Kalinjar Fort / कलिंजर किला, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित हैं। यह किला खजुराहो पर्यटन का एक बड़ा आकर्षण है। एक पहाड़ी का चोटी पर स्थित इस किले में अनेक स्मारकों और मूर्तियों का खजाना है। चंदेलों द्वारा बनवाया गया यह किला चंदेल वंश के शासनकाल की भव्य वास्तुकला का उम्दा उदाहरण है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है।
कलिंजर किला, उत्तर प्रदेश – Kalinjar Fort Information in Hindi
Kalinjar ka Kila – कालिंजर किला भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस किले के अंदर कई भवन और मंदिर हैं। इस विशाल किले में भव्य महल और छतरियाँ है जिनपर बारीक डिज़ाइन और नक्काशी की गई है। यह किला हिंदू भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इस किले में नीलकंठ महादेव का एक अनोखा मंदिर है। दरअसल मंथन के बाद हिन्दू भगवान शिव ने यहाँ जहर पिया और पिने के बाद उनका गला नीला हो चूका था। इसीलिए उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। इसीलिए कलिंजर में भगवान शिव के मंदिर को नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। तभी से उस पर्वत को एक पवित्र जगह कहा जाता है।
नीलकंठ मंदिर के ऊपर ही पहाड़ के अंदर एक और कुंड है, जिससे स्वर्गा कहा जाता है। इसे भी धर्म से जोड़ा जाता है. पहाड़ों पर सीना ताने खड़े इस कालिंजर के किले में कहीं रहस्य है, तो कही घुंघरुओं का खौफ़, कहीं तिलिस्मी चमत्कार है, तो कहीं अंधेरी गुफाओं का रोमांच। यह ही वजह है कि कला औऱ शिल्प की अदभुत मिसाल अभी तक बाइज़्ज़त कायम हैं।
इस किले के अंदर सुंदर पत्थरों से खोदे गए तालाब और शांत झीलें हैं। किले के अंदर भगवान शिव, भगवान गणेश, भगवान विष्णु और देवी शक्ति की दुर्लभ मूर्तियाँ मौजूद हैं। कभी किसी महल जैसा रहा शानदार किला आज खंडहर में तब्दील हो गया है। यह किला बांदा में ज़मीन से 800 फुट ऊंची पहाड़ियों पर बना है। कहा जाता हैं की कालिंजर के किले में हीरे-जवाहरातों का एक बड़ा जखीरा मौजूद है। पहाडी़ पर मौजूद इस किले में चित्रकारी और पत्थरों पर हुई नक्काशी देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस किले में काफी धन दौलत रही होगी।
कालिंजर किला का इतिहास – Kalinjar Fort History in Hindi
हजारों साल पुराने इस किले का इतिहास कुछ ऐसा है कि लोग फिर भी इन वीरान खंड्हरों की ओर खिंचे चले आते हैं। कलिंजर शहर की स्थापना 7 वी शताब्दी में केदार राजा ने की थी। लेकिन चंदेला शासको के समय में इस किले को पहचान मिली। किंवदंतियों के अनुसार, इस किले का निर्माण चंदेला शासको ने करवाया था। चंदेला को कलंजराधिपति की उपाधि भी दी गयी थी, जो किले से जुड़े हुए उनके महत्त्व को दर्शाती है।
कालिंजर के किला पर सातवीं शताब्दी से लेकर 15वी शताब्दी तक चंदेलों का शासन रहा। हालाँकि इस बिच इस किले में कई आक्रमण भी हुवे। इस किले को गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने इनसे जीतना चाहा, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।
महमूद ग़ज़नवी ने 1022 ई. के अंत में बुन्देलखण्ड के शासक गण्ड से कालिंजर लेने का प्रयास किया। कालिंजर के किले को घेर लिया गया परंतु सरलता से उस पर अधिकार न कर सका। घेरा दीर्घावधि तक चलता रहा। महमूद ग़ज़नवी को अंततः राजा से सन्धि करनी पड़ी। राजा ने हर्जाने के रूप में 300 हाथी देना स्वीकार किया।
1202-03 ई. कुतुबुद्दीन ऐबक ने चंदेल राजा पदमार्दिदेव को युद्ध में पराजित कर कालिंजर को जीत लिया। परंतु कालांतर में राजपूतों ने इस पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया। 1545 ई. में शेरशाह सूरी ने बुन्देलों से एक भारी संघर्ष के बाद इसे जीत लिया। परंतु घेरे के दौरान बारुद में पलीता लग जाने वह जख्मी हो गया और बाद में मर गया। इसके बाद इस क़िले पर राजपूतों ने अपना प्रभुत्व क़ायम कर लिया।
1569 ई. में इस पर अकबर का अधिकार हो गया। अकबर ने मजनू ख़ाँ को क़िले पर आक्रमण के लिए भेजा था। परंतु क़िले के मालिक राजा रामचन्द्र ने बिना विरोध के क़िला मुग़लों को सौंप दिया। इसके बाद यह मुग़ल साम्राज्य का अंग बन गया। 1812 में ब्रिटिश सेना ने बुंदेलखंड पर आक्रमण कर दिया। लंबे समय तक चले युद्ध में अंततः ब्रिटिशो ने किले को हासिल कर ही लिया। ब्रिटिशो ने जब कलिंजर पर कब्ज़ा कर लिया तब किले से सारे अधिकार नव-ब्रिटिश अधिकारियो को सौपी गयी, जिन्होंने किले को क्षतिग्रस्त कर दिया था।
इस चमत्कारी किले को इतिहास के हर युग में अलग अलग नाम से जाना गया, जिसका बाकायदा हिन्दू ग्रन्थों में जिक्र भी किया गया है। दरअसल कालिंजर का मतलब होता है काल को जर्जर करने वाला। रोमांच और चमत्कार से हटकर कालिंजर का पौराणिक महत्व शिव के विषपान से भी है। समुद्र मंथन में मिले कालकूट के पान के बाद शिव ने इसी कालिंजर में विश्राम करके काल की गति को मात दी थी, इसलिए इस जगह का नाम कालिंजर पड़ा।
एक रहस्मय किला, आज भी घुंघरू की आवाज आती हैं – Kalinjar Fort Story in Hindi
इस किले में एक दो नहीं बल्कि कई तरह की गुफाए बनी हुई हैं, जिनका इस्तेमाल उस काल में सीमाओं की हिफाजत के लिए होता था। कहा जाता हैं किले के पश्चमी छोर पर ही एक और रहस्मयी गुफा हैं। इस गुफा में घना अंधेरा में अंदर अजीब तरह की आवाजें आती हैं।
कालिंजर के रहस्मयी किले में सात दरवाजे है। इन सात दरवाजों में एक दरवाजा ऐसा है, जो सिर्फ रात के सन्नाटे में खुलता है और यहां से निकला एक रास्ता रानीमहल ले जाता है जहां रात की खामोशी को घुंघरुओं की आवाज़ें तोड़ देती हैं और इन्ही घुंघरुओं की आवाज़ सुनने के लिए अब हमें शाम ढलने का का इंतज़ार करना था।
दरअसल कालिंजर किले में मौजूद रानी महल है। एक दौर था जब इस महल में हर रात महफिलें सजा करती थीं। कहने वाले कहते हैं कि आज 1500 साल बाद भी शाम ढलते ही एक नर्तकी के कदम यहां उसी तरह थिरकने लगते हैं। बस फर्क यह है कि अब इन घुंघरुओं की आवाज दिल बहलाती नहीं बल्कि दिल दहला जाती है।
घुंघरू की आवाज उस नर्तकी की है जिसका नाम पद्मावती था। गज़ब की खूबसूरत इस नर्तकी की जो भी एक झलक देख लेता वही उसका दीवाना बन बैठता। कहते हैं जब उसके घुंघरू से संगीत बहता तो चंदेल राजा उसमें बंधकर रह जाते. पद्मावती भगवान शिव की भक्त थी। लिहाजा खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन वो पूरी रात दिल खोल कर नाचती थी।
कैसे जाएँ – Kalinjar Fort, Bundelkhand Uttar Pradesh
Kalinjar ka Kila – यह किला खजुराहो के पास स्थित हैं, खजुराहो अनेक बड़े और छोटे शहरों जैसे महोबा, जबलपुर, भोपाल, झांसी, इंदौर, ग्वालियर आदि से बससेवा से जुड़ा है। खजुराहो से इस जगहों के लिए प्राइवेट ओर राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध होती हैं। आप खजुराहो से साधारण, एसी, नॉन एसी, डीलक्स और सुपर डीलक्स बसें ले सकते हैं।
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