Sardar Vallabh Bhai Patel / भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हे राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी कहना ग़लत नही है, वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। आज हम जिस भारत को देख रहे है वो टुकड़ो मे बॅंटा हुआ है, एक टुकड़ा पाकिस्तान तो दूसरा बांग्लादेश, कभी भारत की सीमाए बहुत लंबी हुआ करती थी। यह दौर था अंग्रेज़ो के आने से पहले का, लेकिन अंग्रेज आते ही भारत को टुकड़ो मे बाँट दिया और जाते-जाते ऐसे हालत पैदा कर दिए की देश 500 टुकड़ो मे बांटा जाता लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल ऐसा होने नही दिए, आए जानते है भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भाई की प्रेरणादायी जीवन।
सरदार वल्लभभाई पटेल का परिचय – Sardar Vallabh Bhai Patel Biography in Hindi
पूरा नाम | सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) |
जन्म दिनांक | 31 अक्टूबर, 1875. नाडियाड, गुजरात |
निधन | 15 दिसंबर, 1950. मुम्बई, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | झवेरभाई पटेल. |
माता का नाम | लाड़बाई |
शिक्षा | वक़ालत |
पत्नी | झवेरबा |
संतान | पुत्र- दहयाभाई पटेल, पुत्री- मणिबेन पटेल |
कार्य क्षेत्र | उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री |
विशेष योगदान | वास्तव में सरदार पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उनके कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। |
पुरस्कार-उपाधि | ‘लौहपुरुष’, ‘भारत का बिस्मार्क’ |
शुरुवाती जीवन – Early Life of Sardar Vallabh Bhai Patel
सरदार वल्लव भाई पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पाटीदार कृषक परिवार में 31 अक्टूबर, 1875 में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। इसके बाद सरदार पटेल ने गोधरा में अपनी वकालत शुरू की और जल्द ही उनकी वकालत चल पड़ी। उनका विवाह झबेरबा से हुआ।
1904 में पुत्री मणिबेन और 1905 में उनके पुत्र दहया भाई का जन्म हुआ। वल्लभ भाई ने अपने बड़े भाई विट्ठलभाई, जो स्वयं एक वकील थे, को कानून की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा। पटेल सिर्फ 33 साल के थे जब उनकी पत्नी का देहांत हो गया। उन्होंने पुनः विवाह की कामना नहीं की। अपने बड़े भाई के लौटने के पश्चात वल्लभ भाई लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग
महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर सरदार वल्लव भाई ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जिससे पुरे गुजरात में आन्दोलन और तीव्र हो गया और ब्रिटिश सरकार गाँधी और पटेल को रिहा करने पर मजबूर हो गयी। इसके बाद उन्हें मुंबई में एक बार फिर गिरफ्तार किया गया। 1931 में गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने के पश्चात सरदार पटेल को जेल से रिहा किया गया और कराची में 1931 सत्र के लिए उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। 1942 मे उन्हे ‘भारत छोडो’ आंदोलन आरम्भ किया। सरकार ने वल्लभ भाई पटेल सहित कांग्रेस के सारे विशिष्ट नेताओ को कारावास में डाल दिया। सारे नेताओं को तीन साल के बाद छोड़ दिया गया।
आजादी के बाद
सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है।
यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं। गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।
एकता के प्रतीक
सरदार पटेल के राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें मुस्लिम वर्ग के विरोधी के रूप में वर्णित किया; लेकिन वास्तव में सरदार पटेल हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्षरत रहे। इस धारणा की पुष्टि उनके विचारों एवं कार्यों से होती है। यहाँ तक कि गाँधीजी ने भी स्पष्ट किया था कि- “सरदार पटेल को मुस्लिम-विरोधी बताना सत्य को झुठलाना है। यह बहुत बड़ी विडंबना है।” वस्तुत: स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद ‘अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय‘ में दिए गए उनके व्याख्यान में हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न पर उनके विचारों की पुष्टि होती है।
गाँधीजी की हत्या में हिन्दू चरमपंथियों का नाम आने पर सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया था और सरसंघचालक एम.एस. गोलवरकर को जेल में डाल दिया गया। रिहा होने के बाद गोलवरकर ने उनको पत्र लिखे। 11 सितम्बर, 1948 को पटेल ने जवाब देते हुए संघ के प्रति अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए लिखा कि- “संघ के भाषण में जहर होता है… उसी विष का नतीजा है कि देश को गाँधीजी के अमूल्य जीवन का बलिदान सहना पड़ रहा है।”
मृत्यु :- सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई, महाराष्ट्र में दिल का दौरा पड़ने पर हुआ था।
सम्मान और पुरस्कार
- सन 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
- अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण ‘सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ रखा गया है।
- गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में ‘सरदार पटेल विश्वविद्यालय’ है।
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