Ater Fort in Hindi / अटेर का क़िला, मध्य प्रदेश में स्थित एक ऐतिहासिक किला हैं। यह किला चंबल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है जो अपनी महिमा के साथ – साथ अपनी भव्यता के लिए विख्यात रहा है। इस किले को भदौरिया राजा बदनसिंह ने 1664 से 1668 ई. के बीच बनवाया था। पौराणिक कथाएं के अनुसार शौर्य के प्रतीक लाल दरवाजे से ऐतिहासिक काल में खून टपकता था, इस खून से तिलक करने के बाद ही गुप्तचर राजा से मिल पाते थे।
अटेर किला की जानकारी – Ater Fort Information in Hindi
अटेर का किला सैकड़ों किवदंती, कई सौ किस्सों और न जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए चुपचाप सा खड़ा दिखाई देता है। जैसे मानो अभी उसके गर्त में और भी रहस्य हों। महाभारत में जिस देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख आता है यह किला उसी पहाड़ी पर स्तिथ है। इसका मूल नाम ‘देवगिरि दुर्ग’ है। हिन्दू और मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है
गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित यह क़िला भिंड ज़िले से 35 कि.मी. पश्चिम में स्थित है। यह दुर्ग भदावर राजाओं के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है। बताते हैं कि शौर्य के प्रतीक लाल दरवाजे से ऐतिहासिक काल में खून टपकता था, इस खून से तिलक करने के बाद ही गुप्तचर राजा से मिलने जाते थे।
आज भी इस दरवाजे को लेकर किवदंतिया जिले भर में प्रचलित है। खूनी दरवाजे का रंग भी लाल है। इसके ठीक ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता था। पर्यटकों के लिए ये सर्वाधिक आकर्षित करने वाला यही स्थान है।
‘खूनी दरवाज़ा’, ‘बदन सिंह का महल’, ‘हथियापोर’, ‘राजा का बंगला’, ‘रानी का बंगला’ और ‘बारह खंबा महल’ इस क़िले के मुख्य आकर्षण हैं।
किले का इतिहास – Ater Fort History in Hindi
Ater Kila – अटेर के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदनसिंह ने 1664 ईस्वी में शुरू करवाया था। भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले ‘बधवार’ कहा जाता था। अटेर का क़िला अब काफ़ी जर्जर स्थिति में पहुँच चुका है। यदि इस क़िले का पूर्ण रूप से जीर्णोद्धार हो जाए तो यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि अटेर से नजदीक ही आगरा पड़ता है। भदावर राजाओं के इतिहास में इस क़िले का बहुत महत्व है। यह हिन्दू और मुग़ल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
खूनी दरवाजे से हर वक्त टपकता था खून – Ater Fort Story in Hindi
किले में सबसे चर्चित है यहां का खूनी दरवाजा। आज भी इस दरवाजे को लेकर किवदंतिया जिले भर में प्रचलित है। खूनी दरवाजे का रंग भी लाल है। इस पर ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता था।
भदावर राजा लाल पत्थर से बने दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रख देते थे, दरवाजे के नीचे एक कटोरा रख दिया जाता था। इस बर्तन में खून की बूंदें टपकती रहती थी। गुप्तचर बर्तन में रखे खून से तिलक करके ही राजा से मिलने जाते थे, उसके बाद वह राजपाठ व दुश्मनों से जुड़ी अहम सूचनाएं राजा को देते थे। आम आदमी को किले के दरवाजे से बहने वाले खून के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी।
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