राष्ट्रपति भवन का इतिहास, जानकारी | Rashtrapati Bhavan History in Hindi

Rashtrapati Bhavan / राष्ट्रपति भवन भारत सरकार के राष्ट्रपति का सरकारी आवास है जो की  राजधानी दिल्ली में स्थित हैं। वायसराय के महल तौर पर बनी ये इमारत कभी ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक थी, लेकिन बाद में ये बन गया महामहिम का महल। यह अदभुत एवं विशाल भवन ‘रायसीना पहाड़ी’ (Raisina Hill) पर स्थित है। यह दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रपति भवन या विश्व का सबसे बड़ा सरकारी निवास स्थान भी है।

राष्ट्रपति भवन का इतिहास, जानकारी | Rashtrapati Bhavan History in Hindi

राष्ट्रपति भवन का इतिहास – Rashtrapati Bhavan History in Hindi

राष्ट्रपति भवन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। राष्ट्रपति भवन के निर्माण में करीब 29 हजार लोगो ने काम किया था। 1911 में जब अंग्रेजों ने कोलकाता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला किया, तो वो एक ऐसी इमारत बनाना चाहते थे, जो आने वाले कई सालों तक एक मिसाल बने। रायसीना हिल्स पर वायसराय के लिए एक शानदार इमारत बनाने का फैसला किया गया। इस इमारत का नक्शा बनाया एडविन लुटियंस ने। लुटियंस ने हर्बट बेकर को 14 जून, 1912 को इस आलीशान इमारत का नक्शा बनाकर भेजा।

राष्ट्रपति भवन यानी उस समय के वायसराय हाउस को बनाने के लिए 1911 से 1916 के बीच रायसीना और मालचा गांवों के 300 लोगों की करीब 4 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया। लुटियंस की यही तमन्ना थी कि ये इमारत दुनिया भर में मशहूर हो और भारत में अंग्रेजी राज्य का गौरव बढ़ाए।

इस भवन के मुख्य शिल्पीकार ‘एडविन लैंडसीर लुटियंस’ थे, जबकि इसके प्रमुख इंजीनियर ‘हग कीलिंग’ थे। इस भवन का अधिकतम निर्माण कार्य ठेकेदार हारून-अल-राशिद के द्वारा किया गया। प्रारम्भ में इस भवन के निर्माण के लिए 4 लाख पौंड स्टर्लिंग राशि व्यय करने हेतु निर्धारित की गयी थी। परन्तु भवन के निर्माण में 17 साल लग जाने के कारण व्यय राशि बढकर 877136 पौंड स्टर्लिंग अर्थात् 1 करोड़ 28 लाख रुपये हो गई। यदि मुग़ल गार्डन और राष्ट्रपति भवन परिसर में कर्मचारियों के लिए बने आवासों की राशि भी इसमें शामिल कर दी जाये तो राष्ट्रपति भवन के निर्माण में 1 करोड़ 40 लाख रुपये ख़र्च हुए।

यह भवन 1912 में शुरू हुआ निर्माण का काम 1929 में खत्म हुआ। इमारत बनाने में करीब 70 करोड़ ईंटों और 30 लाख पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। हालाँकि ज्यादा दिन अंग्रेज इसमें रह नहीं सके, क्योंकि 1947 में भारत के आजाद होने के बाद राष्ट्रपति भवन स्वतंत्र भारत में आ गया और फिर 1950 में गणतंत्रता के बाद इसमें भारत के राष्ट्रपति रहने लगे और इसका नाम वायसराय हाउस से बदल कर राष्ट्रपति भवन हो गया।

राष्ट्रपति भवन में प्राचीन भारतीय शैली, मुगल शैली और पश्चिमी शैली की झलक देखने को मिलती है। राष्ट्रपति भवन का गुंबद इस तरह से बनाया गया कि ये दूर से ही नजर आता है।

राष्ट्रपति भवन – President House of India in Hindi

चार मंज़िल राष्ट्रपति भवन में कुल 340 कमरे हैं। भवन के निर्माण में स्टील का प्रयोग नहीं किया गया है। राष्ट्रपति भवन में बने चक्र, छज्जे, छतरियाँ और जालियाँ भारतीय पुरातत्त्व पद्धति का अनुकरण हैं। भवन के स्तम्भों पर उकेरी गई घंटियाँ हिन्दू, जैन और बौद्ध मन्दिरों की घंटियों की अनुकृति हैं। जबकि इसके स्तम्भों के निर्माण की प्रेरणा कर्नाटक के मूडाबिद्री में स्थित जैन मन्दिर है। इसके गुम्बद के बारे में लुटियंस का मानना है क यह गुम्बद रोम के सर्वदेवमन्दिर (पैन्थियन आफ रोम) की याद दिलाता है। लेकिन विश्लेषकों का विचार है कि गुम्बद की संरचना सांची के स्तूप के पैटर्न पर की गई है। राष्ट्रपति भवन में बने चक्र, छज्जे, छतरियां और जालियां भारतीय पुरातत्व पद्धति की याद दिलाते हैं।

राष्ट्रपति एस्टेट में एक ड्राइंग रूम, एक खाने के कमरे, एक बैंक्वेट हॉल, एक टेनिस कोर्ट, एक पोलो ग्राउंड और एक क्रिकेट का मैदान और एक संग्रहालय शामिल है जो इस स्थान के दूसरे आकर्षण हैं। एक रोचक बात यह भी है राष्ट्रपति भवन में, कि यहाँ बच्चो के लिए 2 गैलरीज है। एक गैलरी में बच्चो के काम को दिखाया गया है और और एक अन्य बच्चों के हित के वस्तुओं की विविधता प्रदर्शित करने के लिए है।

राष्ट्रपति भवन में 750 कर्मचारी कार्यरत है। न्यूज़ रिपोर्टर्स के अनुसार, भारत सरकार ने 2007 में इसके रखरखाव में 100 करोड़ रुपये खर्च किये। मुगल गार्डन के साथ राष्ट्रपति भवन के बगीचे की देखरेख के लिए सवा दो सौ से अधिक माली लगे हैं। मुगल गार्डन में 110 विभिन्न प्रजातियों के औषधीय पौधे, 200 गुलाब की प्रजातियां और रंग-बिरंगे फूल हैं। राष्ट्रपति भवन में काफी संख्या में पशु पक्षी भी हैं।

राष्ट्रपति भवन के आकर्षण – Rashtrapati Bhavan New Delhi Tourism

मुगल गार्डन :- इस इमारत के पीछे विशाल मुग़ल गार्डन स्थित है। जिसे हर साल फ़रवरी में आम जनता के लिए खोला जाता है। केवल यह बगीचा ही 13 एकड़ में फैला हुआ है और यंहा फूलों की एक से बढ़कर एक बेहतरीन किस्मे है जिसमे कुछ विदेशी फूलों की किस्मे भी शामिल है। यह हर वर्ष लोगो के लिए केवल फरवरी-मार्च के मध्य खुलता है जिसमे आम लोग भी जाकर विजिट कर सकते है।

दरबार हाल :- दरबार हॉल की खूबसूरती देखते ही बनती है, इसे तरह-तरह के रंगीन पत्थरों से सजाया गया है। इस हॉल में 2 टन का झूमर लगा है। इसके ठीक ऊपर राष्ट्रपति भवन का मुख्य गुंबद है। दरबार हॉल की दीवारें ब्रिटिश हुकूमत से लेकर आजाद भारत के बदलाव की गवाह रही हैं। ये हॉल महामहिम के महल की सबसे खास जगह है। दरबार हॉल के अधिकतम कमरे मुख्य गुम्बद के नीचे खुलते हैं। राष्ट्रपति के सारे राजकीय कार्यक्रम यहीं पर आयोजित किए जाते हैं।

अशोका हॉल :- दरबार हॉल के बगल में मौजूद अशोक हॉल ब्रिटिश हुकूमत के वक्त में शाही नृत्य कक्ष हुआ करता था।हॉल की एक-एक चीज को इतनी बारीकी से तराशा गया है कि यहां से नजर ही नहीं हटती है। इसी कक्ष में राष्ट्रपति ऑफिशियल मीटिंग करते हैं।

बैंक्वेट हॉल :- राष्ट्रपति भवन के बैंक्वेट हॉल में कई फीट लंबी डाइनिंग टेबल लगी है, जिस पर एक साथ 104 लोग बैठकर खाना खा सकते हैं। खास बात ये है कि इस हॉल के बाईं ओर एक खास तरह की लाइट लगी है, जो यहां मौजूद बटलर को सिग्नल देता है कि खाना कब सर्व करना है, कब प्लेटें हटानी और लगानी हैं। इसके साथ इतने सारे लोगों के बीच कौन शाकाहारी है और कौन मांसाहारी, ये जानने के लिए हर शाकाहारी के सामने एक गुलाब रखा होता है।

देखने का समय – Rashtrapati Bhavan Visit Timings

भारत के अब तक जितने भी राष्ट्रपति इस भवन में निवास करते आए हैं, उनके मुताबिक इसमें कुछ न कुछ बदलाव जरूर हुए हैं और उन्होंने करवाए है। प्रथम राष्ट्रपति, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने इस गार्डन में कोई बदलाव नहीं कराया लेकिन उन्होंने इस खास बाग को जनता के लिए खोलने की बात कही कि क्यों नहीं यह गार्डन जनता के लिए भी कुछ समय के लिए खोला जाए। उन्हीं की वजह से प्रति वर्ष मध्य-फरवरी से मध्य-मार्च तक यह आकर्षक गार्डन आम जनता के लिए खोला जाता है। साथ ही हर शनिवार को यंहा “ चेंज ऑफ़ गार्ड “ नाम का समारोह भी होता है जो सुबह दस बजे शुरू होता है और उसे देखने के लिए कोई भी जा सकता है उसे केवल अपना पहचान पत्र दिखाना होता है।


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