 95 किमी हैं।


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