स्थानेश्वर महादेव मन्दिर का इतिहास | Sthaneshwar Mahadev Temple

Sthaneshwar Mahadev Mandir / स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है। यह मंदिर भगवान शिव का समर्पित है और कुरुक्षेत्र के प्राचीन मंदिरों मे से एक है। इस मन्दिर का नाम भी बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। स्थानेश्वर महादेव मन्दिर के नाम पर ही इस जगह का नाम ‘थानेश्वर’ अथवा ‘स्थानेश्वर’ पड़ा। ऐसी मान्यता भी है कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी इसलिए कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती है।

स्थानेश्वर महादेव मन्दिर का इतिहास | Sthaneshwar Mahadev Temple

स्थानेश्वर महादेव मन्दिर की जानकारी – Sthaneshwar Mahadev Temple History in Hindi

स्थानेश्वर महादेव मन्दिर कुरुक्षेत्र शहर में थानेश्वर से तीन किलोमीटर दूर झांसा रोड पर स्थित हैं। इस मंदिर के सामने एक छोटा सा कुंड है। ऐसा माना जाता है कि इसका पानी इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बून्दो से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था।

कहा जाता है कि इस मंदिर में महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने विजय की कामना करते हुए यहां भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर मनोकामना सिद्ध होने का वरदान भी दिया था। ‘शिवरात्रि’ के अवसर पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है। भगवान शिव को यह मन्दिर रात के समय विद्युत की आकर्षक सजावट से जगमगाता रहता है। ‘शिवरात्रि’ के के दिन इस मन्दिर की सुन्दरता देखने लायक़ होती है।

थानेश्वर के बारे में प्रसिद्ध है कि यह पुष्यभूति वंश के दौरान राजा हर्षवर्धन की सल्तनत का हिस्सा था। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है भगवान शिव का वास। इस शहर ने सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी के रुप में कार्य किया। इस मंदिर की छत एक गुंबद के आकर की है। इस छत के सामने की तरफ का हिस्सा एक लंबा ‘अमला’ के आकर का है।

मंदिर के अन्दर छत पर आज भी प्राचीन कलाकृतियों को देखा जा सकता है। इस मंदिर में भगवान शिव का शिव लिंग एक प्राचीन शिव लिंग है। ऐसी मान्यता भी है कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी।

यह मंदिर दो भागों में विभाजित है। पहला जो बाये तरफ है भगवान श्री लक्ष्मीनारायण जी का है और दूसरा जो कि दायें तरफ है भगवान शिव का है। इस मंदिर में भगवान भैरव, हनुमान और राम परिवार और माता दुर्गा जी की मूर्ति स्थापित है।

मंदिर परिसर में एक सरोवर भी है। इस सरोवर के जलार्पण से सारे रोग दूर हो जाते हैं। कहा जाता है कि इस सरोवर के जल से राजा वेन के सारे कष्ट दूर हो गए थे। यहां स्नान करने के लिए घाट बने हैं। स्त्रियों के स्नान के लिए अलग से घाट बने हैं। कहा जाता है कि यहां सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहुदुर जी भी आए थे। इस मंदिर के समीप उनकी याद में गुरुद्वारा नवीं पातशाही भी बना हुआ है।

यमुना नदी के किनारे बसे इस शिव मन्दिर के लिए कहा जाता है कि मन्दिर के पीछे यमुना का पानी मन्दिर के टैंक से होता हुआ मन्दिर के बाहर निकलता है। इसकी एक बूँद से कुष्ठ रोग का निवारण हो जाता है। इस प्राचीन मंदिर के लिए कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव यहां वास करते हैं और महाशिवरात्रि की रात को तांडव करते हैं।


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