मुहर्रम क्यों मनाया जाता हैं, इतिहास, जानकारी Muharram History in Hindi

Muharram / मुहर्रम मुस्लिमो का प्रमुख त्यौहार हैं। इसे मुहर्रम अथवा मोहर्रम भी कहते हैं। इसे एक शहादत का त्यौहार माना जाता हैं, इसका महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक होता हैं। इस्लामिक कैलंडर के अनुसार यह साल का पहला महिना होता हैं। पैग़म्बर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। मुहर्रम एक महीना है जिसमें दस दिन इमाम, हुसैन के शोक में मनाये जाते हैं। इसी महीने में मुसलमानों के आदरणीय पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिज़रत किया था। मुहर्रम के दिन कई मुस्लिम उपवास करते हैं।

मुहर्रम क्यों मनाया जाता हैं, इतिहास, जानकारी Muharram History in Hindi

मुहर्रम की जानकारी – Muharram Information in Hindi

यह घटना 570 ई. की है, जब अरब की सरजमीं पर दरिंदगी अपनी चरम सीमा पर थी। तब ईश्वर ने एक संदेशवाहक (पैगम्बर) भेजा, जिसने अरब की जमीन को दरिंदगी से निजात दिलाई और निराकार ईश्वर (अल्लाह) का परिचय देने के बाद मनुष्यों को ईश्वर का संदेश पहुंचाया, जो अल्लाह का ‘दीन’ है। इसे इस्लाम का नाम दिया गया। ‘दीन’ केवल मुसलमानों के लिए नहीं आया, वह सभी के लिए था, क्योंकि बुनियादी रूप से दीन (इस्लाम) में अच्छे कामों का मार्गदर्शन किया गया है और बुरे कामों से बचने और रोकने के तरीके बताए गए हैं।

मुहर्रम का इतिहास – Muharram kyu Manaya Jata hai 

जब दीन (इस्लाम) को मोहम्मद साहब ने फैलाना शुरू किया, तब अरब के लगभग सभी कबीलों ने मोहम्मद की बात मानकर अल्लाह का दीन कबूल कर लिया। मोहम्मद के साथ मिले कबीलों की तादाद देखकर उस समय मोहम्मद के दुश्मन भी मोहम्मद साहब के साथ आ मिले (कुछ दिखावे में और कुछ डर से)। लेकिन वे मोहम्मद से दुश्मनी अपने दिलों में रखे रहे। मोहम्मद साहब के आठ जून, 632 ई. को वफ़ात के बाद ये दुश्मन धीरे-धीरे हावी होने लगे।

रसूल मोहम्मद साहब की वफ़ात के लगभग 50 वर्ष बाद इस्लामी दुनिया में ऐसा घोर अत्याचार का समय आया जब कर्बला यानी आज का सीरिया जहां सन् 60 हिजरी को हमीद मावीय के पुत्र यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा। वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था तथा कुछ हद तक कामयाब भी हो रहा था। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पैगम्बर मुहम्मद के खानदान का इकलौता चिराग इमाम हुसैन जो किसी भी हालत में यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।

इस वजह से सन् 61 हिजरी से यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे। ऐसे में वहां के बादशाह इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जाने लगे। पर रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक दिया। वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान पर रुका।

वहां पानी का एकमात्र स्त्रोत फरात नदी थी, जिस पर यजीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। बावजूद इसके इमाम हुसैन नहीं झुके। यजीद के प्रतिनिधियों की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में युद्ध का एलान हो गया।

हज़रत इमाम हुसैन साहब ने उस पूरी रात अपने परिवार वालों तथा साथियों के साथ अल्लाह की इबादत की। मुहर्रम की 10 तारीख को सुबह ही यजीद के सेनापति उमर बिल साद ने यह कहकर एक तीर छोड़ा कि गवाह रहे सबसे पहले तीर मैंने चलाया है। इसके बाद लड़ाई आरम्भ हो गई। यजीद की 80,000 की फौज के सामने हुसैन के 72 बहादुरों ने जंग लड़ी।

उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। लेकिन हुसैन कहां जंग जीतने आए थे, वह तो अपने आपको अल्लाह की राह में त्यागने आए थे। उन्होंने अपने नाना और पिता के सिखाए हुए सदाचार, उच्च विचार, अध्यात्म और अल्लाह से बेपनाह मुहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और पीड़ा सब पर विजय प्राप्त कर ली। दसवें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और अपने साथियों के शवों को दफनाते रहे और आखिर में खुद अकेले युद्ध किया फिर भी दुश्मन उन्हें मार नहीं सका।

आखिर में अस्र की नमाज के वक्त जब इमाम हुसैन खुदा का सजदा कर रहे थे, तब एक यजीदी को लगा कि शायद यही सही मौका है हुसैन को मारने का। फिर, उसने धोखे से हुसैन को शहीद कर दिया। लेकिन इमाम हुसैन तो मर कर भी जिंदा रहे और हमेशा के लिए अमर हो गए। पर यजीद तो जीत कर भी हार गया।

बादशाह यजीद जो इस्लाम का दुश्मन था और हज़रत मोहम्मद साहब का मजाक उड़ाता था वह इस क़ाफिले को इस हालत में देखकर बहुत खुश हुआ, किंतु कुछ दिनों के बाद ही अत्याचारी यजीद की बादशाहत खत्म हो गई और वह बुरी मौत मरा। हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम पर तथा मानवता पर अपनी जान कुर्बान की जो अमर है। हुसैन साहब पर जुल्म करने वाले कोई गैर नहीं थे बल्कि वही थे जो अपने आपको मुसलमान समझते थे। इस्लाम आज भी ज़िंदा है, क़ुरान शरीफ़ आज भी बाकी है, रोजा, नुपाश अब भी ऐसी ही है और आगे भी रहेंगे। यह सब कुछ हुसैन साहब की कमाई है।

मुहर्रम का पैगाम शांति और अमन ही हैं। युद्ध रक्त ही देता हैं। कुर्बानी ही मांगता हैं लेकिन धर्म और सत्य के लिए कभी घुटने न टेकने का सन्देश भी मुहर्रम देता हैं। इसलिए यह दिन अमन और शांति का पैगाम देते हैं।

कैसे मनाया जाता हैं मुहर्रम – Muharram Kaise Banate Hai

  • मुहर्रम में कई लोग रोजे रखते हैं। पैगंबर मुहम्मद साहब के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता है।
  • कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं। जो लोग 10 दिनों के रोजे नहीं रख पाते, वे 9 और 10 तारीख के रोजे रखते हैं। यह प्रथा पूरे विश्व में मानी जाती है।
  • बड़े और छोटे सभी शिया मुसलमान यहां इकट्‌ठे होते हैं और दस दिन तक वे हुसैन की याद में छाती पीट-पीटकर रोते और विलाप करते हैं। सारे दिन ईश्वर की प्रार्थना की जाती है और गरीबों को खैरात बांटी जाती है। वे इस अवसर पर हुसैन को सम्मान से याद करते हैं और क्रूर याजिद को कोसते हैं।
  • इस महीने को इबादत का महीना कहते हैं। हजरत मुहम्मद के अनुसार इन दिनों रोजा रखने से किये गए बुरे कर्मो का विनाश होता हैं। अल्लाह की रहम होती हैं, गुनाह माफ़ होते हैं।
  • शिया समुदाय में मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ताजिया रखी जाती है। इस दिन लोग इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया और जुलूस निकालते हैं।

Muharram India

ताज़िया – Tajiya Muharram 

पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद के नाती और इस्लाम के चौथे ख़लीफ़ा हज़रत अली के बेटे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताज़िया निकाला जाता है और शोक मनाया जाता है। इमाम हुसैन को यज़ीद की फ़ौज ने करबला (इराक़ में स्थित) के मैदान में 10वीं मुहर्रम को शहीद कर दिया था। उसके बाद से इमाम हुसैन को सच्चाई के रास्ते में क़ुर्बानी का प्रतीक मान लिया गया जिन्होंने सच्चाई के लिए अपने साथ साथ सारे घर की क़ुर्बानी दे दी। उनकी शहादत पर जितना मातम हुआ है और जितने आंसू बहाए गए हैं उतने आंसू किसी एक व्यक्ति के लिए कभी नहीं बहाए गए।

ताज़िया इमाम हुसैन के मक़बरे कई अनुकृति है जिसका जुलूस मुहर्रम में निकलता है। ताज़िया बाँस की खपच्चिय़ों पर रंग-बिरंगे काग़ज़, पन्नी आदि चिपका कर बनाया हुआ मक़बरे के आकार का वह मंडप जो मुहर्रम के दिनों में मुसलमान अथवा शिया लोग हज़रत इमाम हुसैन की क़ब्र के प्रतीक रूप में बनाते है और जिसके आगे बैठकर मातम करते और मासिये पढ़ते हैं। ग्यारहवें दिन जलूस के साथ ले जाकर इसे दफन किया जाता है। ताज़िया हज़रत इमाम हुसैन की याद में बनाए जाते हैं। इस्लाम में कुछ लोग इसकी आलोचना करते हैं लेकिन ये ताज़ियादारी बहुत शान से होती है। हिन्दू भी इसमें हिस्सा लेते है।

शिया सुन्नी के बीच मुहर्रम में अंतर – Shia and Sunni Muhharam

शिया

मुहर्रम महीन के दसवें दिन हजरत मुहम्मद साहब के नाती हुसैन अली अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे। इस गम के त्योहार को मुसलिम समुदाय के दो वर्ग शिया और सुन्नी अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। शिया समुदाय के लोग मुहम्मद साहब के दामाद और चचेरे भाई हजरत अली और उनके नाती हुसैन अली को खलीफा और अपने करीब मानते हैं। शिया समुदाय के लोग पहले मुहर्रम से 10 वें मुहर्रम यानी अशुरा के दिन तक मातम मनाते हैं। इस दौरान शिया समुदाय के लोग रंगीन कपड़े और श्रृंगार से दूर रहते हैं। मुहर्रम के दिन यह अपना खून बहाकर हुसैन की शहादत को याद करते हैं। दस दिन तक वे हुसैन की याद में छाती पीट-पीटकर रोते और विलाप करते हैं।

सुन्नी

सुन्नी समुदाय के लोग अपना खून नहीं बहाते हैं। यह ताजिया निकालकर हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं। यह आपस में तलवार और लाठी से कर्बला की जंग की प्रतीकात्मक लड़ाई लड़ते हैं। इस समुदाय के लोगों में रंगीन कपड़े पहनने को लेकर किसी तरह की मनाही नहीं है। इसमें मातम भी मनाया जाता हैं लेकिन फक्र के साथ शहीदों को याद किया जाता हैं।

FAQ

Q : मुहर्रम कब मनाया जाता है ?

Ans : हिजरी संवत का पहला महिना

Q : मोहर्रम कब से शुरू हुआ?

Ans – 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी। इस जंग में इंसान के लिए और जुर्म के खिलाफ लड़ाई गई। इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया था। इसी के बाद मुहर्रम मनाया जाता हैं।

Q : मुहर्रम कैसा त्यौहार है ?

Ans : इसे शहादत के दिन के रूप में मनाते हैं.

Q : मुहर्रम में लोग क्या करते हैं ?

Ans : इस दिन ताजिया निकलते हैं, साथ ही सवारी भी निकलती है.

Q : मुहर्रम का त्यौहार कितने दिनों का त्यौहार होता है ?

Ans : 10 दिन का

Q : शिया मातम क्यों करते है?

Ans : शिया मुस्लिम हुसैन की शहादत की याद में आशूरा के दिन मातम मनाते हैं।


और अधिक लेख –

Please Note : – Muharram History & Story In Hindi मे दी गयी Information अच्छी लगी हो तो कृपया हमारा फ़ेसबुक (Facebook) पेज लाइक करे या कोई टिप्पणी (Comments) हो तो नीचे  Comment Box मे करे।

2 thoughts on “मुहर्रम क्यों मनाया जाता हैं, इतिहास, जानकारी Muharram History in Hindi”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *