क्रांतिकारी खुदीराम बोस की जीवनी | Khudiram Bose Biography In Hindi

Khudiram Bose Biography / खुदीराम बोस (जन्म: 3 दिसंबर, 1889 – मृत्यु : 11 अगस्त, 1908) एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक के तौर पर जाना जाता है। खुदीराम बोस हिंदुस्तान की आजादी के लिए मात्र 19 साल की उम्र में फाँसी पर चढ़ गये। खुदीराम बोस के सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जो बंगाल में लोक गीत के रूप में प्रचलित हुए।

क्रांतिकारी खुदीराम बोस की जीवनी | Khudiram Bose Biography In Hindi

खुदीराम बोस का परिचय – khudiram bose ka jeevan parichay

नाम खुदीराम बोस (Khudiram Bose)
जन्म दिनांक 3 दिसंबर, 1889
जन्म स्थान हबीबपुर, बंगाल
मृत्यु 11 अगस्त, 1908
मृत्यु का कारण फाँसी
पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ बोस
माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी
राष्ट्रीयता भारतीय
आंदोलन भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन

मात्र 16 साल की आयु में, खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने पुलिस स्टेशनों के पास बम छोड़े और सरकारी अधिकारी को अपना निशाना बनाया। इन बम धमाकों के आरोप में खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया। इन आरोपों के कारण उन्हें 19 साल की उम्र में मौत की सजा सुनाई गई।

खुदीराम बोस की प्रारंभिक जीवन – Early Life of Khudiram Bose

खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिद्नापोरे जिले के तामलुक शहर के हबीबपुर जैसे छोटे गाव में 3 दिसम्बर 1889 को त्रिलोकनाथ बोस और लक्ष्मीप्रिया देवी के परिवार में हुआ था। खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। खुदीराम बोस की बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था। सन् 1905 ई. में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस देश के मुक्ति आंदोलन में कूद पड़े थे। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था। खुदीराम बोस पर भगवद गीता के कर्म अध्याय का गहरा असर था।

अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ – Khudiram Bose Andolan 

खुदीराम बोस राजनीतिक गतिविधियों में स्कूल के दिनों से ही भाग लेने लगे थे। उन दिनों अंग्रेज़ों से छोटे-छोटे हिन्दुस्तानी स्कूली बच्चे भी नफ़रत किया करते थे। सन 1902 और 1903 के दौरान अरविंदो घोष और भगिनी निवेदिता ने मेदिनीपुर में कई जन सभाएं की और क्रांतिकारी समूहों के साथ भी गोपनीय बैठकें आयोजित की। खुदीराम भी अपने शहर के उस युवा वर्ग में शामिल थे जो अंग्रेजी हुकुमत को उखाड़ फेंकने के लिए आन्दोलन में शामिल होना चाहता था। वे जलसे जलूसों में शामिल होते थे तथा अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ नारे लगाते थे।

बोस को ग़ुलामी की बेड़ियों से जकड़ी भारत माता को आज़ाद कराने की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और सिर पर कफ़न बांधकर जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़े। बाद में वे रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम पंफलेट वितरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

बहिष्कार आन्दोलन में भाग

पुलिस ने 28 फ़रवरी, सन् 1906 ई. को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बाँटते हुए बोस को दबोच लिया। लेकिन बोस मज़बूत थे। पुलिस की बोस ने पिटाई की और उसके शिकंजे से भागने में सफल रहे। 16 मई, सन् 1906 ई. को एक बार फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया, लेकिन उनकी आयु कम होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। 6 दिसम्बर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे। उन्होंने अंग्रेज़ी चीज़ों के बहिष्कार आन्दोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया।

ब्रिटिश राज के विरुद्ध

भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन के आरंभिक चरण में कई क्रांतिकारी ऐसे थे जिन्‍होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध आवाज़ उठाई। खुदीराम बोस भारत की स्‍वतंत्रता के संघर्ष के इतिहास में संभवतया सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे, जो भारत मां के सपूत कहे जा सकते हैं। बंगाल के विभाजन के बाद दुखी होकर खुदीराम बोस ने स्‍वतंत्रता के संघर्ष में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से एक मशाल चलाई। उन्‍होंने ब्रिटिश राज के बीच डर फैलाने के लिए एक ब्रिटिश अधिकारी के वाहन पर बम डाल दिया।

क्रान्तिकारियों द्वारा साज़िश

कलकत्ता में उन दिनों किंग्सफोर्ड चीफ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट था। वह बहुत सख़्त और क्रूर अधिकारी था। वह अधिकारी देश भक्तों, विशेषकर क्रांतिकारियों को बहुत तंग करता था। उन पर वह कई तरह के अत्याचार करता। अंग्रेजी हुकुमत ने किंग्जफोर्ड के कार्य से खुश होकर उसकी पदोन्नति कर दी और मुजफ्फरपुर जिले में सत्र न्यायाधीश बना दिया। क्रान्तिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। युगान्तर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेन्द्र कुमार घोष]ने घोषणा की कि किंग्सफोर्ड को मुज़फ्फरपुर में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया।

ये दोनों क्रांतिकारी बहुत सूझबूझ वाले थे। इनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। देश भक्तों को तंग करने वालों को मार डालने का काम उन्हें सौंपा गया था। एक दिन वे दोनों मुज़फ्फरपुर पहुँच गए। वहीं एक धर्मशाला में वे आठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने किंग्सफोर्ड की दिनचर्या तथा गतिविधियों पर पूरी नज़र रखी। उनके बंगले के पास ही क्लब था। अंग्रेज़ी अधिकारी और उनके परिवार अक्सर सायंकाल वहाँ जाते थे।

30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्स फोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुँचे। रात्रि के साढे़ आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रहे थे। उनकी बग्घी का रंग लाल था और वह बिल्कुल किंग्सफोर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। खुदीराम बोस तथा उसके साथी ने किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया। देखते ही देखते बग्घी के परखचे उड़ गए। उसमें सवार मां बेटी दोनों की मौत हो गई। क्रांतिकारी इस विश्वास से भाग निकले कि किंग्सफोर्ड को मारने में वे सफल हो गए है। लेकिन उन्हें बाद में पता चला की उस रात किंग्सफोर्ड की बग्गी में एक महिला और उसकी बेटी थी, जिनकी हादसे में मौत हो चुकी थी। अपने इस गलती पर प्रफुल्ल और खुदीराम दोनों को बाद में पछतावा होने लगा। बाद में वे लगातार पुलिस की नज़रो से बचते रहे।

खुदीराम बोस की गिरफ़्तारी

ब्रिटिश अधिकारी खुदीराम बोस को पकड़ने के लिए जगह-जगह तैनात किये गये थे. और साथ ही ब्रिटिश सरकार ने उनपर 1000 रुपयों का इनाम रखा। खुदीराम बोस और घोष 25 मील भागने के बाद एक रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। खुदीराम बोस पर पुलिस को इस बम कांड का संदेह हो गया और अंग्रेज़ पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी पर खुदीराम पकड़े गए। उनके मन में तनिक भी भय की भावना नहीं थी। खुदीराम बोस को जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या का मुक़दमा चला। अपने बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया था।

मृत्यु की सज़ा – Khudiram Bose Fasi

मुक़दमा केवल पाँच दिन चला। 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें प्राण दण्ड की सज़ा सुनाई गई। इतना संगीन मुक़दमा और केवल पाँच दिन में समाप्त। यह बात न्याय के इतिहास में एक मज़ाक बना रहेगा। 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फाँसी पर चढा़ दिया गया। उन्होंने अपना जीवन देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दिया

लोकप्रियता – Khudiram Bose in Hindi

मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 19 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे। इनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। इनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। इनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं।

क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम शहीद

इतिहासकार शिरोल के अनुसार– बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए वह शहीद और अधिक अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। स्कूल-कॉलेज बंद रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। खुदीराम बोस को भारत की स्वतंत्रता के लिए संगठित क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम शहीद माना जाता है। अपनी निर्भीकता और मृत्यु तक को सोत्साह वरण करने के लिए वे घर-घर में श्रद्धापूर्वक याद किए जाते हैं।

खुदीराम बोस को आज भी सिर्फ बंगाल में ही नही बल्कि पुरे भारत में याद किया जाता है। उनके युवाशक्ति की आज भी मिसाले दी जाती है। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अनेक कम आयु के वीरो ने भी अपने प्राणों की आहुति दी है। उनमे खुदीराम बोस का नाम स्वर्णक्षरो में लिखा जाता है। उन्हें ‘स्वाधीनता संघर्ष का महानायक’ भी कहा जाता है।


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4 thoughts on “क्रांतिकारी खुदीराम बोस की जीवनी | Khudiram Bose Biography In Hindi”

  1. भारत माता की आज़ादी के लिए 11 अगस्त 1908 को हंसते हंसते हाथो में गीता लिए फांसी के फंदे पर झूल गए एसे महावीर शहीद खुदीराम बोस को हम सब नमन करते हैं..

    धन्यवाद आप का

  2. महावीर शहीद खुदीराम बोस को हम सब नमन करते हैं……आपका बहुत बहुत शुक्रिया!!!

  3. जहाँ तक मैंने मे पढ़ा है खुदीराम बोस जी बारे…….वो वाकई में महान थे खुदीराम बोस को हम सब नमन करते हैं

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