Nanaji Deshmukh – नानाजी देशमुख (चंडिकादास अमृतराव देशमुख) एक भारतीय समाज सेवक और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने भारत के ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण प्रदान किया। 2019 में मरणोपरांत देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।
नानाजी देशमुख का परिचय – Nanaji Deshmukh Biography
नाम | चंडिकादास अमृतराव देशमुख (Chandikadas Amritrao Deshmukh) |
जन्म दिनांक | 11 अक्टूबर, 1916 |
जन्म स्थान | परभनी, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 27 फ़रवरी, 2010 (चित्रकूट, उत्तर प्रदेश) |
पिता का नाम | अमृतराव देशमुख |
माता का नाम | राजाबाई |
नागरिकता | भारतीय |
पद | राष्ट्रधर्म प्रकाशन के प्रबन्धक |
व्यवसाय | समाजसेवक |
प्रसिद्धि कारण | दीनदयाल शोध संस्थान |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न, पद्मविभूषण |
1980 में साठ साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर आदर्श की स्थापना की। बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगा दिया। वे आश्रमों में रहे और कभी अपना प्रचार नहीं किया। उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और उसमें रहकर समाज-सेवा की।
नानाजी देशमुख सिर्फ समाजसेवी और संघ नेता नहीं थे बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उन्हें मोरारजी-मन्त्रिमण्डल में शामिल किया गया परन्तु उन्होंने यह कहकर कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा का कार्य करें, मन्त्री-पद ठुकरा दिया। वे जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे।
नानाजी ने वैसे तो पूरे भारत के कई राज्यों में गांवो की तकदीर व् तस्वीर बदल दी, लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि का केंद्र बनाया भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट को। नानाजी का मानना था कि जब अपने वनवासकाल के प्रवास के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं, तो वे क्यों नहीं। अतः नानाजी चित्रकूट में ही जब पहली बार 1989 में आए तो यहीं बस गए और बदल डाली गांवों की तस्वीर।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Nanaji Deshmukh
नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के परभनी ज़िले में एक छोटे से गाँव ‘कदोली’ में 11 अक्टूबर, 1916 ई. को एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख तथा माता का नाम श्रीमती राजाबाई अमृतराव देशमुख था। उनका बचपन कष्टदायक रहा। अल्प आयु में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया। ये उनके मामा जी ही थे, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा और बड़ा किया। चूंकि नानाजी का बचपन काफी अभावों में बीता था, इसलिए उनके अंदर दबे पिछड़े गरीब लोगों के प्रति स्नेह जागा।
नानाजी का लंबा और घटनापूर्ण जीवन अभाव और संघर्षों में बीता। अपनी स्कूल की शिक्षा के दौरान भी उनके पास किताबें आदि ख़रीदने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन उनके अन्दर ज्ञान तथा शिक्षा प्राप्त करने की अटूट अभिलाषा विद्यमान थी, जिसे वे हर हाल में पाना चाहते थे। वे मन्दिरों में भी रहे और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सब्ज़ी बेचकर पैसे कमाए। लेकिन अभाव में जीने के बावजूद उन्होंने पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
संघ की स्थापना – RSS in Nanaji Deshmukh
नानाजी का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तर प्रदेश रहा। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से नानाजी के पारिवारिक सम्बन्ध थे। वे बचपन से ही उनके संपर्क में रहते थे। वहीं हेडगेवार जी ने भी नानाजी की सामाजिक प्रतिभा को शुरु में ही पहचान लिया था। उन्होंने नानाजी को संघ की शाखा में आने के लिए कहा।
1940 में हेडगेवार के निधन के बाद बाबा साहब आप्टे के निर्देशन पर नानाजी संघ के कामकाज संभालने लगे। इसके बाद आरएसएस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी नानाजी पर आ गई और इस संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाते हुए नानाजी ने अपना पूरा जीवन आरएसएस के नाम कर दिया। उन्होंने महाराष्ट्र सहित देश के विभिन राज्यों में घूम घूम कर युवाओं को आरएसएस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया तथा इस कार्य में वे काफी हद तक सफल भी हुए।
संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले आगरा और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः कांग्रेस के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में 1950 में पहला ‘सरस्वती शिशु मन्दिर’ स्थापित किया। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।
1947 में आरएसएस ने पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक व् स्वदेश हिंदी समाचार पत्र निकालने की शुरुआत की। अटल बिहारी बाजपेयी को सम्पादन दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, फिर भी भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रहा।
राजनीतिक जीवन – Nanaji Deshmukh Career History
जब आर.एस.एस. से प्रतिबन्ध हटा तो राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीय जनसंघ की स्थापना का फैसला हुआ। श्री गुरूजी ने नानाजी को उत्तरप्रदेश में भारतीय जन संघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा। नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तरप्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी। 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरणसिंह के नेतृत्व में पहली संविद सरकार बनी। इसमें नानाजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
विनोबा भावे के भूदान यज्ञ तथा 1974 में इन्दिरा गांधी के शासन के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आन्दोलन में नानाजी खूब सक्रिय रहे। पटना में जब पुलिस ने जयप्रकाश आदि पर लाठियाँ बरसायीं, तो नानाजी ने उन्हें अपनी बाँह पर झेल लिया। इससे उनकी बाँह टूट गयी; पर जयप्रकाश जी बच गये।
जनता पार्टी के संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे। आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव हुआ। कांग्रेस को सत्ता से मुक्त कर अस्तित्व में आई जनता पार्टी। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। नानाजी देशमुख यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए और उन्हें मोरारजी मन्त्रीमण्डल में शामिल होने का न्योता दिया गया, लेकिन नानाजी देशमुख ने यह कह कर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि 60 वर्ष की उम्र के बाद सांसद राजनीति से दूर रहकर सामाजिक व् सांगठनिक कार्य करें।
समाजिक जीवन – Social Life of Nanaji Deshmukh
नानाजी देशमुख ने 60 साल की उम्र पूरी होते ही राजनीति छोड़ दी थी, क्योंकि उनका मानना था कि 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को राजनीति छोड़ देनी चाहिए। वह राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा के नेताओं से वरिष्ठ थे और भाजपा के गठन के काफ़ी पहले राजनीति को अलविदा कह चुके थे। नानाजी ने अपने जीवनकाल में ‘दीनदयाल शोध संस्थान’, ‘ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ और ‘बाल जगत’ जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की। उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले में भी उल्लेखनीय सामाजिक कार्य किया था। नानाजी द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था हर हांथ को काम और हर खेत को पानी।
निधन – Nanaji Deshmukh Died
1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली बार भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट आए और अंतिम रूप से यहीं बस गए। चित्रकूट के जंगलों में पाई जाने वाली जड़ीबूटियों की उपयोगिता जन जन तक पहुंचाने के लिए नानाजी द्वारा आरोग्यधाम की स्थापना की गई जहां विभिन आयुर्वेदिक चिकित्सा व् औषधियों का निर्माण होता है। यहां जनजातीय बच्चों को भी नानाजी के प्रकल्पों के माध्यम से शिक्षित व् आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। सन् 2010 में 27 फरवरी को चित्रकूट में ही इस महान आत्मा का इस मृत्युलोक से प्रस्थान हुआ।
सम्मान और पुरूस्कार – Nanaji Deshmukh Awards
1999 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया। चित्रकूट स्थित ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ में पधारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख द्वारा कमज़ोर वर्ग के उत्थान में उठाए गए क़दमों की सराहना की थी और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों को अनुकरणीय बताया था। मरणोपरांत 2019 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें यह पुरूस्कार दिया।
और अधिक लेख –