Howrah Bridge Kolkata in Hindi / हावड़ा ब्रिज, पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित एक प्रसिद्ध ब्रिज (पुल) हैं। यह ब्रिज हुगली नदी पर बना हैं। इस ब्रिज का नाम रवीन्द्र सेतु (Rabindra Setu) हैं पर हावड़ा ब्रिज के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। हर रोज लाखो वाहन गुजारने की क्षमता रखने वाला यह पुल आज कोलकाता की पहचान बन चुका है। इसका निर्माण ब्रिटिश राज के दौरान 1939 में शुरू हुआ और यह 1943 में जनता के लिए खोला गया था।
हावड़ा ब्रिज की जानकारी – Howrah Bridge Information in Hindi
कोलकाता की यह हावड़ा ब्रिज दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इस पुल का निर्माण ब्रिटिश राज में किया गया था जिसे 1943 में वापस बनाया गया और यहां कई बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्मे बन चुकी हैं। इसकी पहचान कोलकाता और आपसपास के टाउनशिप से कहीं ज्यादा है। यह दुनिया का सबसे व्यस्त पुल है।
यह पुल 2,300 फुट लंबा है। गर्मी के दिनों में इसकी लंबाई 3 फुट तक बढ़ सकती है। यह पुल बेहद मजबूत है और बरसों से बंगाल की खाड़ी के तूफानों को सहन कर रहा है। यही नहीं, 2005 में एक हजार टन वजनी कार्गो जहाज इससे टकरा गया था, तब भी पुल का कुछ नहीं बिगड़ा था।
यह ब्रिज हावड़ा को कोलकाता से जोड़ता है। यह अपने तरह का छठवाँ सबसे बड़ा पुल है। सामान्यतया प्रत्येक पुल के नीचे खंभे होते है जिन पर वह टिका रहता है परंतु यह एक ऐसा पुल है जो सिर्फ चार खम्भों पर टिका है दो नदी के इस तरफ और पौन किलोमीटर की चौड़ाई के बाद दो नदी के उस तरफ।
सहारे के लिए कोई रस्से आदि की तरह कोई तार आदि नहीं। इस दुनिया के अनोखे हजारों टन बजनी इस्पात के गर्डरों के पुल ने केवल चार खम्भों पर खुद को इस तरह से बैलेंस बनाकर हवा में टिका रखा है कि 80 वर्षों से इस पर कोई फर्क नहीं पडा है जबकि लाखों की संख्या में दिन रात भारी वाहन और पैदल भीड़ इससे गुजरती है।
इसकी क्षमता 60,000 टन वजन सहने की है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या ने ट्रैफिक को इतना बढ़ा दिया कि आज हावड़ा ब्रिज पर हर समय 90,000 टन का वजन रहता है। इसीलिए कई ट्रामों और ज्यादा वजनी ट्रकों को दूसरे रास्तों या पुलों पर स्थानांतरित किया जा रहा है।
अंग्रेजों ने जब इस पुल की सोची तो वे ऐसा पुल बनाना चाहते थे कि नीचे नदी का जल मार्ग न रुके। और पुल के नीचे कोई खंभा न हो। ऊपर पुल बन जाय और नीचे हुगली में पानी के जहाज और नाव भी बिना रुके चलते रहें। ये एक झूला अथवा कैंटिलिवर पुल से ही संभव था।
हावड़ा ब्रिज का इतिहास – Howrah Bridge History in Hindi
Howrah Bridge – इसके पहले हुगली नदी पर तैरता पुल था। पर नदी में पानी बढ़ जाने पर इस पुल पर जाम लग जाता था। 1933 में इसकी जगह बड़ा ब्रिज बनाने का निर्णय हुआ। 1937 से नया पुल बनना शुरू हुआ। इस ब्रिज को बनाने का काम जिस ब्रिटिश कंपनी को सौंपा गया उससे यह ज़रूर कहा गया था कि वह भारत में बने स्टील का इस्तेमाल करेगा। इस ब्रिज में ज़्यादातर भारत का ही स्टील लगा है।
इसे बनाने के कॉन्ट्रैक्ट के लिए 20 से भी ज्यादा कम्पनियों को चुना गया था, जिसमें जर्मनी की एक कम्पनी ने सबसे कम की बोली लगाई। लेकिन विश्व युद्ध और राजनैतिक कारणों से इस कम्पनी को कॉन्ट्रैक्ट नहीं दिया जा सका। आखिर में 1935 में इसका कॉन्ट्रैक्ट एक ब्रिटिश कम्पनी Cleveland Bridge & Engineering Co. Ltd. को दिया गया था। लेकिन इसकी संरचना Braithwaite Burn and Jessop Construction Co. Ltd. नामक कम्पनी द्वारा किया गया।
आज जहाँ हावड़ा ब्रिज है दरअसल वहाँ कभी पोंटून (Pontoon) सेतु था, जिसे विकसित करके हावड़ा ब्रिज बनाया गया। शुरुआत में इसका नाम ‘न्यू हावड़ा ब्रिज’ था। 14 जून, 1965 में बंगला साहित्य के महान कवि; प्रथम एशियाई और प्रथम भारतीय नोबेल पुरष्कार विजेता ‘रवींद्रनाथ टैगोर’ के सम्मान में इसका नाम बदलकर ‘रवीन्द्र सेतु’ (Rabindra Setu) कर दिया गया। लेकिन यह आज भी हावड़ा ब्रिज के नाम से ही जाना जाता है।
इसे बनाने में 26,500 टन स्टील खपत हुई थी, जिसमें से 87% स्टील ‘टाटा स्टील कम्पनी’ द्वारा ख़रीदा गया था। इस परियोजना के लिए सारी स्टील इंग्लैंड से लायी जा रही थी। लेकिन जापान के धमकी की वजह से सिर्फ 3000 टन स्टील ही लाया जा सका। बाकि स्टील की खरीद ‘टाटा स्टील’ से की गयी।
यह पुल 2,313 फ़ीट लम्बा और 269 फ़ीट ऊँचा है। इसकी चौड़ाई 71 फ़ीट है, जिसमें दोनों तरफ 15-15 फ़ीट चौड़े दो फूटपाथ भी हैं। यह पूरा पुल उच्च-तन्य मिश्रधातु (High-tensile alloy) स्टील का बना हुआ है, जिसे Tiscrom कहा जाता है।
अपने निर्माण के समय यह पूरे विश्व में तीसरा सबसे लम्बा पुल था। आज यह अपनी तरह का विश्व का छठा सबसे लम्बा पुल है। हावड़ा ब्रिज के देखभाल की जिम्मेदारी ‘कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट (KoPT)’ की है। इस ट्रस्ट की स्थापना हावड़ा ब्रिज के स्थापना से भी 73 साल पहले सन् 1870 मेंहुई थी
इस पूरे ब्रिज का प्रारूप (डिज़ाइन) Rendel, Palmer और Tritton के द्वारा किया गया था। अनुमान यह है कि इस बड़े पुल के निर्माण की राशि 333 करोड़ रुपए थी। यह दुनिया में ब्रैकट पुल से एक है। यह पुल 75 साल पुराना है। इसे बनने में लगभग 6 साल लगे। 3 फ़रवरी, 1943 में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ, जो आज तक जारी है।
हावड़ा ब्रिज से जुड़े रोचक तथ्य – Howrah Bridge Facts in Hindi
1). हावड़ा ब्रिज (Howrah Pul) पर हर रोज 1 लाख से भी ज्यादा गाड़ियाँ गुजरती हैं और 5 लाख पैदलयात्री (वर्तमान में इससे भी ज्यादा) इस पर चलते हैं।
2). 2000 फ़ीट से भी अधिक लम्बे इस पुल में सिर्फ 2 ही स्तंभ (Support) हैं, जिनकेबीच की लम्बाई 1500 फ़ीट है।
3). भारत में यह अपनी तरह का एकमात्र बाहुधरण (Cantilever) ब्रिज है।
4). गर्मियों के दिनों में इसकी लम्बाई करीब 3 फ़ीट तक बढ़ जाती है, क्योंकि अधिक तापमान में धातु (स्टील) पिघलती औरफैलती है।
5). 2006 के शुरुआत में इसकी मरम्मत करवाई गयी थी, जिसमें 8 टन स्टील की खपत हुई थी। इस पूरे प्रक्रिया में 50 लाख रूपये खर्च हुए थे।
6). यह उम्दा अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) की बेहतरीन मिसाल है क्योंकि इतने बड़े इस ब्रिज में एक भी नट-बोल्ट (Nut-Bolt) नहीं है। इसमें धातुओं को झलाई (Riveting/Welding) प्रक्रिया द्वारा जोड़ा गया है।
7). इस पूरे ब्रिज को Paint करने के लिए 26,500 लीटर Paint की खपत होती है, जिसमें लगभग 65 लाख रूपये खर्च होते हैं।
8). पक्षियों द्वाराहावड़ा ब्रिज पर की जाने वाली गन्दगी से कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट काफी परेशान है क्योंकि इससे ब्रिज की रासायनिक क्षति हो रही है। इसलिए ट्रस्ट हर साल ब्रिज से पक्षियों की गन्दगी हटाने के लिए 5 लाख का कॉन्ट्रैक्ट देता है।
9). माना जाता है कि हावड़ा ब्रिज की कोई चाभी थी जिसे ब्रिटिश कम्पनी ने भारत को नहीं दिया। पुराने ज़माने में इस चाभी से ब्रिज को बड़े समुद्री जहाजों के लिए दो भागों में खोला जाता था। लेकिन इन बातों का कोई प्रमाण नहीं है।
10). एक और मान्यता के अनुसारहावड़ा ब्रिज के इंजीनियर ने कहा था कि यह पुल 12 बजे नष्ट होगा। हालांकि उन्होनें तारीख या AM-PM नहीं बताया था। इसलिए हर दिन दोपहर के 12 बजे और रात के 12 बजे इस पुल को बंद कर दिया जाता है। हालाँकि यह बात भी गलत है।
11). इंजीनियरों का कहना है कि हावड़ा ब्रिज के खंभों को अब जंग लगने लगा है। और इस जंग की वजह है पान। इस पुल से रोजाना लाखों लोग पान चबाते हुए गुजरते हैं और थूकते हुए निकल जाते हैं। इंजीनियर बताते हैं कि जिन खंभों पर पुल टिका है उनमें से कुछ के आधार की मोटाई तो पिछले तीन साल में आधी रह गई है।
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