माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की जीवनी | M.S Golwalkar Biography in Hindi

Madhav Sadashiv Golwalkar / माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक तथा महान विचारक थे। उन्हें जनसाधारण प्राय: ‘गुरूजी’ के ही नाम से अधिक जानते हैं। गुरु गोलवलकर ने ना सिर्फ आरएसएस को बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंचाया बल्कि उन्होंने देश सेवा के लिए भी बहुत काम किया।

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की जीवनी | M.S Golwalkar Biography in Hindi

गुरूजी का संक्षिप्त परिचय – Madhavrao Sadashiv Golwalkar ka Jeevan Parichay

पूरा नाम  माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर
अन्य नाम  गुरूजी
पिता का नाम श्री सदाशिव राव उपाख्य
माता का नाम लक्ष्मीबाई उपाख्य
जन्म 19 फरवरी 1906
जन्म स्थान  रामटेक (महाराष्ट्र)
शिक्षा विज्ञान में मास्टर डिग्री
प्रसिद्धि कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक
मृत्यु  5 जून 1973
मृत्यु स्थान  नागपुर

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की जीवनी – Madhav Sadashiv Golwalkar Biography

प्रारंभिक जीवन

श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर  “श्री गुरूजी”  का जन्म माघ कृष्ण एकादशी (विजया एकादशी) विक्रम संवत् 1962 तथा आंग्ल तिथि 19 फरवरी 1906 को प्रातः के साढ़े चार बजे नागपुर के ही श्री रायकर के घर में हुआ। उनका नाम माधव रखा गया। परन्तु  परिवार के सारे लोग उन्हें मधु नाम से ही सम्बोधित करते थे। बचपन में उनका यही नाम प्रचलित था। ताई-भाऊजी की कुल 9 संतानें हुई थीं। उनमें से केवल मधु ही बचा रहा और अपने माता-पिता की आशा का केन्द्र बना। उनके माता-पिता को ऐसा लगता था कि नियति ने किसी बड़े कार्य को करने के लिए ही जीवित रखा था।

शिक्षा (M.S Golwalkar Education Qualification)

जब वे दो साल के थे तभी उनके पिता जी ने उनकी शिक्षा प्रारंभ करा दी थी। उनके पिता जी उन्हें जो भी सिखाते उसे गुरु जी बहुत ही सहजता के साथ समझ लेते थे। साल 1919 में गुरु जी ने हाई स्कूल की परीक्षा में अपनी विशेष योग्यता दिखाते हुए स्कॉलरशिप प्राप्त की थी।

इसके बाद उन्होंने नागपुर के हिसलोप कॉलेज से स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद, विज्ञान में मास्टर डिग्री के लिए वाराणसी के हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। गुरु जी बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय जी से काफी प्राभावित थे। मदन मोहन मालवीय ने युवा माधव गोलवलकर को हिंदुओं के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। दिन प्रतिदिन उनका कद बढ़ता जा रहा था। अपनी युवा अवस्था के दौरान उन्होंने बीएचओ में जूलॉजी के प्रोफेस के रूप में भी काम किया था। यहीं से उन्हें छात्रों ने गुरूजी कहना शुरू कर दिया था।

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर का करियर – (M.S Golwalkar Career)

1936 में गुरु जी ने आरएसएस के लिए काम करना शुरु किया और उन्होंने दिक्षा ली। हालाँकि गोलवलकर ने संन्यासी बनने के लिए पश्चिम बंगाल में सरगाछी रामकृष्ण मिशन आश्रम के लिए अपनी वकालत और आरएसएस का काम छोड़ दिया। वह स्वामी अखंडानंद के शिष्य बन गए, जो रामकृष्ण के शिष्य और स्वामी विवेकानंद के भाई भिक्षु थे। 13 जनवरी 1937 को गोलवलकर ने कथित तौर पर दीक्षा प्राप्त की, लेकिन इसके तुरंत बाद आश्रम छोड़ दिया। 1937 में अपने गुरु की मृत्यु के बाद हेडगेवार की सलाह लेने के लिए वे अवसाद और अनिर्णय की स्थिति में नागपुर लौट आए। 1939 में उन्हें आरएसएस का प्रधान सचिव नियुक्त किया गया।

बाद में श्री गुरुजी संघ के द्वितिय सरसंघचालक बने और उन्होंने यह दायित्व 1973 की 5 जून तक अर्थात लगभग 33 वर्षों तक संभाला। ये 33 वर्ष संघ और राष्ट्र के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण रहे। 1942 का भारत छोडो आंदोलन, 1947 में देश का विभाजन तथा खण्डित भारत को मिली राजनीतिक स्वाधीनता, विभाजन के पूर्व और विभाजन के बाद हुआ भीषण रक्तपात, हिन्दू विस्थापितों का विशाल संख्या में हिन्दुस्थान आगमन, कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण।

1948 की 30 जनवरी को गांधीजी की हत्या, उसके बाद संघ-विरोधी विष-वमन, हिंसाचार की आंधी और संघ पर प्रतिबन्ध का लगाया जाना, भारत के संविधान का निर्माण और भारत के प्रशासन का स्वरूप व नितियों का निर्धारण, भाषावार प्रांत रचना, 1962 में भारत पर चीन का आक्रमण, पंडित नेहरू का निधन, 1965 में भारत-पाक युद्ध, 1971 में भारत व पाकिस्तान के बिच दूसरा युद्ध और बंगलादेश का जन्म, हिंदुओं के अहिंदूकरण की गतिविधियाँ और राष्ट्रीय जीवन में वैचारिक मंथन आदि अनेकविध घटनाओं से व्याप्त यह कालखण्ड रहा।

इस कालखण्ड में परम पूजनीय श्री गुरुजी ने संघ का पोषण और संवर्धन किया। भारत भर अखंड भ्रमण कर सर्वत्र कार्य को गतिमान किया और स्थान-स्थान पर व्यक्ति- व्यक्ति को जोड़कर सम्पूर्ण भारत में संघकार्य का जाल बिछाया। विपुल पठन-अध्ययन, गहन चिंतन, आध्यात्मिक साधना व गुरुकृपा, मातृभूमि के प्रति निस्वार्थ समर्पणशीलता, समाज के प्रति असीम आत्मीयता, व्यक्तियों को जोडने की अनुपम कुशलता आदि गुणों के कारण उन्होंने सर्वत्र संगठन को तो मजबूत बनाया ही, साथ ही हर क्षेत्र में देश का परिरक्व वैचारिक मार्गदर्शन भी किया।

संघ के विशुद्ध और प्रेरक विचारों से राष्ट्रजीवन के अंगोपांगों को अभिभूत किये बिना सशक्त, आत्मविश्वास से परिपूर्ण और सुनिश्चित जीवन कार्य पूरा करने के लिए सक्षम भारत का खड़ा होना असंभव है, इस जिद और लगन से उन्होंने अनेक कार्यक्षेत्रों को प्रेरित किया। विश्व हिंदू परिषद्, विवेकानंद शिला स्मारक, अखिल भारतीय विद्दार्थी परिषद्, भारतीय मजदूर संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, शिशु मंदिरों आदि विविध सेवा संस्थाओं के पीछे श्री गुरुजी की ही प्रेरणा रही है। राजनीतिक क्षेत्र में भी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को उन्होंने पं. दिनदयाल उपाध्याय जैसा अनमोल हीरा सौंपा।

समय समय पर सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों ने संघ की छवि को खराब करने की कोशिश की पर गुरुजी के नेतृत्व में संघ ने कभी घुटने नहीं टेके। गुरु गोलवलकर ने हिंदू धर्म को फैलाने के लिए जहां कई कदम उठाए वहीं उन्होंने कभी भी किसी अन्य धर्म की बुराई या ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे किसी अन्य धर्म की भावनाओं को आघात पहुंचे।

गुरूजी की मृत्यु (Madhav Sadashiv Golwalkar Death)

05 जून, 1973 को नागपुर में गुरु गोलवलकर की कैंसर के कारण मृत्यु हो गई। गुरुजी तो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन फिर भी उनके विचारों और दिखाए गए पथ पर संघ आज भी चल रहा है और निरंतर अग्रसर है। गुरूजी धर्मग्रन्थों एवं विराट हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था जिसे उन्होंने राष्ट्र सेवा और संघ के दायित्व की वजह से सहर्ष अस्वीकार कर दिया।

अब यह तो सिर्फ राजनीति है कि गुरु गोलवलकर को कभी किसी बड़े सम्मान जैसे पद्मश्री, पद्म विभूषण आदि से अलंकृत नहीं किया गया। लेकिन गुरु गोलवलकर इन सभी पुरस्कारों से ऊपर हैं। इस मसीहा को किसी अवार्ड या पुरस्कार में नहीं बांधा जा सकता।

गुरूजी के विचार (Madhav Sadashiv Golwalkar Quotes in Hindi)

हर समय परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं रहने वाली हैं। हमें बाधाओं और प्रतिकूलताओं का सामना करना होगा। निडरता एक नायक का पहला गुण है, अन्य सभी महान गुणों का प्रारंभिक बिंदु भी हैं।

This is our sacred land, Bharat, a land whose glories are sung by the
Gods, a land visualized by Mahayogi Aurobindo as the living manifestation
of the Divine Mother of the universe, the Jaganmaataa, the Aadishakti,
the Mahaamaayaa, the Mahaadurgaa, Who has assumed concrete form to
enable us to see Her and worship Her,…a land worshipped by all our seers and
sages as Maatrubhoomi, Dharmabhoomi, Karmabhoomi and Punybhoomi, a
veritable Devabhoomi and Mokshabhoomi

― Madhav Sadashiv Golwalkar

FAQ

गुरु गोलवलकर कौन थे?

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक तथा महान विचारक थे।

गोलवलकर का जन्म कब हुआ?

19 फरवरी 1906

गुरुजी का पूरा नाम क्या है?

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की किताबें – M.S Golwalkar Books in Hindi

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