Bakrid in Hindi/ बकरीद मुस्लिमो का एक प्रमुख त्यौहार हैं। यह त्यौहार ईद उल ज़ुहा, कुर्बानी अथवा ईद-उल-अज़हा (Eid al-Adha) के नाम से जाना जाता हैं। इस्लामी कैलेण्डर (हिजरी) के आख़िरी महीने अर्थात ज़िलहिज्ज की 10 तारीख़ को बकरीद मनाई जाती है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है।
बकरीद की जानकारी – Bakrid Information in Hindi
इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। एक जश्न की तरह इस त्यौहार को मनाने की रीत हैं। इस दिन मुस्लिम बहुल क्षेत्र के बाजारों की रौनक बढ़ जाती है। बकरीद पर खरीददार बकरे, नए कपड़े, खजूर और सेवईयाँ खरीदते हैं। बकरीद पर कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है। इसलिए हर कोई इस दिन कुर्बानी देता है।
हज की समाप्ति पर इसे मनाया जाता है। इस्लाम के पाँच फर्ज माने गए हैं, हज उनमें से आखिरी फर्ज माना जाता है। मुसलमानों के लिए जिंदगी में एक बार हज करना जरूरी है। हज होने की खुशी में ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है। यह बलिदान का त्योहार भी है। इस्लाम में बलिदान का बहुत अधिक महत्व है। कहा गया है कि अपनी सबसे प्यारी चीज रब की राह में खर्च करो। रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी और भलाई के कामों में।
ईद-उल-फ़ितर की तरह ही इस दिन भी मुसलमान ईदग़ाह जाकर ईद की नमाज़ अदा करते हैं और सब लोगों से गले मिलते हैं। इसके बाद किसी हलाल जानवर ऊँट, भेड़, बकरा आदि की क़ुर्बानी देते हैं। इसी अवसर पर पवित्र शहर मक्का में हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल और हज़रत इब्राहीम की पत्नी व हज़रत इस्माईल की माँ हज़रत हाज़रा की सुन्नतों को अदा करते हैं।
मान्यता – बकरीद की कहानी इतिहास – Bakrid Kyun Manaya Jata Hain
Eid ul adha history in hindi
ईद-अल-अज़हा या ईदे क़ुर्बां एक बड़ी क़ुर्बानी की यादगार के रूप में मनाई जाती है। यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों ही धर्म के पैगंबर हजरत इब्राहीम ने कुर्बानी का जो उदाहरण दुनिया के सामने रखा था, उसे आज भी परंपरागत रूप से याद किया जाता है।
हज़रत इब्राहीम एक पैग़म्बर थे। एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुरबानी मांगी। हज़रत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माईल को इस बारे में बताया तो उन्होंने भी ख़ुदा की बन्दग़ी के सामने सर झुकाते हुए पिता इब्राहीम को इस पर सहमति दे दी। हज़रत इब्राहीम इस्माईल को मीना के मैदान में ले गये। बेटे को ज़मीन पर लिटाया, अपनी आँखों पर पट्टी बाँधी, ताकि प्रिय बेटे के क़ुर्बान होने का मंज़र न देख सके और बेटे की गर्दन पर छुरी फेर दी।
इस बात का उल्लेख क़ुरआन ने इन शब्दों में किया है कि इब्राहीम ने इस्माईल के होशियार होने के बाद उन्हें राहे ख़ुदा में क़ुर्बान करने के लिए उनके गले पर छुरी फेर दी। लेकिन अल्लाह को इब्राहीम के बन्दग़ी की यह अदा इतनी पंसद आई कि इस्माईल को उस जगह से हटाकर स्वर्ग से एक दुम्बा (भेड़) को उसके स्थान पर भेज दिया गया और इस्माईल को बचा लिया गया। केवल यही नहीं इब्राहीम की इस क़ुर्बानी को महत्त्व दिया गया कि हर साल इस दिन किसी जानवर की क़ुर्बानी को तमाम लोगों पर फ़र्ज़ ठहरा कर इसे एक इबादत का दर्जा दे दिया गया। यही नहीं बल्कि जिस जगह अर्थात् मीना के मैदान में यह क़ुर्बानी दी गई, उस मैदान को भी इस तरह यादगार बना दिया गया कि हर वर्ष हज के अवसर पर हाज़ी वहाँ पर उपस्थित होकर क़ुर्बानी व हज़रत इब्राहीम के द्वारा क़ुर्बानी के दौरान अपनाये गये कुछ अमल (मानसिक) को अदा करते हैं।
शैतान ने रास्ता रोका Bakrid Ed ul Adha ki Kahaani
एक वाकया के मुताबिक हजरत इब्राहीम जब बेटे लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे तो रास्ते में उनकी मुलाकात शैतान से हो गई। उसने जानना चाहा कि वह अपने बेटे को लेकर कहां जा रहे हैं। जब हज़रत इब्राहीम ने उन्हें यह बताया कि वह उसे अल्लाह की राह में कुर्बान करने के लिए जा रहे हैं तो उसने उन्हें यह समझाने की कोशिश की क्या कोई बाप अपने बेटे की कुर्बानी भी देता है? अगर उन्होंने अपने बेटे को कुर्बानी दे दी तो फिर उन्होंने देखभाल करने वाला कहां से आएगा? जरूरी नहीं कि बेटे की कुर्बानी दी जाए, बहुत सारी दूसरी चीज हैं, उन्हें ही अपनी सबसे प्रिय बताकर कुर्बानी क्यों नहीं देते? एक बार तो हज़रत इब्राहीम को लगा कि यह शैतान जो कह रहा है, वह सही ही कह रहा है। उनका मन भी डोल गया लेकिन फिर उन्हें लगा कि यह गलत होगा। यह अल्लाह से झूठ बोलना हुआ। यह उनके हुक्म की नाफरमानी होगी।
बकरीद का महत्व – Bakrid Story in Hindi
What is the importance of eid-ul-adha
क़ुर्बानी का महत्त्व यह है कि इन्सान ईश्वर या अल्लाह से असीम लगाव व प्रेम का इज़हार करे और उसके प्रेम को दुनिया की वस्तु या इन्सान से ऊपर रखे। इसके लिए वह अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को क़ुर्बान करने की भावना रखे। क़ुर्बानी के समय मन में यह भावना होनी चाहिए कि हम पूरी विनम्रता और आज्ञाकारिता से इस बात को स्वीकार करते हैं कि अल्लाह के लिए ही सब कुछ है।
इसके आलावा इस्लाम में हज करना जिंदगी का सबसे जरुरी भाग माना जाता हैं। जब वे हज करके लौटते हैं तब बकरीद पर अपने अज़ीज़ की कुर्बानी देना भी इस्लामिक धर्म का एक जरुरी हिस्सा हैं जिसके लिए एक बकरे को पाला जाता हैं। दिन रात उसका ख्याल रखा जाता हैं। ऐसे में उस बकरे से भावनाओं का जुड़ना आम बात हैं। कुछ समय बाद बकरीद के दिन उस बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं। ना चाहकर भी हर एक इस्लामिक का उस बकरे से एक नाता हो जाता हैं फिर उसे कुर्बान करना बहुत कठिन हो जाता हैं। इस्लामिक धर्म के अनुसार इससे कुर्बान हो जाने की भावना बढती हैं। इसलिए इस तरह का रिवाज़ चला आ रहा हैं।
इसीलिए इस सम्बन्ध में क़ुरआन में कहा गया है कि- ‘न उनके (अर्थात् क़ुर्बानी के लिए जानवरों के) ग़ोश्त अल्लाह को पहुँचते हैं, न ख़ून, मगर (अल्लाह के पास) तुम्हारा तक़बा (मानसिक पवित्रता) पहुँचता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि अल्लाह के पास केवल इन्सान के दिल की कैफ़ियत पहुँचती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि जब इन्सान का हृदय पवित्र हो जाएगा और अल्लाह के लिए उसका पूर्ण समर्पण होगा तो इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन और समाज पर भी पड़ेगा। वह हर बुरे काम से और मानवता के विरुद्ध कोई भी काम करने से बचेगा। अल्लाह को ख़ुश रखने के लिए लोगों के साथ में भलाई करेगा। दयावान बनेगा, और इस तरह एक सभ्य और आध्यात्मिकता से पूर्ण समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा।
कुर्बानी का फर्ज – Bakrid (eid-al-adha) in Hindi
कुर्बानी का अर्थ है कि रक्षा के लिए सदा तत्पर। हजरत मोहम्मद साहब का आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या मुल्क में रहने वाला है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह उस देश, समाज, परिवार की हिफाजत के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहे।
ईद-उल-अज़हा पर क़ुर्बानी का एक उद्देश्य ग़रीबों को भी अपनी ख़ुशियों में भागीदार बनाना है। इसीलिए कहा गया है कि क़ुर्बानी के ग़ोश्त को तीन हिस्सों में बाँटों। एक हिस्सा अपने लिए, दूसरा अपने पड़ोसियों के लिए और तीसरा ग़रीबों व यतीमों के लिए रखो। यह भी कहा गया है कि ग़रीबों तक उनका हिस्सा स्वयं ही पहुँचाओ। अर्थात उन्हें मांगने के लिए तुम्हारे दरवाज़े तक न आना पड़े। वास्तव में इस हुक़्म या निर्देश का उद्देश्य समाज में समानता की भावना स्थापित करना और पड़ोसियों व ग़रीबों को भी अपनी ख़ुशियों में शामिल करना है। दयालुता और ग़रीबों के लिए चिंता या उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना भी इसका एक उद्देश्य है। यह बात स्पष्ट है कि किसी अच्छे समाज के निर्माण में बलिदान और समर्पण की भावना का विशेष योगदान होता है। इससे समाज में एकता व भाईचारे का प्रचार-प्रसार होता है और वह समाज प्रगति करता है।
बकरीद कैसे मनाया जाता हैं – Bakrid Kaise Manate Hain
पूरी दूनिया के मूसलमान इस महीने में मक्का सऊदी अरब में एकत्रित होकर हज मनाते है। ईद उल अजहा भी इसी इसी दिन मनाई जाती है।
सबसे पहले ईदगाह में ईद सलत पेश की जाती हैं। इस दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ते हैं। मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है। नमाज़ पढ़कर आने के बाद ही कुरबानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। ईद उल फित्र की तरह ईद उल ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए।
ईद उल अजहा पुरे परिवार एवम जानने वालो के साथ मनाई जाती हैं। सबके साथ मिलकर भोजन लिया जाता हैं। नये कपड़े पहने जाते हैं। गिफ्ट्स दिए जाते हैं खासतौर पर गरीबो का ध्यान रखा जाता हैं उन्हें खाने को भोजन और पहने को कपड़े दिये जाते हैं। बच्चों और अपने से छोटो को ईदी दी जाती हैं। ईद की प्रार्थना नमाज अदा की जाती हैं। इस दिन बकरे के अलावा गाय, बकरी, भैंस और ऊंट की कुर्बानी दी जाती हैं। कुर्बान किया जाने वाला जानवर देख परख कर पाला जाता हैं अर्थात उसके सारे अंग सही सलामत होना जरुरी हैं। बकरे को कुर्बान करने के बाद उसके मांस का एक तिहाई हिस्सा खुदा को, एक तिहाई घर वालो एवम दोस्तों को और एक तिहाई गरीबों में दे दिया जाता हैं। बकरों के अलावा भेड़, ऊंट और भैंसे की भी कुर्बानी दी जाती है लेकिन शर्त यह होती है कि वह पूरी तरह स्वस्थ हों।
कुर्बानी रश्म – बकरा ईद की कुर्बानी
कुर्बानी हमेशा बकरीद की नमाज अदा करने के बाद दी जाती है। बकरी और भेड़ पर एक व्यक्ति के नाम से कुर्बानी होती है लेकिन ऊंट या भैंस पर सात व्यक्ति अपने-अपने नाम से कुर्बानी दे सकते हैं।
FAQ
Ans : 9 जुलाई
Q : बकरीद का महत्व क्या हैं?
Ans : बकरीद का पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है।
Ans : ईद-उल-अज़हा, ईद उल ज़ुहा, कुर्बानी
Ans : बकरीद की नमाज बाद करने के बाद, बकरे की क़ुरबानी दी जाती हैं।
Q : बकरा क्यों काटा जाता है?
Ans : क़ुरबानी अल्ल्हा को राज़ी – खुश करने के लिए दी जाती है।
Ans : नमाज अदा करने के बाद, लोग साथ में भोजन करते हैं।
Q : बकरीद का दिन कैसा दिन होता है ?
Ans : फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है।
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