Lord Parshuram / परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक मुनि थे। उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। लेकिन भगवान परशुराम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रियों का 21 बार संहार किया। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान परशुराम ने आखिर 21 बार ही पृथ्वी से क्षत्रिय वंश का नाश क्यों किया? इसी का जवाब देती है एक रोचक पुराण कथा – (Lord Parshuram Story In Hindi)
Parshuram ki kahani – Parshuram ne kshatriya ko kyu mara
महिष्मती नगर के राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे। सहस्त्रार्जुन का वास्तवीक नाम अर्जुन था। उन्होने दत्तत्राई को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। दत्तत्राई उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा तो उसने दत्तत्राई से 10000 हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद उसका नाम अर्जुन से सहस्त्रार्जुन पड़ा। इसे सहस्त्राबाहू और राजा कार्तवीर्य पुत्र होने के कारण कार्तेयवीर भी कहा जाता है।
कहा जाता है महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में चूर होकर धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चूका था। उसके अत्याचार व अनाचार से जनता त्रस्त हो चुकी थी। वेद – पुराण और धार्मिक ग्रंथों को मिथ्या बताकर ब्राह्मण का अपमान करना, ऋषियों के आश्रम को नष्ट करना, उनका अकारण वध करना, निरीह प्रजा पर निरंतर अत्याचार करना, यहाँ तक की उसने अपने मनोरंजन के लिए मद में चूर होकर अबला स्त्रियों के सतीत्व को भी नष्ट करना शुरू कर दिया था।
एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों से पार करता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा। ऋषि जमदग्रि ने देवराज इन्द्र से प्राप्त कामधेनु गाय के अनूठे गुणों की मदद से सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना के लिए भोजन और विश्राम का बंदोबस्त किया।
कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को ऋषि के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसके मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा। तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई।
सहस्त्रार्जुन को खाली लौटना पड़ा। परम तपस्वी जमदग्रि ने अपने संत चरित्र के कारण सहस्त्रार्जुन का कोई विरोध नहीं किया और तप करते रहे। किंतु इस घटना के बाद जब पितृभक्त परशुराम का वहां आना हुआ तो उनकी माता ने सारी बात बताई। परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए।
पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। जहां सहस्त्रार्जुन और परशुराम का युद्ध हुआ। किंतु परशुराम के प्रचण्ड बल के आगे सहस्त्रार्जुन बौना साबित हुआ। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु से काटकर कर उसका वध कर दिया।
सहस्त्रार्जुन के वध के बाद पिता के आदेश से इस वध का प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए। इसी बीच मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर वध कर दिया। जब परशुराम तीर्थ से वापिस लौटे तो आश्रम में माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे।
यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही सर्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान परशुराम ने अपने इस संकल्प को पूरा भी किया। इस भू-लोक से इक्कीस बार क्षत्रियों का नाश कर उनके बहते रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में रक्त कुण्ड बन गए। जिससे उन्होंने अपने पिता का तर्पण भी किया।
परशुराम द्वारा तत्कालीन दुष्ट और अत्याचारी क्षत्रियों का अंत कर न केवल जगत को उनके आतंक से मुक्त कराया बल्कि इसके द्वारा एक लौकिक संदेश भी दे गए कि किसी भी व्यक्ति और समाज को असत्य, अन्याय और अत्याचार का निर्भय होकर, पुरुषार्थ और पराक्रम के साथ विरोध करना चाहिए। किंतु उसका उद्देश्य साथर्क होना चाहिए।
Joy shree ram …..bohot achha hey vaiya ..