बैजनाथ शिव मंदिर काँगड़ा का इतिहास | Baijnath Shiv Mandir in Hindi

Baijnath Shiv Temple Himachal Pradesh / बैजनाथ शिव मंदिर, हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में पालमपुर नमक स्थान पर स्थित हैं। यह एक प्राचीन शिव मंदिर हैं। यहां हर वर्ष आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस मंदिर का निर्माण 1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों ‘अहुक’ और ‘मन्युक’ द्वारा किया गया था।

बैजनाथ शिव मंदिर काँगड़ा का इतिहास | Baijnath Shiv Mandir in Hindi

बैजनाथ शिव मंदिर कि जानकारी – Baijnath Shiv Mandir Information in Hindi

बैजनाथ शिव मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर पठानकोट-मंडी राजमार्ग पर आता हैं। बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर वर्ष भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।

तैरहवीं शताब्दी में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात् ‘वैद्य+नाथ’, जिसका अर्थ है- ‘चिकित्सा अथवा ओषधियों का स्वामी’, को ‘वैद्य+नाथ’ भी कहा जाता है। इस स्थान का पौराणिक नाम कीरग्राम था परन्तु मंदिर के बढ़ते आकर्षण के कारण इसका नाम मंदिर के नाम पर बैजनाथ रखा गया। मंदिर के बगल से एक नदी बहती है जो ब्यास नदी का सहायक नदी है।

बैजनाथ शिव मंदिर की कथा – Baijnath Shiv Mandir Story in Hindi

रावण त्रेता युग में बहुत ही पराक्रमी राजा था तीनों लोकों पर अपना राज कायम करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहा था। भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए उसने अपने दस सिर हवन में काटकर चढ़ा दिए थे। बाद में भगवान भोलेनाथ रावण की तपस्या से खुश हुए और उसके सिर उसे दोबारा दे दिए। उन्होंने रावण से वरदान मांगने को कहा, इसके बाद भोलेनाथ ने रावण को असीम शक्तियां भी दी जिससे वह परम शक्तिशाली बन गया था।

इन सबके आलावा रावण ने एक और इच्छा जताई। उसने कहा कि वह भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता है, आप दो भागों में अपना स्वरूप दें। ‌भगवान शिव ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की और शिवलिंग में परिवर्तित हो गए। मगर उन्होंने कहा कि वह जहां मंदिर बनवाएगा वहीं, इस शिवलिंग को जमीन पर रखे।

रावण भी कैलाश से लंका के लिए चल पड़ा। रास्ते में उसे लघुशंका जाना पड़ा। वह बैजनाथ में रुका और यहां भेड़ें चरा रहे गडरिए को देखा। उसने ये शिवलिंग गडरिए को समझा के दे दी और खुद लघुशंका करने चला गया। शिवजी की माया के कारण और शिवलिंग भारी था इसलिए गडरिए ने इसे थोड़ी देर के लिए जमीन पर रख दिया।

जब रावण थोड़ी देर में वापस लौटा तो उसने देखा कि गडरिए ने शिवलिंग जमीन पर रख दी है। वह उसे उठाने लगा लेकिन उठा नहीं पाया। काफी कोशिश करने के बाद भी शिवलिंग जस से तस नहीं हुआ। रावण शिव महिमा को जान गया और वहीं मंदिर का निर्माण करवा दिया।

इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है। इस मंदिर 22 कि.मी दूर ‘चामुंडा देवी मंदिर’ का मंदिर भी हैं।

बैजनाथ शिव मंदिर का निर्माण काल – Baijnath Shiv Mandir History in Hindi

मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता हैं कि द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास ने दौरान इस मंदिर का निर्माण हुवा था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य ‘आहुक’ एवं ‘मनुक’ नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान ‘शिवधाम’ के नाम से उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।

मन्युक व आहुक हुए जो व्यापारी थे। इन दोनों शिव भक्तों ने शिवलिंगों के लिए मण्डप और ऊंचा मंदिर बनवाया। यहां के राजा और दोनों भाइयों ने मंदिर के लिए भूमिदान किया और धन दिया। इस पुनर्निर्माण का समय शिलालेखों में वर्ष 804 दिया गया है। समय के साथ मुस्लिम शासको द्वारा मंदिर को क्षति भी पहुंची थी। लेकिन फिर से जीर्णोद्धार 1783-86 ई. में महाराजा संसार चंद द्वितीय ने करवाया था।

मंदिर कि स्थापत्य कला – Baijnath Shiv Temple

मंदिर की परिक्त्रमा के साथ किलेनुमा छह फुट चौडी चारदीवारी बनी हुई है जिसे मंदिर और बैजनाथ के ग्रामवासियों की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। समुद्रतल से लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के निर्माण को देखकर भक्तगण चकित रह जाते हैं।

अत्यंत आकर्षक सरंचना और निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के गर्भ-गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है, और उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक़्क़ाशी करके बनाये गये हैं।

धार्मिक आस्था का केंद्र

बैजनाथ का क्षेत्र भारत वर्ष में ही नहीं अपितु विश्व प्रसिद्धि प्राप्त हैं। यहां प्रार्थना हर दिन सुबह और शाम में की जाती है। इसके अलावा विशेष अवसरों और उत्सवों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। श्रावण मास में पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। श्रावण के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर हर वर्ष पांच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।

कैसे जाएँ – Baijnath Shiv Mandir Tour

बैजनाथ पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चण्डीगढ-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस या निजी वाहन व टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से पठानकोट और कांगडा जिले में गग्गल तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है। मंदिर भक्तो के लिए पुरे वर्ष खुले रहते है जिससे पर्यटक पुरे वर्ष यहाँ का लुफ्त उठा सकते है।


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