Shah Nawaz Khan Maqbara / शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में उतावली नदी के किनारे काले पत्थर से निर्मित मुग़ल शासन काल का एक दर्शनीय भव्य मक़बरा है। यह मकबरा मुगल काल में बनी इमारतों में अपना खास स्थान रखता है। अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के ज्येष्ठ पुत्र इरज को इस मकबरे में दफनाया गया था।
शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा की जानकारी – Shah Nawaz Khan Tomb History in Hindi
बुरहानपुर में मुग़ल काल में निर्मित अन्य इमारतों में से इस इमारत का अपना विशेष स्थान है। शाह नवाज़ ख़ाँ का असली नाम ‘इरज’ था। अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के ज्येष्ठ पुत्र इरज ने अपनी बहादुरी के बल पर मुगल बादशाह जहांगीर को दक्कन के युद्ध में विजय दिलाई। इस विजय से प्रसन्न होकर जहांगीर ने इरज को ‘शाह नवाज’ की उपाधि प्रदान की।
लेकिन 44 वर्ष की आयु में ही शाह नवाज खां की मृत्यु हो गई। मुगल बादशाह जहांगीर ने शाह नवाज की याद में एक मकबरे का निर्माण करवाया। इस मकबरे को लोग काला ताजमहल भी कहते हैं। इस मकबरे में चार छोटी मीनारों की तरह ही ताजमहल की मीनारें भी बनाई गई हैं।
शाह नवाज़ ख़ाँ का भव्य मक़बरा उतावली नदी से 34 फ़ुट की ऊँचाई पर स्थित है। पहले मक़बरे के चारों और पक्की दीवारें थीं, जो अब गिर गई हैं। मक़बरे की दक्षिण दिशा में एक शानदार प्रवेश द्वार है, जो आज भी अच्छी हालत में है। यह इमारत एक चौकोर चबूतरे पर खड़ी है, जो ज़मीन से 5 फ़ुट ऊँचा है। चबूतरे की लंबाई 105 फ़ुट और चौडाइ भी लगभग 105 फ़ुट है। इमारत का नाप 70×70 फ़ुट है। इसकी कुर्सी 3-1/2 ऊँची है।
मक़बरे का बाहरी हिस्सा काले-सफ़ेदी युक्त पत्थरों से और भीतरी भाग ईंट, चूने से बना है। भीतरी भाग सुंदर बेल-बूटों की चित्रकारी से सुसज्जित है। चित्रकारी की कुशल कारीगरी अवलोकनीय है। आज भी वह देखने वालों को आश्चर्यचकित करती है। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी उसकी चमक-दमक और रंगों में कोई अंतर नहीं आया है। गुम्बद के भीतर बोलने से आवाJ गूंजती है।
गुम्बद के भीतर मध्य भाग में एक वर्गाकार संगमरमर का चबूतरा है। पत्थर पर सुंदर नक़्क़ाशी काटी गई हैं। तावीज भी संगमरमर का है और एक पत्थर से तराशा गया लगता है। तावीज के सिर पर र्क तरफ़ कमल पंखुड़ी वाला सुंदर फूल तराशा गया है। यही शाह नवाज़ ख़ाँ की मजार है। बाजू में एक छोटी मजार है। इसके संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।
असली मजार तहखाने (भूमिगत) में है। तहखाने तक पहुँचने के लिए दक्षिण दिशा में चबूतरे की सीढ़ियों के पास से एक रास्ता है। भीतर पक्के चबूतरे पर दो मजारें बनी हुई हैं। चबूतरे के पूर्व और पश्चिम दिशा में रोशनदान बने हुए हैं, जिससे तहखाने में प्रकाश आता है।
वर्तमान में यह मक़बरा पुरातत्त्व विभाग के अधीनस्थ है, और स्थायी तौर से एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है। साफ-सफाई, मरम्मत यथा समय होती रहती है। विभाग की ओर से मक़बरे की सुरक्षा के लिये उत्तर दिशा में नदी के किनारे एक मज़बूत दीवार सीमेंट, ईंट और चूने से निर्मित की गई है।
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