हाजी अली दरगाह का इतिहास व जानकारी | Haji Ali Dargah in Hindi

Haji Ali Dargah / हाजी अली दरगाह महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित एक मशहूर दरगाह है। यह मुस्लिम और हिन्दू दोनों धर्मों के साथ-साथ अन्य धर्म के लोगों के लिए भी धार्मिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस दरगाह में सूफी संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र स्थित है। दरगाह से युक्त ये मस्जिद मुंबई के वर्ली समुद्र तट के छोटे द्वीप पर स्थित है।

हाजी अली दरगाह का इतिहास व जानकारी | Haji Ali Dargah in Hindi

हाजी अली दरगाह, मुंबई – Haji Ali Dargah, Mumbai Maharashtra 

शहर के मध्य में स्थित ये पवित्र दरगाह मुंबई की मान्यता प्राप्त सरहद है। सुन्नी समूह के बरेलवी संप्रदाय द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती है। यहां हर धर्म के लोग आकर अपनी मनोकामना का धागा बांधकर जाते हैं। उन्हें यह उम्मीद होती है कि यहां मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है।

यह दरगाह वर्ली की खाड़ी से 500 गज की दूरी पर समुद्र में एक छोटे द्वीप पर स्थित है। यह शहर की सीमा महालक्ष्मी से एक संकरे सेतुमार्ग द्वारा जुड़ा है। इस पुल में कोई रेलिंग नहीं है किंतु ज्वार के आने पर रस्सी बांध दी जाती है। इसलिए दरगाह तक तभी जाया जा सकता है जबकि समुद्र का जलस्तर कम हो। यह 500 गज की यात्रा जिसके दोनों तरफ समुद्र हो यहां की यात्रा की मुख्य आकर्षण है।

सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी का जीवन – Sayyed Peer Haji Ali Shah Bukhari Wiki

एक पैराणिक कथा के अनुसार उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रांत में हाजी अली नाम का व्यक्ति रहता था। वह बहुत ही धनी और व्यापारी परिवार में जन्मे थे। एक बार की बात है, हाजी अली भ्रमण करने के लिए निकले। वह भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे तथा मुंबई जा कर बस गए।

कुछ दिन बीत जाने के बाद वहां हाजी अली का भाई आया और उसने उन्हें घर लौटने को कहा परंतु हाजी अली नहीं लौटे। उन्होंने भाई के हाथों अपनी माता के लिए एक पत्र भेजा। पत्र में लिखा था “मैं अब ना लौटूंगा यहीं रहकर इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार करूंगा।”

इसके बाद पीर हाजी अली बुखारी (Peer Haji Ali Bukhari) ने मुंबई में रहकर लोगों को इस्लाम की शिक्षा दी। कुछ समय के बाद जब उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो उन्होंने अपने अनुयायियों को बुलाया और कहा कि मृत्यु के बाद मेरे शव को किसी कब्रिस्तान में दफनाने की जगह उसे समुद्र में बहा देना और जिस जगह लोगों को उनका ताबूत मिले उसे वहीं दफना दिया जाए।

हाजी अली (Haji Ali) के अनुयायियों ने उनकी इस बात को माना और उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को ताबूत में बंद कर समुद्र में बहा दिया। यह एक चमत्कार है कि वह ताबूत नह्कार वापस मुंबई की तरफ आ गया और समुद्र में उठी चट्टानों के एक छोटे से टीले पर रुक गया। इसके बाद हाजी अली के अनुयायियों ने उस स्थान पर हाजी अली का दरगाह बना दिया। कई लोग यह भी मानते हैं कि संत हाजी अली की समुद्र में डूब जाने से मृत्यु हो गई थी और उसी जगह उनके अनुयायियों ने इस खूबसूरत दरगाह का निर्माण कर दिया।

हालाँकि कई लोगो का मानना हैं की मक्का की यात्रा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी, उनका अंतिम संस्कार भी वहीं किया जाना था लेकिन माना जाता है कि अरब सागर में तैरते हुए उनके शव का ताबूत मुंबई आ पहुंचा था।

हाजी अली दरगाह का इतिहास – Haji Ali Dargah History in Hindi

हाजी अली की दरगाह की स्थापना 1631 ई में की गयी थी । इसका निर्माण हाजी उसमान रनजीकर, जो तीर्थयात्रियों को मक्का ले जाने वाले जहाज के मालिक थे, ने कराया था। समुद्री नमकीन हवाओं के कारण इस इमारत को काफी नुकसान हुआ है। सन 1960 में आखिरी बार दरगाह का सुधार कार्य हुआ था। सुन्नी समुदाय के लोग इस मजार की देख-रेख करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि हाजी अली शाह बुखारी के निधन के पश्चात उनकी बहन ने उनके अधूरे स्वप्न को पूरा करने का बीड़ा उठा लिया था। वह भी इस्लाम के प्रसार-प्रचार में लीन हो गई थीं। वर्ली की खाड़ी से कुछ दूरी पर उनका मकबरा भी स्थित है।

हाजी अली दरगाह की जानकारी – Haji Ali Dargah Information in Hindi

हाजी अली की यह दरगाह 4500 वर्ग मीटर तक फैली हुई है, जिसमें 85 फीट ऊंचा मीनार स्थित है। दरगाह के मुख्य भाग तक पहुंचने से पहले काफी लंबा मार्ग तय करना होता है। दरगाह के भीतर हाजी अली शाह बुखारी का मकबरा लाल और हरे रंग की चादर से ढका रहता है।

यह दरगाह करीब 400 साल पुरानी है, जिसकी कई बार मरम्मत की जा चुकी है। मुख्य परिसर में पहुंचने पर आपको रंगीन कांच की नक्काशी से लैस स्तंभ नजर आएंगे, जिन पर अल्लाह के 99 नाम लिखे हुए हैं। इसके अलावा इस दरगाह के चारों ओर चांदी के खंबों का दायरा बना हुआ है, जो बेहद खूबसूरत हैं।

अन्य दरगाहों की तरह यहां भी महिलाओं और पुरुषों के प्रार्थना करने के लिए अलग-अलग स्थान हैं। कुल-मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह मुस्लिम नक्काशी और कलाकारी का एक आकर्षक नमूना है। दरगाह तक पहुंचने के लिए जिस मार्ग को तय करना होता है वह दुकानों से भरा है, जहां आपको दरगाह पर चढ़ाने वाली चादर से लेकर फूल और अन्य सभी समान उपलब्ध हो जाएंगे। प्रत्येक आगंतुक  मस्जिद में प्रवेश से पहले अपने जूते निकालते हैं।

सप्ताह के प्रत्येक शुक्रवार को हाजी अली की दरगाह पर सूफी संगीत और कव्वाली की महफिल सजती है। आंकड़ों के अनुसार बृहस्पतिवार और शुक्रवार को यहां धर्मों के बंधन से मुक्त करीब 50 हजार से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं, जिनमें देश-विदेश से आए पर्यटक भी शामिल हैं।

चमत्कार 

पीर हाजी अली शाह बुखारी के जीवन के दौरान और मृत्यू के बाद कई सारे चमत्कार घटित हुए। जैसाकि कुरान-ए-पाक में कहा गया है कि जो पवित्र संत अल्लाह की राह में कुर्बान हो जाते हैं उन्हें कभी मृत नहीं कहना चाहिए। वे क ब्र में जिंदा रहते हैं और खाना तथा अपनी आवश्यक चीजे अल्लाह से प्राप्त करते हैं। विश्वनीय सूत्रों के अनुसार पीर बाबा कुतुबे -ए-अकबर थे।

26 जुलाई 2005 को आयी भयंकर बाढ़ में मुंबई के ज्यादातर हिस्सों में इमारतों को भारी नुकसान हुआ किंतु दरगाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। इसी तरह सुनामी के दौरान जब लाखों लोग मारे गये थे तो दरगाह जो कि समुद्र के मध्य में स्थित है को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।


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2 thoughts on “हाजी अली दरगाह का इतिहास व जानकारी | Haji Ali Dargah in Hindi”

  1. sandeep paswan

    महा राजा लाखन पासी किले का इतिहास पर पोस्ट लिखे

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