आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणादायी जीवनी | Vinoba Bhave Biography in Hindi

Acharya Vinoba Bhave / आचार्य विनोबा भावे भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता थे। इनकी समस्‍त ज़िंदगी साधु संयासियों जैसी रही, इसी कारणवश ये एक संत के तौर पर प्रख्‍यात हुए। विनोबा भावे अत्‍यंत विद्वान एवं विचारशील व्‍यक्तित्‍व वाले शख्‍स थे। भारतीय संस्कृति में ॠषी परंपरा का दुवा ऐसी पहचान विनोबा भावे की जा सकती है। अनेक धर्मो के तत्त्वज्ञान का अभ्यास, सर्वोदय और अहिंसा की विस्तार की रचना इन्होने की।

आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणादायी जीवनी | Vinoba Bhave Biography in Hindi

आचार्य विनोबा भावे का संक्षिप्त परिचय – Vinoba Bhave Biography in Hindi

पूरा नाम विनायक नरहरि भावे (Vinayak Narahari Bhave)
जन्म तिथि 11 सितंबर, 1895
जन्म स्थान गाहोदे, गुजरात, भारत
मृत्यु तिथि 15 नवम्बर, 1982
मृत्यु स्थान वर्धा, महाराष्ट्र
पिता का नाम नरहरी शम्भू राव
माता का नाम रुक्मिणी देवी
राष्ट्रीयता भारतीय
धार्मिक मान्यता हिन्दू धर्म
प्रसिद्धि के कारण
  • स्वतंत्रता सेनानी, विचारक, समाज सुधारक
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न, प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

भारत की आज़ादी की लड़ाई में अहिंसात्मक रूप से इनका बहुत बड़ा योगदान रहा। ये मानवाधिकार की रक्षा और अहिंसा के लिए सदैव कार्यरत रहे। महात्मा गाँधी के परम शिष्‍य ‘जंग ए आज़ादी’ के इस योद्धा ने वेद, वेदांत, गीता, रामायण, क़ुरआन, बाइबिल आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों का उन्‍होंने गहन गंभीर अध्‍ययन मनन किया। अर्थशास्‍त्र, राजनीति और दर्शन के आधुनिक सिद्धांतों का भी विनोबा भावे ने गहन अवलोकन चिंतन किया गया। उन्होने अपने जीवन के आखरी वर्ष पोनार, महाराष्ट्र के आश्रम में गुजारे। उन्होंने भूदान आन्दोलन चलाया।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Vinoba Bhave

विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गाहोदे, गुजरात, भारत में हुआ था। विनोबा भावे के पिता एक बहुत ही अच्छे बुनकर थे, और इनकी माता एक धार्मिक महिला थी। इनके पिता काम की वजह से बरोडा में रहते थे। इस वजह से इनके लालन-पालन में इनके दादा जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। इनका जन्म एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुवा था। विनोबा भावे अपनी माता से बहुत प्रभावित थे, और इसके फलस्वरूप बहुत कम उम्र में इन्होने भगवद्गीता जैसे ग्रन्ध को पढ़ डाला, और उसका सार भी समझ गये। भगवद्गीता के ज्ञान ने इन्हें बहुत प्रभावित किया।

शिक्षा और महात्मा गाँधी से मुलाकात

विनायक की बुद्धि अत्‍यंत प्रखर थी। गणित उसका सबसे प्‍यारा विषय बन गया। हाई स्‍कूल परीक्षा में गणित में सर्वोच्‍च अंक प्राप्‍त किए। इसी दौरान स्थापित बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में महात्मा गाँधी ने एक बहुत प्रभावशाली भाषण दिया था। उसके कुछ अंश अखबारों में छपे, जिसे पढ़ कर विनोबा भावे बहुत प्रभावित हुए। इस वक़्त विनोबा अपने इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के लिए मुंबई जा रहे थे। महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने आगे की पढाई से मुँह मोड़ लिया।

इसके बाद वे ‘गांधी आश्रम’ में शामिल होने के लिए पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। गाँधी जी के उपदेशों ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन के सुधार के लिए एक तपस्वी के रूप में जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। विनोवा भावे की महत्मा गाँधी से पहली मुलाक़ात 7 जून सन 1916 में हुई। इस मुलाक़ात ने उन्हें और गहरा प्रभावित किया। इसके बाद उन्होंने अपना समस्त जीवन महात्मा गाँधी की राह पर चलते हुए देश की सेवा में लगाना ही सही सामझा।

जब विनोबा भावे गाँधी जी से मिलने पहुंचे तो गाँधी जी सब्‍जी काट रहे थे। इतना प्रख्‍यात नेता सब्‍जी काटते हुए मिलेगा, ऐसा तो कदाचित विनोबा ने सोचा न था। बिना किसी उपदेश के स्‍वालंबन और श्रम का पाठ पढ़ लिया। इसके बाद वे महात्मा गाँधी के आश्रम में होने वाले सभी कार्यक्रमों में बहुत अधिक रूचि रखने लगे। इन कार्यों में पठन- पाठन, सामाजिक अवचेतना संबंधी कार्य आदि सदा होते रहते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन में भाग व जेल यात्रा

बापू के सानिध्‍य और निर्देशन में विनोबा के लिए ब्रिटिश जेल एक तीर्थधाम बन गई। सन् 1921 से लेकर 1942 तक अनेक बार जेल यात्राएं हुई। सन् 1922 में नागपुर का झंडा सत्‍याग्रह किया। ब्रिटिश हुकूमत ने सीआरपीसी की धारा 109 के तहत विनोबा को गिरफ़्तार किया। इस धारा के तहत आवारा गुंडों को गिरफ्तार किया जाता है। नागपुर जेल में विनोबा को पत्थर तोड़ने का काम दिया गया। कुछ महीनों के पश्‍चात अकोला जेल भेजा गया। विनोबा का तो मानो तपोयज्ञ प्रारम्‍भ हो गया। 1925 में हरिजन सत्‍याग्रह के दौरान जेल यात्रा हुई। 1930 में गाँधी के नेतृत्व में राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने नमक सत्याग्रह को अंजाम दिया।

1932 में विनोबा जी वर्धा से थोड़ी दूर हरिजनों के एक गाँव नलवाडी में जाकर रहने लगे। वहा उन्होंने यह नियम बनाया कि वह अपने कते सूत के पारिश्रमिक से ही जीवन निर्वाह करेंगे परन्तु उससे गुजारा नही चलता था। पूर्ण पौष्टिक आहार नही मिलने के कारण वे अस्वस्थ हो गये। गांधीजी ने उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए किसी पहाडी स्थान पर जाने का परामर्श दिया परन्तु वे वर्धा से थोड़ी दूर पवनार नदी के किनारे इसी नाम के गाँव के एक टीले पर जाकर रहने लगे। वहा उन्हें कुछ स्वास्थ्य लाभ हुआ। उसके बाद से पवनार आश्रम ही उनका प्रमुख केंद्र बन गया।

11 अक्टूबर 1940 को गाँधी द्वारा व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह के प्रथम सत्‍याग्रही के तौर पर विनोबा को चुना गया। प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा इस सत्‍याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए। उनको गांव-गांव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढ़ते चले जाना था। ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ़्तार किया गया। सन् 1942 में 9 अगस्त को वह गाँधी और कांग्रेस के अन्‍य बड़े नेताओं के साथ गिरफ़्तार किये गये। इस बार उनको पहले नागपुर जेल में फिर वेलूर जेल में रखा।

इस जेल की वजह अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन था। लेकिन वे यहाँ भी हार नहीं माने और जेल में ही पढना लिखना आरम्भ कर दिए। जेल उनके लिए पढने लिखने की जगह बन गयी। उन्होंने जेल में रहते हुए ‘ईशावास्यवृत्ति’ और ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ नामक दो पुस्तकों की रचना कर दी। विल्लोरी जेल में रहते हुए उन्होंने दक्षिण भारत की चार भाषाएँ सीखी और ‘लोकनागरी’ नामक एक लिपि की रचना की।

जेल में ही विनोबा ने 46 वर्ष की आयु में अरबी और फारसी भाषा का अध्‍ययन आरम्‍भ किया और क़ुरआन पढ़ना भी शुरू किया। अत्‍यंत कुशाग्र बुद्धि के विनोबा जल्‍द ही हाफ़िज़ ए क़ुरआन बन गए। मराठी, संस्कृत, हिंदी, गुजराती, बंगला, अंग्रेज़ी, फ्रेंच भाषाओं में तो वह पहले ही पारंगत हो चुके थे। विभिन्‍न भाषाओं के तकरीबन पचास हजार पद्य विनोबा को बाक़ायदा कंठस्‍थ थे। समस्‍त अर्जित ज्ञान को अपनी ज़िंदगी में लागू करने का भी उन्‍होंने अप्रतिम एवं अथ‍क प्रयास किया।

भूदान आन्दोलन 

गांधीजी ने निर्धन अछूत समझें जाने वाले लोगो को हरिजन की संज्ञा दी थी और उनके उद्धार के लिए भी अनेक कदम उठाये थे परन्तु उन्हें भूमि देने की बात सम्भवत: उनके दिमाग में नही आयी थी। विनोबा भावे एक बार आंध्र प्रदेश के एक गाँव में हरिजनों की स्थिति देखने गये। वहा के हरिजनों ने विनोबा भावे से प्रार्थना की कि उन्हें अस्सी एकड़ भूमि प्रदान की जाए जिससे अपने परिवारों को रोटी दे सके। विनोबा जी गांधीजी के समान ही प्रार्थना सभा किया करते थे।

उन्होंने शाम की प्रार्थना सभा में यह बात गाँव के लोगो के सामने रखी। उनकी बात का इतना प्रभाव हुआ कि एक समृद्ध किसान ने उठकर अस्सी एकड़ की बजाय 100 एकड़ जमीन विनोबा जी को भेंट कर दी। बस यही से भूदान आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। उन्होंने उसके बाद तेलंगाना में पद यात्रा करके हजारो एकड़ जमीन दान में प्राप्त की और हरिजनों तथा निर्धन किसानो को इस भूमि के पट्टे दिलवाए। उसके बाद उन्होंने भूदान के लिए देशव्यापी यात्रा की।

इसके बाद वो बिहार गये और उन्होने श्री जयप्रकाश नारायण से इस काम में सहयोग माँगा। बिहार में बहुत बड़े बड़े भूमिपति है। जयप्रकाश के सहयोग से विनोबा जी को वहा पर सवा बाईस करोड़ एकड़ के लगभग भूमि प्राप्त हुयी। विनोबा जी लगभग तेरह-चौदह वर्षो तक सारे देश में पैदल घुमे। उन्होंने चार-पांच हजार गाँवों और करोड़ो भारतवासियों से भेंट की और सत्रह लाख हेक्टेयर के करीब भूमि दान में प्राप्त की, जिसमे से अधिकाँश भूमि निर्धन किसानो में वितरित कर दी गयी।

हालांकि बाद में उन्होंने लोगों को ‘ग्रामदान’ के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें ग्रामीण लोग अपनी भूमि को एक साथ मिलाने के बाद उसे सहकारी प्रणाली के अंतर्गत पुनर्गठित करते। आपके भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर हरदोई जनपद के सर्वोदय आश्रम टडियांवा द्वारा उत्तर प्रदेश के 25 जनपदों में श्री रमेश भाई के नेतृत्व में उसर भूमि सुधार कार्यक्रम सफलता पूर्वक चलाया गया।

साहित्यिक योगदान 

विनोबा भावे एक महान् विचारक, लेखक और विद्वान थे जिन्होंने ना जाने कितने लेख लिखने के साथ-साथ संस्कृत भाषा को आमजन मानस के लिए सहज बनाने का भी सफल प्रयास किया। विनोबा भावे एक बहुभाषी व्यक्ति थे। उन्हें लगभग सभी भारतीय भाषाओं का ज्ञान था। वह एक उत्कृष्ट वक्ता और समाज सुधारक भी थे। विनोबा भावे के अनुसार कन्नड़ लिपि विश्व की सभी ‘लिपियों की रानी’ है। विनोबा भावे ने गीता, क़ुरआन, बाइबिल जैसे धर्म ग्रंथों के अनुवाद के साथ ही इनकी आलोचनाएं भी की। विनोबा भावे भागवत गीता से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वो कहते थे कि गीता उनके जीवन की हर एक सांस में है। उन्होंने गीता को मराठी भाषा में अनुवादित भी किया था।

ब्रम्हा विद्या आश्रम 

ये आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित आश्रमों में एक था। ये आश्रम स्त्रियों के लिए था, जहाँ वे स्वयं अपना जीवन चलाती थी। इस आश्रम के लोग एक साथ मिलकर अपने खाने की व्यवस्था के लिए खेती करते थे। खेती के दौरान वे महात्मा गाँधी के खाद्योत्पति के नियमों पर ध्यान देते थे, जिसमे सामाजिक न्याय और स्थिरता की बातें होती थी। इसमें 25 महिलाएं थी और कालांतर में कुछ पुरुषों को भी उस आश्रम में काम करने की अनुमति दी गयी। सन 1959 में इस आश्रम की स्थापना के साथ इस आश्रम को कुछ कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। ये शुरूआती समय में महाराष्ट्र के पुनर में स्थापित हुआ था। इस आश्रम के लोग जन जन तक आचार्य और महात्मा गाँधी के विचारों को पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे।

निधन 

विनोबा जी ने जब यह देख लिया कि वृद्धावस्था ने उन्हें आ घेरा है तो उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया। हालाँकि देश के अनेक बड़े बड़े नेता और प्रधानमंत्री समय समय पर आध्यात्मिक और सामाजिक तथा अनेक बार राजनितिक समस्याओं के परामर्श के लिए उनके पास जाते रहे। परन्तु विनोबा जी यह अनुभव करते रहे कि अब उनका कोई विशेष उपयोग नही है इसलिए उन्होंने खान-पान त्यागकर निर्वाण की तैयारी की। 14 नवम्बर 1982 को उनकी हालत बहुत खराब हो गयी। तब तक उन्होने पानी भी लेना त्याग दिया था। 15 नवम्बर को उनके प्राण अनंत में विलीन हो गये।

विनोबा जी के शरीर त्यागने के उपरांत पवनार आश्रम के सभी बहनों ने उन्हें संयुक्त रूप से मुखाग्नि दी। इतिहास में इस तरह की मृत्यु के उदाहरण गिने चुने ही मिलते है। इस प्रकार मरने की क्रिया को प्रायोपवेश कहते है। भारत सरकार का विचार था कि इस महान संत की मृत्यु पर राष्ट्रीय शोक मनाया जाए परन्तु विनोबा जी ने तो कभी अपने आप को न तो नेता हे माना था और न कोई अद्वितीय व्यक्ति इसलिए पवनार आश्रम के लोगो की अंतिम इच्छा के अनुरूप किसी प्रकार का शोक मनाने से इनकार कर दिया।

सम्मान एवं पुरस्कार

विनोबा को 1958 में प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।


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