Maluk Das in Hindi / मलूक दास रीतिकाल के महान संत और कवी थे। इनके दोहे मानवीय मूल्यों को स्थापित करने तथा सामाजिक सरसता को बनाये रखने में आज भी बहुत प्रासंगिक है। मलूक दास ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को जागरूक बनाने का प्रयन्त किया। वे किसी भी जाति या धर्म के व्यक्तियों के साथ भेदभाव नही करते थे वह सभी को एक नजर से देखते थे। इसी कारण मुग़ल सम्राट औरंगजेब भी उन्हें बहुत सम्मान करते थे।
मलूक दास का परिचय – Maluk Das Information & History
सन्त मलूक दास का जन्म पुरातन में वत्स देश की राजधानी रही वर्तमान कौशाम्बी जिले के ऐतिहासिक स्थान ‘कड़ा’ में सम्वत् 1631 में वैशाख बदी पंचमी को हुआ था। बचपन में इनका नाम ‘मल्लु’ था और इनके तीन भाइयों के नाम क्रमश: हरिश्चंद्र, शृंगार तथा रामचंद्र थे। इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में संवत् 1739 में हुई। ये औरंगजेब के समय के कवी हुवे।
संत मलूकदास की रचनाओं की संख्या 21 तक बतलाई जाती है और उनमें से ‘अलखबानी’, ‘गुरुप्रताप’, ‘ज्ञानबोध’, ‘पुरुषविलास’, ‘भगत बच्छावली’, ‘भगत विरुदावली’, ‘रतनखान’, ‘रामावतार लीला’, ‘साखी, ‘सुखसागर’ तथा ‘दसरत्न’ विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं। हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को उपदेश देने में प्रवृत्त होने के कारण दूसरे निर्गुणमार्गी संतों के समान इनकी भाषा में भी फारसी और अरबी शब्दों का बहुत प्रयोग है।
कहा जाता हैं मलूक दास बचपन से ही अत्यंत उदार एवं कोमल हृदय के थे। इन्होने कोई खास शिक्षा हासिल नहीं की थी। इनके प्रथम गुरु कोई पुरुषोत्तम थे जो देवनाथ के पुत्र थे और पीछे इन्होंने मुरारिस्वामी से दीक्षा ग्रहण की जिनके विषय में इन्होंने स्वयं भी कहा है, मुझे मुरारि जी सतगुरु मिल गए जिन्होंने मेरे ऊपर विश्वास की छाप लगा दी।
इनकी प्रसिद्धि बहुत दूर तक फैली हुई थी। अन्य धर्म के लोग भी मलूक दास की बातो को, उनकी पवित्रता को बहुत मानते थे। मुग़ल बादशाह औरंगजेब भी मलूक दास का बहुत सम्मान करते थे और इसीलिए औरंगजेब ने उनके के लिए दो गाव भी भेट स्वरूप दिए थे जहापर मलूक दास की गद्दी की व्यवस्था हो सके।
भक्ति भावना से अभिभूत अपनी जिन अभिभूतियों को मलूक दास ने पदनात्मक रूप मे गाया। वे दोहे इतने लोकप्रिय साबित हुए कि दूर दूर तक कुछ भी न जानने वाले किसान मजदूरों से भी उन्हे आज भी सुना जाता है। इस संत का समूचा जीवन दया और करुणा से ओत प्रोत रहा है। इसलिए आजीवन यह परोपकार एवं दीन दुखियो की सेवा व दु:ख निवारण मे तल्लीन रहे।
वह किसी धर्म के व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करते थे। सबके साथ में समानता का व्यवहार करते थे। सभी धर्म के लोग उनके शिष्य थे। पत्थर पूजने के बजाए वह दु:खी इन्सानों के दु:ख निवारण को परमात्मा तक पहॅुचने का सुगम मार्ग मानते है।
मलूकदास की कवितायेँ – Maluk Das
दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन।
तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥
आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।
यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।
बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास ‘मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
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