Makka Madina / मक्का मदीना, मुस्लिम धर्म के लिए बहुत ही पवित्र स्थान हैं। यही पर हज यात्रा पूरी की जाती हैं। आइये जाने हज और मक्का-मदीना के बारे में..
पवित्र मक्का मदीना का परिचय – Introduction of Makka and Madina
मक्का मदीना सऊदी अरब के हेजाज़ प्रांत में स्थित एक प्रमुख मुस्लिम तीर्थ स्थल है। सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम का जन्म हुआ, इसलिए मक्का और मदीना जैसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थल उस देश की थाती हैं। मक्का में पवित्र काबा है, जिसकी परिक्रमा कर हर मुसलमान अपने गुनाहो से आज़ाद हो जाता है। इसके अलावा यह भी माना जाता है यहां आकर जन्नत का रास्ता खुल जाता है। यही वह स्थान है जहां हज यात्रा सम्पन्न होती है।
यहाँ दुनिया के कोने-कोने से मुसलमान इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं, जिसे “ईदुल अजहा’ या ‘बकरी-ईद’ कहा जाता है। समुद्र सतह से 277 मीटर (909 फ़ीट) ऊँची जिन्नाह की घाटी पर शहर से 70 किलोमीटर अंदर स्थित है। 2012 तक तक़रीबन वहाँ 2 मिलियन लोग रहते थे, बल्कि इसके तीन गुना लोग प्रतिवर्ष लोग इसे देखने आते है।
पवित्र मक्का मदीना का इतिहास – Makka And Madina History in Hindi
मक्का पर लंबे समय तक पैगम्बर मुहम्मद साहब के वंशजो ने शासन किया है, जिनमे शरीफ भी शामिल है जो स्वतंत्र रूप से शासन करते थे। आकार और आकृति को देखते हुए मक्का बहुत खूबसूरत है।
इस्लामी परंपरा के अनुसार मक्का की शुरुआत इश्माइल वंश ने की थी। 7 वीं शताब्दी में, ये एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था यह एक सँकरी, बलुई तथा अनुपजाऊ घाटी में बसा है, जहाँ वर्षा कभी-कभी ही होती है। नगर का खर्च यात्रियों से प्राप्त कर द्वारा पूरा किया जाता है।
माना जाता है कि यही वह स्थान है जहां पैगम्बर साहब का जन्म 571 ईस्वीं मे हुआ था। फिर मक्कावासियों से झगड़ा हो जाने के कारण पैगम्बर मुहम्मद साहब 622 ईस्वीं में मक्का छोड़कर मदीना चले गए थे। अरबी भाषा में सफर करना “हिजरत” कहलाता है यही से सवंत हिजरी की शुरुआत हुई थी। पैगम्बर साहब ने ही मूर्ति पूजा का खंडन करते हुए यहां इस्लाम धर्म की स्थापना की थी। इसके बाद से यह स्थान इस्लाम धर्म के लोगों के लिए जन्नत तक पहुंचने का रास्ता तथा एक पवित्र तीर्थ माना जाता है।
पवित्र हज की यात्रा – Haj Yatra History in Hindi
हज इस्लाम के पांच मूल स्तंभ में से एक है, साथ ही यह एक धार्मिक कर्तव्य है जिसे अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार पूरा करना हर उस मुस्लिम चाहे स्त्री हो या पुरुष का कर्तव्य है जो सक्षम शरीर होने के साथ साथ इसका खर्च भी उठा पाने में समर्थ हो। शारीरिक और आर्थिक रूप से हज करने में सक्षम होने की स्थिति को इस्ति’ताह कहा जाता है और वो मुस्लिम है जो इस शर्त को पूरा करता है मुस्ताती कहलाता है। हज मुस्लिम लोगों की एकजुटता का प्रदर्शन होने के साथ साथ अल्लाह (ईश्वर) में विश्वास होने का भी द्योतक है।
पैगम्बर मुहम्मद साहब ने शिष्यों को अपने पापों से मुक्ति पाने के लिये जीवन में कम से कम एक बार मक्का आना आवश्यक बताया था। जिसे हज के नाम से जाना जाता है। अत: विश्व के कोने-कोने से मुस्लिम लोग पैदल, ऊँटों, ट्रकों, तथा जहाजों से यहाँ आते हैं।
यहां हर वर्ष करोड़ मुस्लिम हज यात्रा के लिए आते हैं। मक्का में एक पत्थरों से बना हुआ विशाल मस्जिद स्थित है। इसके मध्य एक चकोर काबा स्थित है। यह ग्रेनाइट पत्थर से बना हैं, जो 40 फुट लंबा तथा 33 फुट चौड़ा है। इसमें कोई खिड़की नहीं है, बल्कि एक दरवाज़ा है। काबा के पूर्वी कोने में ज़मीन से लगभग पाँच फुट की ऊँचाई पर पवित्र काला पत्थर स्थित है।
मुस्लिम तीर्थ यात्री यहां आकर सात चक्कर लगाते हैं तथा चक्कर पूरा होने के बाद इसको माथा लगाकर चूमते हैं। इस विशाल मस्जिद के पास ही एक “जम जम” नामक पवित्र कुंआ स्थित है। जिसका पानी कभी नही सुखता। जयरीनो के लिए चौबीस घंटा पानी निकलते रहता हैं। इस कुएं का पानी पीकर यहां एक शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदा की जाती है।
हज यात्रा का समय –
सम्पूर्ण विश्व में इस्लामी तारीख़ के अनुसार 10 जिलहज को विश्व के कोने-कोने से मुस्लिम इस पवित्र स्थान पर पहुँचते हैं, जिसे इस्लाम धर्म के लोग “ईद-उल-अजहा” जिस सामान्यतः “बकरी ईद” के नाम से जाना जाता है, के दौरान ही पवित्र तीर्थ यात्रा हज के लिए जाते हैं।
इस्लामी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है इसलिए इसमें, पश्चिमी देशों में प्रयोग में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर से ग्यारह दिन कम होते हैं, इसीलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हज की तारीखें साल दर साल बदलती रहती हैं।
गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है
मक्का और मदीना के कुछ मील तक चारों ओर के क्षेत्र को पवित्र माना जाता है। अत: इस क्षेत्र में कोई युद्ध नहीं हो सकता और न ही कोई पेड़-पौधा काटा जा सकता है। मक्का मदीना संपूर्ण पवित्र इस्लामिक स्थान होने के कारण, यहां गैर इस्लाम के लोगों का जाना निषेध है।
अब तक इन सूचनाओं में यह भी लिखा जाता था कि “काफिरों’ का प्रवेश प्रतिबंधित है। लेकिन इस बार “काफिर’ शब्द के स्थान पर “नान मुस्लिम’ यानी गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, लिखा था। “काफिर’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है “इनकार करना’ अथवा “छिपाना’। वास्तव में “काफिर’ शब्द का उपयोग नास्तिक के लिए किया जाता है। दुर्भाग्य से “काफिर’ शब्द को हिन्दुओं से जोड़ दिया, जो एकदम गलत है। ईसाई, यहूदी, पारसी और बौद्ध भी उस वर्जित क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते।
मस्जिद-अल-हरम – Masjid-Al-Haram in Hindi
मक्का में ‘मस्जिद-अल-हरम’ नाम से एक विख्यात मस्जिद है। यह इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल, काबा, को पूरी तरह से घेरने वाली एक मस्जिद है। और दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद भी है। इस प्राचीन मस्जिद के चारों ओर पुरातात्विक महत्व के खंभे हैं। लेकिन कुछ समय पहले सऊदी सरकार के निर्देश पर इसके कई खंभे गिरा दिए गए। इस्लामी बुद्धिजीवियों में से अनेक लोगों का यह मत है कि इसी के पास से पैगम्बर साहब ‘बुरर्क’ (पंख वाले घोड़े) पर सवार होकर ईश्वर का साक्षात् करने के लिए जन्नत चले गये थे।
बताया जाता है कि ‘मस्जिद-अल-हरम’ 356 हज़ार 800 वर्ग मीटर (यानि 88.2 एकड़) में फैली हुई है। इसमें हज के दौरान 40 लाख लोग आ सकते हैं। जो मनुष्यों का सबसे बड़ा वार्षिक जमावड़ा है कहा जाता है कि इसका निर्माण हजरत इब्राहीम ने किया था। अब इस मस्जिद के पूर्वी भाग के खम्भों को धराशायी किया जा रहा है। इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यहाँ पैगम्बर हजरत मुहम्मद एवं उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण क्षणों को अरबी में अंकित किया गया है।
प्रसिद्ध अवधारणाएं: मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था – Makka Madina Facts
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ स्थान मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में बहुत विस्तार से लिखा है। इसके अलावा कहा जाता है की अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को ‘लात’ कहा जाता था।
मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। लेकिन ये सब कितना सच है – यह विवादित है। अभी तक तो यह सिर्फ एक अफवाह ही लगती है।
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कृपया पैगंबर साहब के जन्मतिथी को देखें जो कि ईपू उल्लेखित है, जो शायद इसकी सन है।
धन्यवाद ।
धन्यवाद संजय सर, हमारी ग़लती बताने के लिए. इस ग़लती के लिए हमे खेद हैं. इसी तरह हमारे साथ जुड़े रहे और हमे मार्गदर्शन करते हैं.
in starting para Makka mentioned as building .Makka is city and building is Kaba
First para of history of Makka & Madina is totaly wrong removal isbetter of that para .ALWAYS use PAIGAMBAR MOHAMMAD
mene iski bahut story padi kisi mei shivji ka hona such h kisi mei galat to such kya h reality kya h
Macca ka itihaas keval ek aalim musalmaan hi jaanta h y shivling kha se aa gya nhi ptA to please y sab jhut mat boliye
Pure saudi arab m ek bhi patthar nhi jiski pooja karte ho kyo ki vha par dusre dharam ki baat karna bhi kannonan apradh h baat karte ho shivling ki please aap ek baar saudi arab ka kannoon dekh li jiye
Hamesha esa hota aayahe ke log apne purwaj ya fir apne babao ki unke merne ke baad unki pooja unki ebadat shuru kerdete they aur ab bhi kerte hen.
Ye culture sirf Hind ka nahi balke dusre desho me bhi hua kerta tha.
Jo ke ek Ishwar ke batayhuy raaste ke wiprit he.
Usi andh kaal se nikalne ke liy Ishwar ne hamesha apne Rishimunio ko bheja kerte they.
Per ab logo ko samajh aane laga he aur andh kaal se log nikalne lage hen.
Logo ne Ishwar ke bheje huy doot ko bhi poojna shuru kerdiya.
maccah ka sahi itihas janna ho to elaan calendar me dekhen