एनआरसी क्या हैं और इसका इतिहास | NRC Information in Hindi

NRC का हिंदी मतलब ‘राष्ट्रीय नागरिक पंजी’ हैं जिसे इंग्लिश में National Register of Citizens कहते हैं। असम देश का इकलौता राज्य है, जहां राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी लागु हुवा हैं। अभी हाल ही में असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अंतिम ड्रॉफ्ट जारी होने के बाद से ये बहुत बड़ा मुद्दा बन गया हैं। तो चलिए जानते हैं NRC क्या हैं।

एनआरसी क्या हैं और इसका इतिहास | NRC Information in HindiNRC क्या हैं – What is NRC in Hindi

NRC को सिंपल भाषा में कहे तो इससे पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। जिनके नाम इसमें शामिल नहीं होते हैं, उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है। अभी असम देश का इकलौता राज्य है, जहां राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी लागु हुवा हैं। इसे भारत की जनगणना 1951 के बाद 1951 में तैयार किया गया था। इसे जनगणना के दौरान वर्णित सभी व्यक्तियों के विवरणों के आधार पर तैयार किया गया था। जो लोग असम में बांग्लादेश बनने के पहले (25 मार्च 1971 के पहले) आए है, केवल उन्हें ही भारत का नागरिक माना जाएगा।

NRC का इतिहास – NRC History in Hindi

NRC का इतिहास बहुत पुराना हैं। 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, तब पूर्वी बंगाल और असम के रूप में एक नया प्रांत बनाया गया था, तब असम को पूर्वी बंगाल से जोड़ा गया था। जब देश का बंटवारा हुआ तो ये डर भी पैदा हो गया था कि कहीं ये पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग न कर दिया जाए। तब गोपीनाथ बोर्डोली की अगुवाई में असम विद्रोह शुरू हुआ। असम अपनी रक्षा करने में सफल रहा। लेकिन सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में चला गया। 1950 में असम देश का राज्य बना।

असम बनने के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बाद के बांग्लादेश से असम में लोगों के अवैध तरीके से आने का सिलसिला जारी रहा। हालात तब ज्यादा खराब हुए जब तब के पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में भाषा विवाद को लेकर आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया। उस समय पूर्वी पाकिस्तान में परिस्थितियां इतनी हिंसक हो गई कि वहां रहने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों ही तबकों की एक बड़ी आबादी ने भारत का रुख किया।

1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने दमनकारी कार्रवाई शुरू की तो करीब 10 लाख लोगों ने बांग्लादेश सीमा पारकर असम में शरण ली। हालांकि 16 दिसंबर 1971 को जब बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया, उसके कुछ दिन के बाद वहां पर हिंसा में कमी आई। हिंसा कम होने पर बांग्लादेश से भारत आए बहुत सारे लोग अपने वतन लौट गए, लेकिन लाखों की संख्या में लोग असम में भी रुक गए। इसके बाद से ही स्थानीय लोगो और संगठनो द्वारा बाहरी लोगो को बहार करने की आवाज उठाने लगी।

1971 से 1991 के बीच असम में बड़ी संख्या में मतदाता बढ़े, जिसने असम में अवैध तरीके से लोगों के प्रवेश की तरफ इशारा किया। विशेष रूप से बांग्लादेशियों के आने के कारण ही इस क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। हालांकि स्थानीय विरोध को दरकिनार करते हुए सरकार ने इन सारे लोगों को वोटर लिस्ट में शामिल कर लिया। केंद्रीय नेतृत्व के इस व्यवहार से स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम गण संग्राम परिषद के नेतृत्व में लोग सड़कों पर उतर गए।

आंदोलन के नेताओं ने दावा किया कि राज्य की जनसंख्या का 31 से 34 प्रतिशत हिस्सा बाहर से आए लोगों का है। यह आंदोलन छह वर्ष तक जारी रहा। अगस्त, 1985 में भारत सरकार और इन दोनों संगठनों के बीच असम समझौता हुआ जिसके बाद हिंसा पर रोक लगी और असम में नई सरकार का गठन हुआ। इस समझौते का एक अहम भाग यह था कि 1951 की एनआरसी सूची में संशोधन किया जाएगा। और इसके तहत 1971 से पहले जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।

हालांकि इस पर काम शुरू नहीं हो सका। 2005 में जाकर कांग्रेस सरकार ने इस पर काम शुरू किया। इसके बाद राज्य की गोगोई सरकार ने मंत्रियों के एक समूह का गठन किया। उसके जिम्मे था कि वो असम के कई संगठनों से बातचीत करके एनआरसी को अपडेट करने में मदद करें। हालांकि इसका कोई फायदा नहीं हुआ और प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई। बाद में असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित कई अन्य संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।

2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसमें तेजी आई। इसके बाद असम में नागरिकों के सत्यापन का काम शुरू हुआ। राज्यभर में एनआरसी केंद्र खोले गए। असम का नागरिक होने के लिए वहां के लोगों को दस्तावेज सौंपने थे। नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 31 दिसंबर 2017 तक वो एनआरसी को अपडेट कर देंगे।

31 दिसंबर 2017 को बहु-प्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया। कानूनी तौर पर भारत के नागरिक के रूप में पहचान प्राप्त करने हेतु असम में लगभग 3.29 करोड आवेदन प्रस्तुत किये गए थे, जिनमें से कुल 1.9 करोड़ लोगों के नाम को ही इसमें शामिल किया गया है।

इसके बाद 2018 जुलाई में फाइनल ड्राफ्ट पेश किया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने, जिन 40 लाख लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं, उन पर किसी तरह की सख्ती बरतने पर फिलहाल के लिए रोक लगाई है। हालाँकि इस लिस्ट को फिर से अपडेट किया गया और 2019 में जारी किया गया, जिसमे 19,06,657 का नाम शामिल नहीं हैं। आख़िरी लिस्ट में कुल 3,11,21,004 लोगों को शामिल किया गया है।

वहीं चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट किया है कि एनआरसी से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता सूची से भी ये नाम हट जायेंगे। केंद्र सरकार और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने असम के लोगों को भरोसा दिलाया है कि लिस्ट में नाम न होने पर किसी भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जाएगा और उसे अपनी नागरिकता साबित करने का हरसंभव मौका दिया जाएगा।

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