Rajsamand Lake / राजसमन्द झील, भारत के राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले में स्थित एक मानवनिर्मित झील (कृत्रिम झील) है। यह झील भारत की दूसरी सबसे बडी कृत्रिम झील तथा एशिया का दूसरा सबसे बड़ा मीठे पानी का झील है। इसका निर्माण महाराणा राजसिंह जी ने गोमी नदी पर 1662 ईस्वी बांध बनाकर कराया था।
राजसमन्द झील का इतिहास – Rajsamand Lake History in Hindi
राजसमंद झील (Rajsamand Jheel) का निर्माण महाराणा राज सिंह जी के द्वारा एक बडी अकाल राहत योजना के तहत 1662 ईस्वी में करवाया गया। काफी समय बीतने के बाद जब यह छोटा सा कस्बा जिला बना, तो इसका नाम भी राजसमंद झील के कारण राजसमंद जिला रखा गया।
इस झील का निर्माण गोमती, केलवा तथा ताली नदियों पर बाँध बनाकर किया गया है। सात किलोमीटर लम्बी व तीन किलोमीटर चौडी यह झील 55 फीट गहरी है। राजसमन्द झील की पाल, नौचौकी व इस ख़ूबसूरत झील के पाल पर बनी छतरियों की छतों, स्तम्भों तथा तोरण द्वार पर की गयी मूर्तिकला व नक़्क़ाशी देखकर स्वतः ही दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की याद आ जाती है। झील के किनारे की सीढ़ियों को हर तरफ़ से गिनने पर योग नौ ही होता है, इसलिए इसे ‘नौचौकी’ कहा जाता है।
ईस नौ चोकी नामक स्थान की एक खास बात यह हे कि यहां हर नौ सीढ़ीयों के बाद एक चोकी है, और इस बात का खास खयाल रखा गया था इसके पुरे निर्माणकाल के दौरान। नौ चोकी पर बने तोरण भी नौ पत्थरों के जोड से ही बने हुए है। नौ अंक का हिन्दु धर्म में एक अलग ही महत्व है। यहीं पर 25 काले संगमरमर की चट्टानों पर मेवाड़ का पूरा इतिहास संस्कृत में उत्कीर्ण है। इसे ‘राजप्रशस्ति’ कहते हैं, जो की संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति है। राजप्रशस्ति ‘अमरकाव्य वंशावली’ नामक पुस्तक पर आधारित है, जिसके लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग हैं।
कहा जाता है कि राजसमंद झील पर पाल का निर्माण पूरा होने में पूरे 14 वर्ष का समय लगा था। राजसमंद झील एशिया में दूसरी बडी मीठे पानी कि झील है। चालीस लाख रुपये की लागत से बनवाई गई राजसमन्द झील मेवाड़ की विशालतम झीलों में से एक है। झील के किनारे पाल पर एक तरफ अंग्रेजों के जमाने की बनी हुई एक छोटी हवाई पट्टी भी है, तब यहां पानी पर हवाईजहाज उतरते थे।
यहीं पर झील के किनारे स्थित हे प्रभू द्वारिकाधीश का पावन मंदिर, दर्शनार्थी दूर दूर से यहां प्रभू के दर्शनो के लिये आते हैं, और पवित्र झील में स्नान करते है। राजसमंद झील विगत कुछ समय से खाली पडी थी पर अब यहाँ पानी की कमी नहीं है। झील पर नौकायान का लुत्फ लिया जा सकता है।
राजसमंद झील की पाल पर ही सिंचाई विभाग का कार्यालय है, और सिंचाई विभाग का ही एक गार्डन भी है। प्रतिदिन यहां नगर के कई गणमान्य लोग प्रातःकालीन और सायंकालिन भ्रमण के लिये आते हैं। यहां पाल पर पहली छतरी राडाजी की छतरी के नाम से जानी जाती है, आगे ऐसी ही तीन और छतरीयां है और अंत में आती है चौथी छतरी, कमल कुरज की छतरी। यहां की सांय सांय करती हवा और दूर दूर तक झील के मनोरम नजारे मन को सुकून देते हैं। यहाँ सुर्योदय और सुर्यास्त के समय आकाश में छाई लालिमा को बैठे बैठे निहारना बहूत आनंददायी होता है।
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बहुत अच्छी जानकारी दी इस झील के बारे में. बहुत अच्छा ब्लॉग है आपका
बहुत अच्छी जानकारी हैं ऐतिहासिक तथ़्यो के साथ …….
Jgb
nice information thanks fir sharing
Good
jankari dene ke liye aapko dhanywad aage bhi asi hi jankari share karte rhiye