इज़रायल की जानकारी, इतिहास | Israel Information in Hindi

Israel / इज़रायल पश्चिम एशिया का एक देश है जिसका गठन 1948 में हुआ था। यह दक्षिणपूर्व भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसके उत्तर में लेबनॉन, पूर्व में सीरिया और जॉर्डन तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र है। यरूशलम इसरायल की राजधानी है। यहाँ की राजभाषा इब्रानी है। इसराइल के दक्षिण में रेगिस्तान है, उत्तर में निम्न भाग है और जहां जल के स्रोत है। पूर्व में अत्यंत गहरा मृत सागर है। मध्यपूर्व में स्थित यह देश विश्व राजनीति और इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इतिहास और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यहूदियों का मूल निवास रहे इस क्षेत्र का नाम ईसाइयत, इस्लाम और यहूदी धर्मों में प्रमुखता से लिया जाता है। यह देश दुनिया के सबसे खतरनाक और ताकवर देशो में एक हैं।

इज़रायल की जानकारी, इतिहास | Israel Information in Hindi
Flag of Israel

इज़रायल की जानकारी – Israel Information in Hindi

इज़रायल दक्षिण पश्चिम एशिया का एक स्वतंत्र यहूदी राज्य है, जो 14 मई 1948 ई. को पैलेस्टाइन से ब्रिटिश सत्ता के समाप्त होने पर बना। यह राज्य रूम सागर के पूर्वी तट पर स्थित है। इसराइल की जनसँख्या लगभग 90 लाख हैं। यहाँ की प्रमुख भाषा इब्रानी (हिब्रू) है, जो दाहिने से बाँए लिखी जाती है। इसराइल का क्षेत्रफल 20,700 वर्ग किलोमीटर हैं।

इसरायल शब्द का प्रयोग बाईबल और उससे पहले से होता रहा है। बाईबल के अनुसार ईश्वर के फ़रिश्ते के साथ युद्ध लड़ने के बाद जैकब का नाम इसरायल रखा गया था। इस शब्द का प्रयोग उसी समय (या पहले) से यहूदियों की भूमि के लिए किया जाता रहा है।

प्राकृतिक साधनों के अभाव में इज़रायल की आर्थिक स्थिति विशेषत: कृषि तथा विशिष्ट एवं छोटे उद्योगों पर आश्रित है। सिंचाई के द्वारा सूखे क्षेत्रों को कृषियोग्य बनाया गया है। अत: कृषि का क्षेत्रफल, सन्‌ 1969-70 में 10,58,000 एकड़ था।

इसराइल के उत्तर दिशा में माऊंट मेरोन है। इजरायल का प्रमुख उद्योगकेंद्र तेल अवीव है यहां कपड़ा, औषधि, पेय तथा प्लास्टिक उद्योगों का विकास हुआ है। हैफा क्षेत्र में सीमेंट, मिट्टी का तेल, मशीन, रसायन, कांच एवं बिजली उपकरणों के कारखाने हैं। नथन्या जिले में हीरा तराशने का काम होता है। जेरूसलम हस्तशिल्प एवं मुद्रण उद्योग के लिए विख्यात है। हैफा तथा तेल अवीव रूम सागरतट के पत्तन हैं। इलाथ अकाबा की खाड़ी का पत्तन है। यहां के मुख्य निर्यात हैं सूखे एवं ताजे फल, हीरा, मोटरगाड़ी, कपड़ा, टायर ट्यूब हैं।

इज़रायल के दक्षिणी भाग में नेजेव नामक मरुस्थल है जिसके उत्तरी भाग में सिंचाई द्वारा कृषि का विकास किया जा रहा है। यहाँ जौ, सोरघम, गेहूँ, सूर्यमुखी, सब्जियाँ एवं फल होते हैं। सन्‌ 1955 ई. में नेजेव के हेलेट्ज़ नामक स्थान पर इज़रायल में सर्वप्रथम खनिज तेल पाया गया। इस राज्य के अन्य खनिज पोटाश, नमक इत्यादि हैं।

इज़रायल में जनतंत्री शासन है। वहाँ एकसंसदीय पार्लामेंट है जिसे “सेनेट” कहते हैं। इसमें 120 सदस्य सानुपातिक प्रतिनिधान की चुनाव प्रणाली द्वारा प्रति चार वर्षों के लिए चुने जाते हैं।

इज़राइल का इतिहास – Israel History in Hindi

इसराइल का इतिहास बहुत ही प्राचीन हैं। यहूदियों के धर्मग्रंथ “पुराना अहदनामा” के अनुसार यहूदी जाति का निकास पैगंबर हज़रत अबराहम (इस्लाम में इब्राहिम, ईसाइयत में Abraham) से शुरू होता है। अबराहम का समय ईसा से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व है। अबराहम के एक बेटे का नाम इसहाक और पोते का याकूब (ईसाईयत में Jacob) था। याकूब का ही दूसरा नाम इज़रायल था। याकूब ने यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक किया। इन सब जातियों का यह सम्मिलित राष्ट्र इज़रायल के नाम के कारण “इज़रायल” कहलाने लगा। आगे चलकर इबरानी भाषा में इज़रायल का अर्थ हो गया-“ऐसा राष्ट्र जो ईश्वर का प्यारा हो”।

ईसाई धर्म, इस्लाम तथा यहूदी धर्म को संयुक्त रूप से इब्राहिमी धर्म भी कहते हैं क्योंकि इब्राहम तीनों धर्म के मूल में हैं। यहूदी जाति के आदि संस्थापक अबराहम को अपने स्वतंत्र विचारों के कारण दर-दर की खाक छाननी पड़ी। अपने जन्मस्थान ऊर (सुमेर का प्राचीन नगर) से सैकड़ों मील दूर निर्वासन में ही उनकी मृत्यु हुर्ह। अबराहम के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम मूसा का है। मूसा ही यहूदी जाति के मुख्य व्यवस्थाकार या स्मृतिकार माने जाते हैं। मूसा के उपदेशों में दो बातें मुख्य हैं : एक-अन्य देवी देवताओं की पूजा को छोड़कर एक निराकार ईश्वर की उपासना और दूसरी- सदाचार के दस नियमों का पालन। मूसा ने अनेकों कष्ट सहकर ईश्वर के आज्ञानुसार जगह-जगह बँटी हुई अत्याचारपीड़ित यहूदी जाति को मिलकार एक किया और उन्हें फ़िलिस्तीन में लाकर बसाया। यह समय ईसा से प्राय: 1,500 वर्ष पूर्व का था।

अबराहम और मूसा के बाद इज़रायल में जो दो नाम सबसे अधिक आदरणीय माने जाते हैं वे दाऊद (ईसाइयत में David) और उसके बेटे सुलेमान (ईसाइयत में Solomons) के हैं। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इज़रायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान उदार विचारों का था। सुलेमान के ही समय इबरानी यहूदियों की राष्ट्रभाषा बनी। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन् 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई। सुलेमान की मृत्यु से यहूदी एकता को बहुत बड़ा धक्का लगा। सुलेमान के मरते ही इज़रायली और जूदा (यहूदा) दोनों फिर अलग-अलग स्वाधीन रियासतें बन गईं। सुलेमान की मृत्यु के बाद 50 वर्ष तक इज़रायल और जूदा के आपसी झगड़े चलते रहे। इसके बाद लगभग 884 ई.पू. में उमरी नामक एक राजा इज़रायल की गद्दी पर बैठा। उसने फिर दोनों शाखों में प्रेमसंबंध स्थापित किया। किंतु उमरी की मृत्यु के बाद यहूदियों की ये दोनों शाखें सर्वनाशी युद्ध में उलझ गईं।

सन् 550 ई.पू. में ईरान सुप्रसिद्ध हख़ामनी राजवंश का समय आया। इस कुल के सम्राट् कुरुश ने जब बाबुल की खल्दी सत्ता पर विजय प्राप्त की तब इज़रायल और यहूदी राज्य भी ईरानी सत्ता के अंतर्गत आ गए। लेकिन सन् 330 ई.पू. में सिकंदर ने ईरान को जीतकर वहाँ के हख़ामनी साम्राज्य का अंत कर दिया। यहूदियों की राजनीतिक स्वाधीनता का अंत उस समय हुआ जब सन् 66 ई.पू. में रोम के जनरल पांपे ने तीन महीने के घेरे के पश्चात् जेरूसलम के साथ-साथ सारे देश पर अधिकार कर लिया। इतिहासलेखकों के अनुसार हजारों यहूदी लड़ाई में मारे गए और 12,000 यहूदी कत्ल कर दिए गए।

छठी ई. तक इज़रायल पर रोम और उसके पश्चात् पूर्वी रोमी साम्राज्य बीज़ोंतीन का प्रभुत्व कायम रहा। खलीफ़ा अबूबक्र और खलीफ़ा उमर के समय अरब और रोमी (Bizantine) सेनाओं में टक्कर हुई। सन् 636 ई. में खलीफ़ा उमर की सेनाओं ने रोम की सेनाओं को पूरी तरह पराजित करके फ़िलिस्तीन पर, जिसमें इज़रायल और यहूदा शामिल थे, अपना कब्जा कर लिया। खलीफ़ा उमर जब यहूदी पैगंबर दाऊद के प्रार्थनास्थल पर बने यहूदियों के प्राचीन मंदिर में गए तब उस स्थान को उन्होंने कूड़ा कर्कट और गंदगी से भरा हुआ पाया। उमर और उनके साथियों ने स्वयं अपने हाथों से उस स्थान को साफ किया और उसे यहूदियों के सपुर्द कर दिया।

इज़रायल और उसकी राजधानी जेरूसलम पर अरबों की सत्ता सन् 1099 ई. तक रही। सन् 1099 ई. में जेरूसलम पर ईसाई धर्म के जाँनिसारों ने अपना कब्जा कर लिया और बोलोन के गाडफ्रे को जेरूसलम का राजा बना दिया। येरुसलम राज्य की स्थापना हुई जो रोमन कैथोलिक राज्य था। ईसाइयों के इस धर्मयुद्ध में 5,60,000 सैनिक काम आए। इस युद्ध में मुसलमानों एवं यहूदियों दोनों की निर्मम हत्या की गयी या उन्हें दास के रूप में बेच दिया गया। किंतु 88 वर्षों के शासन के बाद यह सत्ता समाप्त हो गई।

इसके पश्चात् सन् 1147 ई. से लेकर सन् 1204 तक ईसाइयों ने धर्मयुद्धों (क्रूसेडों) द्वारा इज़रायल पर कब्जा करना चाहा किंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। सन् 1212 ई. में ईसाई महंतों ने 50 हजार किशोरवयस्क बालक और बालिकाओं की एक सेना तैयार करके पाँचवें धर्मयुद्ध की घोषणा की। इनमें से अधिकांश बच्चे भूमध्यसागर में डूबकर समाप्त हो गए। इसके बाद इस पवित्र भूमि पर आधिपत्य करने के लिए ईसाइयों ने चार असफल धर्मयुद्ध और किए।

13वीं और 14वीं शताब्दी में हुलाकू और उसके बाद तैमूर लंग ने जेरूसलम पर आक्रमण करके उसे नेस्तनाबूद कर दिया। इसके पश्चात् 19वीं शताब्दी तक इज़रायल पर कभी मिस्री आधिपत्य रहा और कभी तुर्क। सन् 1914 में जिस समय पहला विश्वयुद्ध हुआ, इज़रायल तुर्की के कब्जे में था।

सन् 1917 में ब्रिटिश सेनाओं ने इस पर अधिकार कर लिया। 2 नवम्बर सन् 1917 को ब्रिटिश विदेश मंत्री बालफ़ोर ने यह घोषणा की कि इज़रायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है जिसमें सारे संसार के यहूदी यहाँ आकर बस सकें। मित्रराष्ट्रों ने इस घोषण की पुष्टि की। इस घोषणा के बाद से इज़रायल में यहूदियों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती गई। लगभग 21 वर्ष (दूसरे विश्वयुद्ध) के पश्चात् मित्रराष्ट्रों ने 14 मई सन् 1948 में एक इज़रायल नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत् स्थापना की।

5 जुलाई सन 1950 को इज़रायल की पार्लामेंट ने एक नया कानून बनाया जिसके अनुसार संसार के किसी कोने से यहूदियों को इज़रायल में आकर बसने की स्वतंत्रता मिली। यह कानून बन जाने के सात वर्षों के अंदर इज़रायल में सात लाख यहूदी बाहर के देशों से आकर बसे।

धीरे- धीरे इसराइल विकास की और बढ़ा और खुद को मजबूत किया। आज इसराइल की गिनती दुनिया के विकसित देशो में की जाती हैं। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण यह विश्वभर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में सफल रहा है। यहां की जनसँख्या लगभग 90 लाख के करीब हैं। जिसमे 76% यहूदी, 19% अरब, 5% अन्य अल्पसंख्यक समूह शामिल हैं।

इज़रायल में युद्ध 

इज़रायल के बनते ही यहूदियों और अरबों ने एक-दूसरे पर हमले शुरू कर दिए। जनवरी 1964 में अरब देशों ने फ़लस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन, पीएलओ नामक संगठन की स्थापना की। इसराइल और इसके पड़ोसियों के बीच बढ़ते तनाव का अंत युद्ध के रूप में हुआ. यह युद्ध 5 जून से 11 जून 1967 तक चला और इस दौरान मध्य पूर्व संघर्ष का स्वरूप बदल गया। इस युद्ध के कारण पाँच लाख और फ़लस्तीनी बेघरबार हो गए।

जब कूटनीतिक तरीकों से मिस्र और सीरिया को अपनी ज़मीन वापस नहीं मिली तो 1973 में उन्होंने इसराइल पर चढ़ाई कर दी। अमरीका, सोवियत संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ ने संघर्ष को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युद्ध के बाद इसराइल अमरीका पर और अधिक आश्रित हो गया. इधर सऊदी अरब ने इसराइल को समर्थन देने वाले देशों को पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जो मार्च 1974 तक जारी रहा। मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात 19 नवंबर 1977 को यरुशलम पहुँचे। सादात इसराइल को मान्यता देने वाले पहले अरब नेता बने।


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