इस्लाम धर्म के शिया और सुन्नी में फर्क – Shia and Sunni in Hindi

इस्लाम धर्म के शिया और सुन्नी में क्या अंतर हैं Shia and Sunniशिया और सुन्नी में अंतर क्या हैं – Difference Between Shia and Sunni in Hindi

मुसलमान मुख्य रूप से दो समुदायों में बंटे हैं शिया-सुन्नी, ये विवाद इस्लाम के सबसे पुरानी और घातक लड़ाइयों में से एक है। इसकी शुरुआत इस्लामी पैग़म्बर मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद, सन 632 में, इस्लाम के उत्तराधिकारी पद की लड़ाई को लेकर हुई। कुछ लोगों का कहना था कि मुहम्मद साहब ने अपने चचेरे भाई और दामाद अली को इस्लाम का वारिस बनाया है (शिया) जबकि अन्य लोगों ने माना कि मुहम्मद साहब ने सिर्फ़ हज़रत अली का ध्यान रखने को कहा है और असली वारिस अबू बकर को होना चाहिए (सुन्नी)। जो लोग अली के उत्तराधिकार के समर्थक थे उन्हें शिया कहा गया जबकि अबू बकर के नेता बनाने के समर्थकों को सुन्नी कहा गया।

मुस्लिम आबादी में बहुसंख्य सुन्नी हैं और अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, इनकी संख्या 85 से 90 प्रतिशत के बीच है। दोनों समुदाय के लोग सदियों से एक साथ रहते आए हैं और उनके अधिकांश धार्मिक आस्थाएं और रीति रिवाज एक जैसे हैं। इनमें अंतर है तो सिद्धांत, परम्परा, क़ानून, धर्मशास्त्र और धार्मिक संगठन का। उनके नेताओं में भी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलती है।

सुन्नी मुसलमान कौन हैं? – Who is Sunni Muslim in Hindi

सुन्नी मुसलमान ख़ुद को इस्लाम की सबसे धर्मनिष्ठ और पारंपरिक शाखा से मानते हैं। सुन्नी शब्द ‘अहल अल-सुन्ना’ से बना है जिसका मतलब है परम्परा को मानने वाले लोग। इस मामले में परम्परा का संदर्भ ऐसी रिवाजों से है जो पैग़ंबर मोहम्मद और उनके क़रीबियों के व्यवहार या दृष्टांत पर आधारित हो।

सुन्नी उन सभी पैगंबरों को मानते हैं जिनका ज़िक्र क़ुरान में किया गया है लेकिन अंतिम पैग़ंबर मोहम्मद ही थे। इनके बाद हुए सभी मुस्लिम नेताओं को सांसारिक शख़्सियत के रूप में देखा जाता है। शियाओं की अपेक्षा, सुन्नी धार्मिक शिक्षक और नेता ऐतिहासिक रूप से सरकारी नियंत्रण में रहे हैं।

शिया मुसलमान कौन हैं? – Who is Shia Muslim in Hindi

शुरुआती इस्लामी इतिहास में शिया एक राजनीतिक समूह के रूप में थे- ‘शियत अली’ यानी अली की पार्टी। शियाओं का दावा है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार अली और उनके वंशजों का ही है। अली पैग़ंबर मोहम्मद के दामाद थे।

मुसलमानों का नेता या ख़लीफ़ा कौन होगा, इसे लेकर हुए एक संघर्ष में अली मारे गए थे। उनके बेटे हुसैन और हसन ने भी ख़लीफ़ा होने के लिए संघर्ष किया था। हुसैन की मौत युद्ध क्षेत्र में हुई, जबकि माना जाता है कि हसन को ज़हर दिया गया था। इन घटनाओं के कारण शियाओं में शहादत और मातम मनाने को इतना महत्व दिया जाता है।

शुरुआती सत्ता संघर्ष – Shia aur Sunni me Ladai

मुहम्मद साहब के नेतृत्व में पूरा अरबी प्रायद्वीप एक मत और साम्राज्य के अधीन पहली बार आया था। इतने बड़े साम्राज्य के अधिकारी बनने की होड़ से इस मतभेद का जन्म हुआ। हज़रत अली, जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद दोनों थे, ही हजरत मुहम्मद साहब के असली उत्तराधिकारी थे और उन्हें ही पहला ख़लीफ़ा बनना चाहिए था। यद्यपि ऐसा हुआ नहीं और उनको तीन और लोगों के बाद ख़लीफ़ा, यानि प्रधान नेता, बनाया गया। अली और उनके बाद उनके वंशजों को इस्लाम का प्रमुख बनना चाहिए था, ऐसा विशवास रखने वाले शिया हैं।

सुन्नी मुसलमान मानते हैं कि हज़रत अली सहित पहले चार खलीफ़ा (अबु बक़र, उमर, उस्मान तथा हज़रत अली) सतपथी (राशिदुन) थे जबकि शिया मुसलमानों का मानना है कि पहले तीन खलीफ़ा इस्लाम के गैर-वाजिब प्रधान थे और वे हज़रत अली से ही इमामों की गिनती आरंभ करते हैं और इस गिनती में ख़लीफ़ा शब्द का प्रयोग नहीं करते। सुन्नी अली को (चौथा) ख़लीफ़ा मानते है और उनके पुत्र हुसैन को मरवाने वाले ख़लीफ़ा याजिद को कई जगहों पर पथभ्रष्ट मुस्लिम कहते हैं। हाँलांकि ये सिर्फ उत्तराधिकार का मामला था और हजरत अली भी कई वर्षों के बाद ख़लीफ़ा बने पर इससे मुस्लिम समुदाय में विभेद आ गया जो सदियों तक चला। आज दुनिया में, सुन्नी बहुमत में हैं पर शिया विश्वास ईरान, इराक़ समेत कई देशों में प्रधान है।

मतभेद का कारण 

  • मोहर्रम – ‘मोहर्रम’ इमाम अली के बेटे हुसैन की शहादत का इस्लामी महीना है। हुसैन की शहादत को लेकर शिया मुस्लिम मातम करते हैं। हुसैन के साथ कर्बला में क्या हुआ। किस तरह उनके बच्चों, साथियों को मारा गया उसको याद करके रोते हैं और खुद को खंजर से मातम करके ज़ख़्मी करते हैं। साथ ही ताजिये बनाते हैं। जबकि सुन्नी का तर्क अलग हैं। शिया कहते हैं कि हुसैन को सुन्नी लोगों ने ही क़त्ल किया। जबकि सुन्नी कहते की शियाओं ने ही मारा और अब खुद ही रोते हैं। सुन्नी शियाओं के रोने को गलत बताते हैं। ताज़ियों को गलत बताते हैं। पर ऐसा भी नहीं कि सारे सुन्नी ऐसा मानते हैं। आपको सुन्नी मुसलमान मोहर्रम में शामिल होते मिल जाएंगे।
  • शिया और सुन्नी नमाज के बीच का अंतर – दोनों समुदाय पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ते है। लेकिन नमाज़ पढ़ने के तरीके ने दोनों का अलग हैं। सुन्नी पांच वक़्त की नमाज़ पांच अलग-अलग टाइम में पढ़ते हैं। लेकिन शिया सुबह की नमाज़ अलग पढ़ते हैं। दोपहर और तीसरा पहर की नमाज़ एक साथ दोपहर में एक बजे पढ़ते हैं। शाम और रात की नमाज़ एक साथ शाम में पढ़ते हैं। इस तरीके को सुन्नी गलत बताते हैं। जबकि शिया का तर्क है कि जैसे दोपहर के फौरन बाद तीसरा पहर का वक़्त शुरू हो जाता है। वैसे ही शाम और रात का। इसलिए एक साथ नमाज़ पढ़ी जा सकती है। सुन्नी मुस्लिम हाथ बांधकर नमाज़ पढ़ते हैं और शिया मुस्लिम हाथ छोड़कर नमाज़ पढ़ते हैं। सुन्नी दावा करते हैं कि जैसे वो नमाज़ पढ़ते हैं वो तरीका मुहम्मद साहब के नमाज़ पढ़ने का तरीका है. जबकि शिया इसे ख़ारिज करते हैं और अपने तरीके को मुहम्मद साहब का तरीका बताते हैं।
  • शिया सुन्नी मुस्लिम की किताबों से तर्क को नहीं मानते। तो सुन्नी शिया मुस्लिम की किताबों के तर्क को नहीं मानते। दोनों समुदाय के बीच शादियां न होने की वजह सिर्फ इतनी ही है कि शिया शुरू के तीन खलीफा को बिल्कुल नहीं मानते. बस अली को मानते हैं. जबकि सुन्नी अली को भी मानते हैं। तर्क यह दिया जाता हैं की, अगर शादी होगी तोशिया सुन्नी एक दूसरे की परंपराओं को नहीं निभा पाएंगे। तब दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी में परेशानी होगी।

कुछ गलतफहमी भी हैं

  • दोनों समुदाय के बीच कुछ गलतफहमियां भी बानी रहती हैं। जिसमे, एक गलतफहमी है कि शिया खाने में थूक कर खिलाते हैं। इस वजह से कट्टर सुन्नी शिया के घर का खाने से परहेज़ करते हैं। जबकि यह पूरी तरह अफवाह हैं।
  • एक बात ये चलती है कि सुन्नी कट्टर होते हैं। लेकिन ये भी सच नहीं है। कट्टर सभी धर्मो में कुछ मिल जायेंगे।
  • सुन्नी समुदाय के अंदर ये बात घर कर गई है कि शिया मोहर्रम में होने वाली मजलिस (सभा) में सुन्नियों के खलीफाओं को बुरा भला कहते हैं। ये भी एक गड़ी कहानी हैं।

शिया और सुन्नी की संख्या

दुनियाभर के मुसलमान मौटे तौर पर दो समुदायों, ‘सुन्नी और शिया’ हैं। जिसमें लभगभ 80 से 90 फीसदी सुन्नी आबादी है। जिनकी संख्या लगभग 1.7 बिलियन बताई गई है। वही शिया आबादी का अनुमान 10 से 20 फीसदी तक लगाया गया है। जिनकी संख्या 200 से 380 मिलियन तक आंकी गई है।


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