हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह का इतिहास Hazrat Nizamuddin Dargah History in Hindi

भारत देश एक पूण्यभूमि हैं, यहाँ ऐसे कई तीर्थ स्थान है जहा हर धर्म के लोग आस्था के साथ जाते है ऐसा ही एक तीर्थ स्थान है हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह (Hazrat Nizamuddin Dargah)। दक्षिण दिल्ली में स्थित Hazrat Nizamuddin Aulia का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है। इस पवित्र दरगाह में दुनिया भर से सभी धर्मो के लोग अपनी-अपनी मन्नते मांगने आते हैं और कहा जाता है यहां से आज तक कोई भी खाली हाथ नहीं लौटा हैं।

दिल्ली हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह का इतिहास Hazrat Nizamuddin Dargah History In Hindiहज़रत निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती सम्प्रदाय के चौथे संत थे। इस सूफ़ी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की। कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुग़ल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हज़रत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा।

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की जीवनी – Hazrat Nizamuddin Biography in Hindi

हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में उत्तर प्रदेश के बदायूँ ज़िले में हुआ था। ये पाँच वर्ष की उम्र में अपने पिता, अहमद बदायनी, की मॄत्यु के बाद अपनी माता, बीबी ज़ुलेखा के साथ दिल्ली में आए। इनकी जीवनी का उल्लेख आइन-इ-अकबरी, एक 16वीं शताब्दी के लिखित प्रमाण में अंकित है, जो कि मुग़ल सम्राट अकबर के एक नवरत्नों ने लिखा था। 1258 में जब निज़ामुद्दीन 20 वर्ष के थे, वह अजोधर (जिसे वर्तमान में पाकपट्ट्न शरीफ, जो कि पाकिस्तान में स्थित है) पहुँचे और सूफ़ी संत फ़रीद्दुद्दीन गंज-इ-शक्कर के शिष्य बन गये, जिन्हें सामान्यतः बाबा फरीद के नाम से जाना जाता था।

Nizamuddin ने अजोधन को अपना निवास स्थान तो नहीं बनाया पर वहाँ पर अपनी आध्यात्मिक पढ़ाई जारी रखी, साथ ही साथ उन्होंने दिल्ली में सूफ़ी अभ्यास जारी रखा। वह हर वर्ष रमज़ान के महीने में बाबा फरीद के साथ अजोधन में अपना समय बिताते थे। इनके अजोधन के तीसरे दौरे में बाबा फरीद ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, वहाँ से वापसी के साथ ही उन्हें बाबा फरीद के देहान्त की खबर मिली। इनके बहुत से शिष्यों को आध्यात्मिक ऊँचाई की प्राप्त हुई, जिनमें ’शेख नसीरुद्दीन मोहम्मद चिराग-ए-दिल्ली”, “अमीर खुसरो”,जो कि विख्यात विद्या ख्याल/संगीतकार और दिल्ली सल्तनत के शाही कवि के नाम से प्रसिद्ध थे।

ख़्वाजा औलिया बाद में दिल्ली आए और ग़्यासपुर में रहने लगे। वहां उन्होंने अपनी ख़ानक़ाह बनाई। इसी बस्ती को आजकल निज़ामुद्दीन कहा जाता है। वहीं से लगभग साठ साल तक उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गतिविधियां ज़ारी रखी। उनकी ख़नक़ाह में सभी वर्ग के लोगों की भीड़ लगी रहती थी। उनकी अपनी बनाई हुई मस्जिद के आंगन में उनका भव्य मज़ार है। दक्षिण दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मक़बरा सूफ़ियों के लिए ही नहीं अन्य मतावलंबियों के लिए भी एक पवित्र दरग़ाह है। इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार प्रति वर्ष चौथे महीने की 17वीं तारीख़ को उनकी याद में उनकी दरगाह पर एक मेला लगता है जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों भाग लेते हैं। हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु 3 अप्रैल, 1325 को हुई थी।

संत होने के साथ साथ निज़ामुद्दीन उच्चकोटि के कवि भी थे। उनके लिखे होली और फाग आम लोगों में आज भी लोकप्रिय हैं। अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर तथा उत्तर भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा ख़याल के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हज़रत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उर्स (मेले) आयोजित किए जाते हैं।

उन्होंने अपने जीवनकाल में दिल्ली में सात बादशाहों को गद्दी पर बैठते-उतरते देखा। कुछ बाढ़साहो के लिए तो वो बहुत प्रिय थे। कुछ सुल्तानों को वो कभी पसंद नहीं आए। कई बादशाहों को उनकी लोकप्रियता अच्छी नहीं लगाती थी। अमीर खुसरो उनके प्रिय शिष्य थे।

हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह – Hazrat Nizamuddin Dargah Information in Hindi

दरगाह में संगमरमर पत्थर से बना एक छोटा वर्गाकार कक्ष है, इसके संगमरमरी गुंबद पर काले रंग की लकीरें हैं। मकबरा चारों ओर से मदर ऑफ पर्ल केनॉपी और मेहराबों से घिरा है, जो झिलमिलाती चादरों से ढकी रहती हैं। यह इस्लामिक वास्तुकला का एक शुद्ध उदाहरण है। दरगाह में प्रवेश करते समय सिर और कंधे ढके रखना अनिवार्य है। धार्मिक गीत और संगीत इबादत की सूफी परंपरा का अटूट हिस्सा हैं।

Dargah में जाने के लिए सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच का समय सर्वश्रेष्ठ है, विशेषकर वीरवार को, मुस्लिम अवकाशों और त्यौहार के दिनों में यहां भीड़ रहती है। इन अवसरों पर कव्वाल अपने गायन से श्रद्धालुओं को धार्मिक उन्माद से भर देते हैं।

दरगाह के सभी जगह महिलाएं जा सकती हैं लेकिन वो औलिया की मजार पर जाने की इजाजत नहीं हैं। वहां केवल पुरुष जा सकते हैं, लिहाजा बाहर ही रुकना होता है। लेकिन इस मजार पर महिलाओं का प्रवेश क्यों नहीं होता, इसके कोई ठोस तर्क नहीं हैं। हां ये जरूर है कि औलिया जिंदगी भर अविवाहित थे।

अंदर मजार के इर्द-गिर्द लोग कतार बांधे, अदब से झुकते हैं, मत्था टेकते हैं और इबादत करते हैं। मजार गुलाब और चादरों से ढकी होती है। यहां पिछले करीब 800 सालों से इसी तरह इबादत हो रहा है।

कैसे पहुंचे – How to reach Hazrat Nizamuddin Dargah

निज़ामुद्दीन दरगाह भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित हैं, इस लिए यहां आप किसी भी मार्ग से पहुँच सकते हैं। यह दरगाह निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक मथुरा रोड से थोड़ी दूरी पर स्थित है। दरगाह की ओर जाने वाली पतली सी सड़क आमतौर पर गंदगी और अतिक्रमण का शिकार है। यहां दुकानों पर फूल, लोहबान, टोपियां आदि मिल जाती हैं।


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1 thought on “हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह का इतिहास Hazrat Nizamuddin Dargah History in Hindi”

  1. shahnawaz hussain

    बहोत ही अच्छे और प्यारे ढंग से आपने बताया। शुक्रिया

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