बकरीद ‘ईद-उल-ज़ुहा’ पर निबंध | Essay on Bakrid ‘Id-ul-Zuha’ in Hindi

दोस्तों आज हम जानेंगे Bakrid Essay in Hindi, Essay on Bakrid, Id-ul-Zuha par Nibandh, Eid al adha Essay, Bakrid ke Bare me Nibandh बकरीद का इतिहास और बकरीद पर निबंध.

बकरीद (ईद-उल-ज़ुहा) पर निबंध | Essay on Bakrid (Id-ul-Zuha) in Hindiबकरीद (ईद-उल-ज़ुहा) पर निबंध – Essay on Bakrid (Id-ul-Zuha) in Hindi

‘बकरीद’ इस्लाम धर्म के लोगो का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। इसे ‘ईद-उल-ज़ुहा’ अथवा ‘ईद-उल-अज़हा’ के नाम से भी जानते हैं। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। यह एक क़ुरबानी का त्यौहार है।

मान्यता है कि पैगंबर हज़रत इब्राहीम को ईश्वर की ओर सपने में हुक्म आया कि वह अपनी सबसे अधिक प्यारी वस्तु की कुर्बानी दे। हज़रत के लिए उनका बेटा सबसे अधिक प्यारा था। ईश्वर का हुक्म उनके लिए पत्थर की लकीर था। वह उसे मानने के लिए तैयार थे। इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माईल को इस बारे में बताया तो उन्होंने भी ख़ुदा की बन्दग़ी के सामने सर झुकाते हुए पिता इब्राहीम को इस पर सहमति दे दी। इब्राहीम ने इस्माईल के होशियार होने के बाद उन्हें राहे ख़ुदा में क़ुर्बान करने के लिए उनके गले पर छुरी फेर दी। लेकिन अल्लाह को इब्राहीम के बन्दग़ी की यह अदा इतनी पंसद आई कि इस्माईल को उस जगह से हटाकर स्वर्ग से एक दुम्बा (भेड़) को उसके स्थान पर भेज दिया गया और इस्माईल को बचा लिया गया। पिता और बेटे की भक्ति देखकर ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होंने हज़रत के बेटे को जीवनदान दिया। तबसे लेकर आज तक इसे मनाया जाता है।

क़ुर्बानी का महत्त्व यह है कि इन्सान ईश्वर या अल्लाह से असीम लगाव व प्रेम का इज़हार करे और उसके प्रेम को दुनिया की वस्तु या इन्सान से ऊपर रखे।

बकरीद की तैयारी त्यौहार के कई दिनों पहले से आरम्भ हो जाती है। ईद-उल-फ़ितर की तरह ही इस दिन भी मुसलमान ईदग़ाह जाकर ईद की नमाज़ अदा करते हैं और सब लोगों से गले मिलते हैं। इस त्यौहार में बकरे की बलि देने का विधान है। अतः बकरे खरीदे जाते हैं। बकरे की कुर्बानी के बाद उसके गोश्त को तीन भागों में विभक्त किया जाता है। इसका एक भाग परिवार के लिए, दूसरा भाग संबंधियों के लिए तथा तीसरा भाग गरीबों में बाँटा जाता है। इससे समाज में एकता व भाईचारे का प्रचार-प्रसार होता है और वह समाज प्रगति करता है। यह त्यौहार दुनिया भर में मुसलमानों के बीच काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है।

Bakrid Essay in Hindi – Eid al adha Eassay – Bakrid Essay in Hindi

Bakrid par Nibandh
बकरीद पर निबंध – Bakrid par Nibandh

बकरीद या ईद-उल-अज़हा पूरी दुनिया में मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। इस त्योहार को हर साल एक बार ईद-उल-अज़हा या बकरीद के रूप में मनाया जाता हैं। इस उत्सव के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों के परिवार और दोस्तों के साथ एक खुशी की माहौल बनता है जहां वे एक-दूसरे के साथ एकता और प्रेम की भावना साझा करते हैं।

बकरीद के अवसर पर, मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह के नाम पर अपनी बकरियों, दुम्बा को क़ुरबान करते हैं। यह एक दिन है जब लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर भोजन करते हैं और एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं। इस दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को दान भी दिया जाता है।

यह एक बलिदान का त्यौहार है। इस्लाम में मान्यताओं के मुताबिक, हजरत इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर थे। एक बार अल्लाह उनके सपने में आए तो उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने की मांग की। हजरत इब्राहिम की नजर में उनकी सबसे प्यारी चीज उनका बेटा इस्माइल था। कहा जाता है कि उनके बेटे का जन्म तब हुआ था जब इब्राहिम 80 साल के थे। इसलिए भी उन्हें अपने बेटे से विशेष लगाव था।

तब हज़रत इब्राहीम ने कुछ देर सोच कर निर्णय लिया और अपने अज़ीज़ को कुर्बान करने का तय किया। फैसला करने के बाद हजरत इब्राहिम बेटे की कुर्बानी देने के लिए निकल पड़े। इस दौरान उन्हें एक शैतान मिला और उसने उन्हें बहकाने की कोशिश की। शैतान ने कहा, अपने बेटे की कुर्बानी कौन देता है भला, इस तरह तो जानवर कुर्बान किए जाते हैं।

लेकिन हजरत शाहब ने शैतान की एक न सुनी। जब कुर्बानी की बारी आई तो हजरत इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली क्योंकि वो अपने आंखों से बच्चे को कुर्बान होते हुए नहीं देख सकते थे। कुर्बानी दी गई, फिर उन्होंने आंखों से पट्टी हटाई तो देखकर दंग रह गए। उन्होंने देखा की उनके बेटे के शरीर पर खरोंच तक नहीं आई है। बेटे की जगह बकरा कुर्बान हो गया है। इस घटना के बाद से ही जानवरों को कुर्बान करने की परंपरा शुरू हुई।

बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए। ईद-उल-अजहा को कई नामों से जाना जाता है। ईदे-अजहा को नमकीन ईद भी कहा जाता है और इसी ईद को ईदे करबां भी कहा जाता है। बकरीद का माहौल सभी स्थानों पर आनंद भरा और काफी खुशहाल प्रतीत होता है। इस त्योहार में सभी लोग एक दूसरे के पिछले सभी दोष भुलाकर गले लगाते है।

FAQ

ईद उल जुहा क्यों मनाया जाता है?

यह एक बलिदान का त्यौहार हैं, अल्लाह से मोहब्बत को दर्शाता हैं।

बकरा ईद का मतलब क्या है?

ईद अल-अज़हा या क़ुरबानी की ईद (अरबी में عید الاضحیٰ; ईद-उल-अज़हा अथवा ईद-उल-अद्’हा – जिसका मतलब क़ुरबानी की ईद) इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है।

बकरीद 2023 में कब है?

28 जून

बकरीद में बकरी क्यों काटते हैं?

बकरीद के अवसर पर, मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह के नाम पर अपनी बकरियों, दुम्बा को क़ुरबान करते हैं।


और अधिक लेख –

1 thought on “बकरीद ‘ईद-उल-ज़ुहा’ पर निबंध | Essay on Bakrid ‘Id-ul-Zuha’ in Hindi”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *