कैप्टन लक्ष्मी सहगल की जीवनी | Lakshmi Sahgal Biography in Hindi

Captain Laxmi Sehgal / कैप्टन लक्ष्मी सहगल एक महान् स्वतंत्रता सेनानी और आज़ाद हिन्द फ़ौज की अधिकारी थीं। पेशे से डॉक्टर रहीं लक्ष्मी सहगल ने आजाद हिंद फौज में सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट का नेतृत्व किया था। लक्ष्मी सहगल आज़ाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री भी रहीं। सहगल को भारत में साधारणतः “कैप्टन सहगल” के नाम से भी जानी जाती है। उन्हें यह उपनाम तब दिया गया जब द्वितीय विश्व युद्ध के समय बर्मा में उन्हें कैद करके रखा गया था।

कैप्टन लक्ष्मी सहगल की जीवनी | Lakshmi Sahgal Biography in Hindi

कैप्टन लक्ष्मी सहगल का परिचय – Lakshmi Sahgal ka Jeevan Parichay 

पूरा नामलक्ष्मी स्वामीनाथन (Lakshmi Swaminathan)
दूसरा नामकप्तान लक्ष्मी सहगल (Captain Lakshmi Sahgal)
जन्मतिथि24 अक्टूबर 1914
जन्मस्थानमद्रास, भारत
मृत्यु23 जुलाई 2012 (कानपुर, उत्तर प्रदेश)
शिक्षामद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की स्त्री रोग और प्रसूति में डिप्लोमा
राष्ट्रीयताभारतीय
धर्महिन्दू
पतिपी. के. एन. रॉव (1940), प्रेम कुमार सहगल (1947-1992)
बच्चेसुभाषिनी अली, अनीसा पुरी कानपूर
योगदानक्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Lakshmi Sahgal

कैप्टन लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर, 1914 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था। कैप्टन लक्ष्मी सहगल का विवाह से पहले नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था। उनके पिता का नाम डॉ. एस. स्वामीनाथन और माता का नाम एवी अमुक्कुट्टी (अम्मू) था। पिता मद्रास उच्च न्यायालय के जाने माने वकील थे। उनकी माता अम्मू स्वामीनाथन एक समाजसेवी और केरल के एक जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी परिवार से थीं, जिन्होंने आजादी के आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

शिक्षा – Education of Lakshmi Sahgal

1930 में उनके पिता का देहावसान हो गया इस दुःख की घडी में भी साहसपूर्वक सामना करते हुए 1932 में लक्ष्मी ने विज्ञान में स्नातक परीक्षा पास की। कैप्टन डॉ. सहगल शुरू से ही बीमार गरीबों को इलाज के लिये परेशान देखकर दु:खी हो जाती थीं। इसी के मद्देनज़र उन्होंने गरीबों की सेवा के लिये चिकित्सा पेशा चुना और 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री हासिल की।

इसके एक साल बाद उन्होंने स्त्री रोग और प्रसूति में डिप्लोमा हासिल कर लिया। चेन्नई में स्थापित सरकारी कस्तूरबा गाँधी अस्पताल में वह डॉक्टर का काम करती थी। इसके दो वर्ष बाद लक्ष्मी को विदेश जाने का अवसर मिला और वह 1940 में सिंगापुर चली गयीं।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान – Lakshmi Sahgal Life History in Hindi

सिंगापुर में जाके उन्होंने भारत से आए अप्रवासी मज़दूरों के लिए निशुल्क चिकित्सालय खोला साथ ही ‘भारत स्वतंत्रता संघ’ की सक्रिय सदस्या भी बनीं। वर्ष 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अंग्रेज़ों ने सिंगापुर को जापानियों को समर्पित कर दिया तब उन्होंने घायल युद्धबन्दियों के लिये काफ़ी काम किया। उसी समय ब्रिटिश सेना के बहुत से भारतीय सैनिकों के मन में अपने देश की स्वतंत्रता के लिए काम करने का विचार उठ रहा था।

विदेश में मज़दूरों की हालत और उनके ऊपर हो रहे जुल्मों को देखकर उनका दिल भर आया। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने देश की आजादी के लिए कुछ करेंगी। सिंगापुर में उस समय बहुत से सक्रीय राष्ट्रिय स्वतंत्रता सेनानी जैसे के.पी. केसव मेनन, एस.सी. गुहा, और एन. राघवन इत्यादि थे, जिन्होंने कौंसिल ऑफ़ एक्शन की स्थापना की। उनकी आज़ाद हिंद फ़ौज ने युद्ध में शामिल होने के लिए जापानी सेना की अनुमति भी ले रखी थी।

लक्ष्मी के दिल में आजादी की अलख जग चुकी थी इसी दौरान देश की आजादी की मशाल लिए नेता जी सुभाष चन्द्र बोस 2 जुलाई 1943 को सिंगापुर आए तो डॉ. लक्ष्‍मी भी उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं और अंतत: क़रीब एक घंटे की मुलाकात के बीच लक्ष्मी ने यह इच्छा जता दी कि वह उनके साथ भारत की आजादी की लड़ाई में उतरना चाहती हैं। बोस महिलाओ को आगे बढ़ाने के उनके संकल्प के बारे में बोलते थे, जिसमे वे उनसे कहते थे की, “देश की आज़ादी के लिए लढो और आज़ादी को पूरा करो।”

लक्ष्मी के भीतर आज़ादी का जज़्बा देखने के बाद नेताजी ने उनके नेतृत्व में ‘रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट’ बनाने की घोषणा कर दी जिसमें वह वीर नारियां शामिल की गयीं जो देश के लिए अपनी जान दे सकती थीं। 22 अक्तूबर, 1943 में डॉ. लक्ष्मी ने रानी झाँसी रेजिमेंट में ‘कैप्टन’ पद पर कार्यभार संभाला। अपने साहस और अद्भुत कार्य की बदौलत बाद में उन्हें ‘कर्नल’ का पद भी मिला, जो एशिया में किसी महिला को पहली बार मिला था। लेकिन लोगों ने उन्हें ‘कैप्टन लक्ष्मी’ के रूप में ही याद रखा। डॉ. लक्ष्मी अस्थाई ‘आज़ाद हिंद सरकार’ की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं।

राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित लक्ष्मी स्वामीनाथन डॉक्टरी पेशे से निकलकर आजाद हिंद फौज़ में शामिल हो गईं। उनके नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज की महिला बटालियन रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट में कई जगहों पर अंग्रेजों से मोर्चा लिया और अंग्रेजों को बता दिया कि देश की नारियां चूडिय़ां तो पहनती हैं लेकिन समय आने पर वह बन्दूक भी उठा सकती हैं और उनका निशाना पुरुषों की तुलना में कम नहीं होता।

सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना मे रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किये। उनको बेहद मुश्किल जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनके कंधों पर जिम्मेदारी थी फौज में महिलाओं को भर्ती होने के लिए प्रेरणा देना और उन्हें फौज में भर्ती कराना। लक्ष्मी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया। जिस जमाने मे औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था उस समय उन्होंने 500 महिलाओं की एक फ़ौज तैयार की जो एशिया मे अपने तरह की पहली विंग थी।

इसके बाद भारतीय राष्ट्रिय सेना ने जापानी सेना के साथ मिलकर दिसम्बर 1944 में बर्मा के लिए आंदोलन किया। लेकिन युद्ध के दौरान मई 1945 में ब्रिटिश सेना ने कप्तान लक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया और भारत भेजे जाने से पहले मार्च 1946 तक उन्हें बर्मा में ही रखा गया था। लेकिन आजादी के लिए तेजी से बढ़ रहे दबाव के बीच उन्हें रिहा कर दिया गया।

राजनीति करियर – Lakshmi Sahgal Career in Hindi

पति की मौत के बाद कैप्टन लक्ष्मी कानपुर आकर रहने लगीं और बाद में कैप्टन सहगल सक्रिय राजनीति में भी आयीं। 1971 में वह मर्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी/ माकपा (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया/ सीपीआईएम) की सदस्यता ग्रहण की और राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऑल इण्डिया डेमोक्रेटिक्स वोमेन्स एसोसिएशन) की संस्थापक सदस्यों में रहीं।

बांग्लादेश विवाद के समय उन्होंने कलकत्ता में बांग्लादेश से भारत आ रहे शरणार्थीयो के लिए बचाव कैंप और मेडिकल कैंप भी खोल रखे थे। 1981 में स्थापित ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की वह संस्थापक सदस्या है और इसकी बहुत सी गतिविधियों और अभियानों में उन्होंने नेतृत्व भी किया है।

दिसम्बर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड में वे अपने मेडिकल टीम के साथ पीडितो की सहायता के लिए भोपाल पहुची। 1984 में सिक्ख दंगो के समय कानपूर में शांति लाने का काम करने लगी और 1996 में बैंगलोर में मिस वर्ल्ड कॉम्पीटिशन के खिलाफ अभियान करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

उन्होंने महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता के लिए काफ़ी संघर्ष किया। वर्ष 2002 में 88 वर्ष की आयु में उनकी पार्टी (वाम दल) के लोगों के दबाव में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में भी उतरी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आई। एक लम्बे राजनीतिक जीवन को जीने के बाद 1997 में वह काफ़ी कमज़ोर हो गयीं। उनके क़रीबी बताते हैं कि शरीर से कमज़ोर होने के बाद भी कैप्टन सहगल हमेशा लोगों की भलाई के बारे में सोचती थीं तथा मरीजों को देखने का प्रयास करती थीं।

निजी जीवन – Lakshmi Sahgal Personal Life in Hindi

देश आजाद होने ही वाला था कि लाहौर के कर्नल प्रेम कुमार सहगल से उनके विवाह की बात चली और उन्होंने हामी भर दी। वर्ष 1947 में उनका विवाह प्रेम कुमार के साथ हो गया तथा वह कैप्टन लक्ष्मी से कैप्टन लक्ष्मी सहगल हो गयीं। कैप्टन सहगल की दो बेटियां सुभाषिनी अली और अनीसा पुरी हैं। एक बेटी सुभाषिनी ने फ़िल्म निर्माता मुजफ्फर अली से विवाह किया। सुभाषिनी अली 1989 में कानपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद भी रहीं। सुभाषिनी अली ने कम्युनिस्ट नेत्री बृन्दा करात की फ़िल्म ‘अमू’ में अभिनेत्री का किरदार भी निभाया था। डॉ. सहगल के पौत्र और सुभाषिनी अली और मुज़फ्फर अली के पुत्र शाद अली फ़िल्म निर्माता निर्देशक हैं, जिन्होंने ‘साथिया’, ‘बंटी और बबली’ इत्यादि चर्चित फ़िल्में बनाई हैं। प्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई उनकी सगी बहन हैं।

सुभाषिनी के अनुसार कैप्टन डॉ. सहगल कम्युनिस्ट विचार धारा से ज़रूर जुड़ी थी और हमेशा साम्यवाद की बात करती थी, लेकिन वह कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से राज्य सभा की सांसद नहीं चुनी गयी, हालांकि वह कम्युनिस्ट आन्दोलन से लगातार जुड़ी रहीं। वह कभी राज्यसभा की सांसद भी नहीं रही। आईएनए में उनकी सहयोगी और उनकी दोस्त क़रीब 92 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी मानवती आर्य के अनुसार वह देशभक्ति का एक जीता जागता नमूना थीं और हम सबकी प्रेरणा और मार्गदर्शक थीं। वह साम्यवाद की समर्थक थीं और देश में साम्यवाद चाहती थीं। उनका सपना देश में साम्यवाद लाना था और सभी को समान अधिकार दिलाना था।

निधन – Lakshmi Sahgal Death in Hindi

19 जुलाई 2012 को एक कार्डिया अटैक आया और 23 जुलाई 2012 को सुबह 11:20 AM पर 97 साल की उम्र में कानपूर में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पार्थिव शरीर को कानपूर मेडिकल कॉलेज को मेडिकल रिसर्च के लिए दान में दिया गया। उनकी याद में कानपूर में कप्तान लक्ष्मी सहगल इंटरनेशनल एअरपोर्ट बनाया गया।

लक्ष्मी सहगल के अवार्ड – Lakshmi Sahgal Awards 

स्वतंत्रता आंदोलन में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान और संघर्ष को देखते हुए उन्हें 1998 में भारत के राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा पद्मविभूषण सम्मान से नवाजा गया।

FAQ

Q : डॉ लक्ष्मी सहगल का निधन कब हुआ?

Ans – 23 जुलाई 2012 को

Q : कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन कौन थे?

Ans – क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी

Q : आजाद हिंद फौज की महिला रेजीमेंट का नाम क्या था?

Ans – झाँसी की रानी रेजिमेंट


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