Kanishka Empire / कनिष्क प्रथम या कनिष्क महान, द्वितीय शताब्दी में कुशाण राजवंश का भारत का एक महान सम्राट था। कनिष्क भारतीय इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। वह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौषल हेतु प्रख्यात था।
सम्राट कनिष्क – Kanishka Empire History in Hindi
कनिष्क गुर्जर जाति में भी कनिष्क को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है जो उनके महान गुर्जर सम्राट मिहिरभोज के समकक्ष ही माना जाता है। मान्यता अनुसार गुर्जर जाति के कषाणा गोत्र से ही कुषाण वंश का उद्गम माना जाता है।
हालाँकि माना जाता हैं की यूची क़बीले से निकली यूची जाति ने भारत में कुषाण वंश की स्थापना की और भारत को कनिष्क जैसा महान् शासक दिया। विम कडफ़ाइसिस के बाद कुषाण साम्राज्य का अधिपति कौन बना, इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद था लेकिन राबाटक शिलालेख के मिलने के बाद कनिष्क का वंश वृक्ष स्पष्ट हो जाता है। वैसे तो सभी कुषाण राजाओं के तिथिक्रम का विषय विवादग्रस्त है, और अनेक इतिहासकार राजा कुजुल और विम तक को कनिष्क का पूर्ववर्ती न मानकर परवर्ती मानते थे, पर अब बहुसंख्यक इतिहासकारों का यही मत है, कि कनिष्क ने कुजुल और विम के बाद ही शासन किया, पहले नहीं। विम कडफ़ाइसिस के राज्य काल का अन्त लगभग 100 ई. के लगभग हुआ था, और कनिष्क 127 ई. के लगभग कुषाण राज्य का स्वामी बनने का अन्दाज़ा लगता है।
कनिष्क का इतिहास जानने के लिए ऐतिहासिक सामग्री की कमी नहीं है। उसके बहुत से सिक्के उपलब्ध हैं, और ऐसे अनेक उत्कीर्ण लेख भी मिले हैं, जिनका कनिष्क के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है। इसके अतिरिक्त बौद्ध अनुश्रुति में भी कनिष्क को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। बौद्ध धर्म में उसका स्थान अशोक से कुछ ही कम है। जिस प्रकार अशोक के संरक्षण में बौद्ध धर्म की बहुत उन्नति हुई, वैसे ही कनिष्क के समय में भी हुई।
कनिष्क को कुषाण वंश का तीसरा शासक माना जाता था किन्तु राबाटक शिलालेख के बाद यह चौथा शासक साबित होता है। संदेह नहीं कि कनिष्क कुषाण वंश का महानतम शासक था। कनिष्क की मुद्राओं में भारतीय हिन्दू, यूनानी, ईरानी और सुमेरियाई देवी देवताओं के अंकन मिले हैं, जिनसे उसकी धार्मिक सहिष्णुता का पता चलता है। उसके द्वारा शासन के आरम्भिक वर्षों में चलाये गए सिक्कों में यूनानी लिपि व भाषा का प्रयोग हुआ है तथा यूनानी दैवी चित्र अंकित मिले।
कुषाण साम्राज्य तरीम बेसिन में तुर्फन से लेकर गांगेय समतल में पाटलिपुत्र तक रहा था जिसमें मध्य एशिया के आधुनिक उजबेकिस्तान तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक आते हैं। इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारत के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपीश में भी थीं।