Maharshi Patanjali History & Story in Hindi / महर्षि पतंजलि महान चिकित्सक थे और इन्हें ही ‘चरक संहिता’ का प्रणेता माना जाता है। ‘योगसूत्र’ पतंजलि का महान अवदान है। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे – अभ्रक विंदास, अनेक धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। आज पुरे विश्व में योगसूत्र फैला हैं। पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार है जो हिन्दुओं के छः दर्शनों (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त) में से एक है।
महर्षि पतंजलि की कहानी – Maharshi Patanjali History In Hindi
भारतिया विज्ञान संस्कृति और योगशास्त्र के जनक महर्षि पतंजलि का नाम हमेशा अमर है। डॉक्टर भगवती लाल राजपुरोहित के मतानुसार पतंजलि का जन्म-स्थान वर्तमान मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 11 किलोमीटर दूर नर्सिंगड़ रोड पर स्तिथ गोनारद्य (गोनिया) मे है। पंतजाली ने अपने गर्न्थो मे इसे “गोर्ना” लिखा है।
डॉक्टर भगवती लाल राजपुरोहित के अनुसार पतंजलि शंगू राजाओ के पुरोहित थे उनका जन्म दो शताब्दी पूर्व मे हुआ था। महर्षि पतंजलि ने योगशास्त्र की रचना की उनके द्वारे बताई गयी योग क्रियाओ द्वारा शारीरिक संतुलन, आत्मिक अनुशासन और श्वास-साधना द्वारा शारीरिक पुष्ट एवं निरोग बनाया जा सकता है।
उनके योग-ज्ञान से भारत ने विश्व के प्राय: सभी देशो को प्रभावित किया–(1) ज्ञानयोग, (.2) कर्मयोग, (3) हठयोग, योग के लिए उन्होने आठ अधार माने है। जिसमे यॅम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी, उनके अनुसार, चित्तवृत्तियो के निरोध को ही योग कहते है। योग से शारीरिक और अध्यमिक विकास होता है।
योग क्रिया मे जड़-चेतन सभी जुड़े होते है। योग पूरा करने के लिए प्रकृति की सारी शक्तिया सहयोग देती है। बिना एकाग्रत, बिना समाधि और बिना सब शक्तियो के संतुलन के योग-साधना संभव नही है।
विधयालय मे छात्रो को पाश्चयात ढंग से कराए जाने वाले व्यायाम अथवा शारीरिक शिक्षा और योग मे ज़मीन आसमान का फ़र्क है। पाश्चयात शारीरिक शिक्षा मे केवल शरीर की उन्नति और मासपेशियो को पुष्ट बनाने मे बल दिया जाता है। जबकि योग मे शरीर, मन और आत्मा एवं उसके प्रत्येक अवयव – परमाणु और अंग के विकास को महत्व दिया जाता है।
अब धीरे-धीरे विद्यालायो मे योग को भी महत्व दिया जाने लगा है। अनेक बाहर के देशो ने भी भारत के योग-विज्ञान को अपनाया है। प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने भी अपनी छमता का श्रेय ‘योग’ को ही दिया था भारत मे सभी अवतार, ऋषि, मुनि, साधक और साधु योग से अनुशासित रहे है।
श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम और श्री कृष्ण को योगेश्वर कहा गया है। गौतम बुध और महावीर स्वामी ने भी योग साधना की थी महात्मा गाँधी और तिलक योग के कर्म-पछ के समर्थक थेयोग शब्द ‘यूज’ धातु से उत्पन्न हुआ है। जिसका अर्थ है जोड़। मेल तथा एकत्र अवस्थिति, योग द्वारा जीव अपनी अंत: वृतीयो को अनुशासित कर आत्म समर्पणद्वारा परमात्मा का अनुभव कर सकता है।
योग चित्तवृत्तियो के निरोध एवं आत्मा और परमात्मा के मिलन मे भी सहायक है। पहले से ऋग्वेद, अर्थवेद और उपनिषदो मे बिखरे हुए योग के शिद्धांतो को पंतजाली ने दार्शनिक रूप प्रदान किया, जैन धर्म और बोध धर्म मे योग के महत्व को स्वीकार किया गया। गोरखनाथ, कबीर और नानक ने भी योग की प्रशंसा बारंबार अपने काव्य अथवा उपदेशो मे की है।
पतंजलि के योग का प्रभाव तांत्रिक संप्रदायो और सिख गुरुओ पर भी पड़ा, जिन्होने इसे अपनाया था। स्वामी विवेकानंद, शिवानंद और योगनांद ने योग प्रचार यूरोप के देशो मे किया और काई योग-केंद्र चल रहे है। महेश योगी के लखो विदेशी शिष्य योग की शिक्षा प्राप्त करने भारत आते है।
इस तरह पतंजलि के योग का सम्मान प्राचीन काल से अबतक निरंतर किया जा रहा है।
21 जून को पूरे विश्व मे “योग दिवस” मनाया जाता है जिसकी घोसना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 की, जिसे संयुक्त रास्ट्र संघ ने मान्यता दे दी।
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21 जून को योग दिवस मनाया जाता है लेकिन इस कि प्रस्तावना माननीय प्रधानमंत्री जी ने UN में 27 सितंबर 2014 को रखी न कि 2015 ।। वर्ष को सही से लिखे।।धन्यवाद।।
धन्यवाद सर