फ़्रान्स का इतिहास, क्रांति, पर्यटन स्थल | France Information in Hindi

France / फ़्रान्स, (आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ़ फ्रांस) पश्चिम यूरोप में स्थित एक देश है। फ़्राँस की राजधानी पेरिस है। फ्रांस ऐसा देश जहां पर दुनिया भर से सबसे ज्यादा लोगो घूमने जाते हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जो उत्तर में बेल्जियम, लक्सेंबर्ग, पूर्व में जर्मनी, स्विट्सरलैंड, इटली, दक्षिण-पश्चिम में स्पेन, पश्चिम में ऐटलैंटिक सागर, दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंगलिश चैनल द्वारा घिरा है। इस प्रकार यह तीन ओर सागरों से घिरा है। फ़्राँस कई क्षेत्रों और विभागों में विभाजित है। फ़्राँस यूरोपीय संघ का एक संस्थापक सदस्य भी है।

फ़्रान्स का इतिहास, महत्वपूर्ण जानकारी, पर्यटन स्थल | France Information In Hindiफ़्रान्स के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी  – France Information in Hindi

फ़्राँस संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य होने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्यों में से एक है। फ़्राँस की सीमा से लगी हुई दो पर्वत शृंखलाएँ हैं, पूर्व में आल्प्स और दक्षिण में प्रेनिस। फ़्राँस से प्रवाहित होने वाली कई नदियों में से दो नदियाँ प्रमुख हैं, सीन और लोयर। फ़्राँस के उत्तर और पश्चिम में निचली पहाड़ियाँ और नदी घाटियाँ हैं।

कई शताब्दियों तक फ्रांस मजबूत आर्थिक, सांस्कृतिक, सैनिक और राजनीतिक प्रभाव स्व युक्त प्रमुख शक्ति रहा है। 17 वीं सदी के अंत से दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है। 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान फ्रांस ने पश्चिमी अफ़्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में एक बहुत बड़ा औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित किया था। यह संयुक्त राष्ट्र संघ का भी संस्थापक सदस्य होने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्यों में से एक है। इसके अलावा यह समूह-8 और नाटो का सदस्य भी है। परमाणु शक्ति संपन्न इस देश के पास सक्रिय परमाणु युद्ध हथियार और परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं।

यह देश समतल एवं साथ-साथ पहाड़ी भी है। उत्तर में स्थित पैरिस तथा ऐक्विटेन बेसिन बृहद् मैदान के ही भाग हैं। पश्चिम की ओर ब्रिटैनी, यूरोप की उत्तर-पश्चिमी, उच्च पेटीवाली भूमि से संबंधित है। पूर्व की ओर प्राचीन चट्टानों के भूखंडों का क्रम मिलता है, जैसे मध्य का पठार तथा आर्डेन (Ardennes) पर्वत। इसका दक्षिण-पूर्वी भाग पहाड़ी व ऊबड़ खाबड़ है जो 6,000 फुट से भी अधिक ऊँचा है।

फ्रांस में अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग मौसम का प्रभाव पाया जाता है। उत्तर और पश्चिम में अंध महासागर का मौसम पर गहरा प्रभाव है, जिसकी वजह से क्षेत्र का तापमान साल भर एक जैसा रहता है। पूर्व में सर्दियों ठंडी और मौसम अच्छा है। गर्मी गर्म और तूफानी रहती है। दक्षिण में गर्मी गर्म और सूखी रहती है। सर्दियों का मौसम ठंडा और नमी वाला रहता है।

यहाँ कृषि प्रमुख उद्योग है। यूरोप में कृषिगत वस्तुओं के निर्यात में नीदरलैंड्स के बाद इसका ही स्थान है। कृषि योग्य क्षेत्र अधिकांश उत्तरी भाग में स्थित है। कृषि में गेहूँ, जौ, जई, चुकंदर, पटुआ, आलू तथा अंगूर का स्थान प्रमुख है।

कोयला, लोरेन तथा मध्यवर्ती जिलों में मिलता है। कोयला कम होते हुए भी फ्रांस को कोयले में विश्व में तीसरा स्थान प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यहाँ ऐंटिमनी, बॉक्साइट, मैग्नीशियम, पाइराइट तथा टंग्स्टन, नमक, पोटाश, फ्लोरस्पार भी मिलता है। लोरेन तथा मध्यवर्तीय भाग में स्थित लौह इस्पात उद्योग सबसे प्रमुख उद्योग है। उद्योगों के लिए पिरेनीज़ तथा ऐल्प्स से पर्याप्त विद्युत् प्राप्त हो जाती है। लील (Lille), ऐल्सैस तथा नॉरमैंडी में बाहर से रूई मँगाकर सूती कपड़े बनाए जाते हैं।

फ्राँस का इतिहास  – France History in Hindi

फ़्राँस शब्द लातीनी भाषा के फ्रैन्किया से आया है, जिसका अर्थ फ्रांक्स की भूमि या फ्रांकलैंड है। आधुनिक फ़्राँस की सीमा प्राचीन गौल की सीमा के समान ही है। प्राचीन गौल में सेल्टिक गॉल निवास करते थे। गौल पर पहली शताब्दी में रोम के जूलिअस सीज़र ने जीत हासिल की थी। तदोपरांत गौल ने रोमन भाषा और रोमन संस्कृति को अपनाया। ईसाइयत दूसरी शताब्दी और तीसरी शताब्दी में पहुँची और चौथी और पाँचवीं शताब्दी तक स्थापित हो गई। चौथी सदी में जर्मनिक जनजाति, मुख्यतः फ्रैंक्स ने गौल पर कब्ज़ा जमाया। इस से फ़्राँसिस नाम दिखाई दिया।

आधुनिक नाम “फ़्राँस” पेरिस के आसपास के फ़्राँस के कापेतियन राजाओं के नाम से आता है। फ्रैंक्स यूरोप की पहली जनजाति थी, जिसने रोमन साम्राज्य के पतन के बाद आरियानिज्म को अपनाने की बजाए कैथोलिक ईसाई धर्म को स्वीकार किया। वर्दन संधि (843) के बाद शारलेमेग्ने का साम्राज्य तीन भागों में विभाजित हो गया। इनमें सबसे बड़ा क्षेत्र पश्चिमी फ़्राँसिया था, जो आज के फ़्राँस के बराबर था। ह्यूग कापेट के फ़्राँस के राजा बनने तक कारोलिंगियन राजवंश ने 987 तक फ़्राँस पर राज किया। उनके वंशजों ने अनेक युद्धों और पूर्वजों की विरासत के साथ देश को एकीकृत किया। 17 वीं सदी और लुई चौदहवें के शासनकाल के दौरान फ़्राँस सबसे अधिक शक्तिशाली था। फ़्राँस के डूप्ले का दुभाषिया आनन्द रंग पिल्लई था। फ़्राँस का एक नौसैनिक अधिकारी काउंत डी एक था। यह फ़्राँस के उस जहाजी बेड़े का कमाण्डर था, जिस पर सवार होकर कर्नाटक में अंग्रेज़ों और फ़्राँसीसियों के बीच हो रहे युद्ध के आख़िरी चरण में 1758 ई. में काउंत दि लाली और फ़्राँसीसी सेना भारत आई थी।

फ्रांस में फ़्रांसीसी क्रांति से पहले 1789 तक राजशाही मौजूद थी। राजा लुई चौदहवें और उनकी पत्नी, मेरी अन्तोइनेत्ते 1793 में मार डाला गया। हजारों की संख्या में अन्य फ्रांसीसी नागरिक भी मारे गए थे। नेपोलियन बोनापार्ट ने 1799 में गणतंत्र पर नियंत्रण ले लिया। बाद में उन्होंने खुद को पहले साम्राज्य (1804-1814) का महाराज बनाया। उसकी सेनाओं ने महाद्वीपीय यूरोप के अधिकांश भाग पर विजय प्राप्त की।

1815 में वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन के अंतिम हार के बाद, दूसरी राजशाही आई। बाद में लुई-नेपोलियन बोनापार्ट ने 1852 में द्वितीय साम्राज्य बनाया। लुई-नेपोलियन को 1870 के फ्रांसीसी जर्मन युद्ध में हार के बाद हटा दिया गया था। उसके शासन का स्थान तीसरे गणराज्य ने लिया।

फ्रांस के 18 वीं और 19 वीं सदी में एक बड़ा औपनिवेशिक साम्राज्य बनाया। इस साम्राज्य में पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्से भी शामिल थे। इन क्षेत्रों की संस्कृति और राजनीति फ्रांस के प्रभाव में रही। कई भूतपूर्व उपनिवेशों में फ्रांसीसी भाषा आधिकारिक भाषा हैं।

प्रथम महायुद्ध (1914-18) में फ्रांस को ब्रिटेन तथा अमरीका के साथ मिलकर जर्मनी, आस्ट्रिया तथा तुर्की से युद्ध में संलग्न होना पड़ा। विजय के परिणामस्वरूप यद्यपि अलसेस तथा लोरेन का औद्योगिक क्षेत्र पुन: फ्रांस को मिल गया, फिर भी लड़ाई मुख्यत: फ्रेंच भूमि पर ही लड़ी गई थी, इसलिए उसकी इतनी अधिक बर्वादी हुई कि वर्षों तक उसकी आर्थिक अवस्था सुधर न सकी। फरवरी, 1934 में दक्षिणपंथियों द्वारा किए गए व्यापक उपद्रवों के कारण वामपंथियों को अपनी ताकत बढ़ाने का अवसर मिल गया। सन्‌ 1936 के चुनाव में उन्हें सफलता मिली, जिससे लियाँ ब्लुम के नेतृत्व में तथाकथित ‘जनता की सरकार’ स्थापित की जा सकी। ब्लुम ने युद्ध का सामान तैयार करनेवाले कितने ही उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और कारखानों में 40 घंटे का सप्ताह अनिवार्य कर दिया। अनुदार या रूढ़िवादी दलों का विरोध बढ़ जाने पर ब्लुम को पदत्याग कर देना पड़ा।

एड्डअर्ड दलादिए के नेतृत्व में सन्‌ 1938 में जो नई सरकार बनी उसका समर्थन, हिटलरी कारनामों से आसन्न संकट के कारण वामपंथियों ने भी किया। सितंबर, 1939 में ब्रिटेन के साथ साथ फ्रांस ने भी जर्मनी से युद्ध की घोषणा कर दी। 1940 की गर्मियों में जब जर्मन सेना ने बेल्जियम को ध्वस्त करते हुए पेरिस की ओर अग्रगमन किया तो मार्शल पेताँ की सरकार ने जर्मनी से संधि कर ली। फिर भी फ्रांस के बाहर जर्मनों का विरोध जारी रहा और जनरल डी गॉल के नेतृत्व में अस्थायी सरकार की स्थापना की गई। पेरिस की उन्मुक्ति के बाद डी गॉल की सरकार एलजीयर्स से उठकर पैरिस चली गई और ब्रिटेन, अमरीका आदि ने सरकारी तौर से उसे मान्यता प्रदान कर दी।

युद्ध समाप्त होने पर यद्यपि फ्रांस की आर्थिक स्थिति जर्जर हो चुकी थी, फिर भी सक्रिय उद्योग एवं अमरीका की सहायता से उसमें काफी सुधार हो गया। कार्यपालिका के अधिकारों के संबंध में मतभेद हो जाने से 1946 में डी गॉल ने पदत्याग कर दिया। दिसंबर में जो चतुर्थ गणतंत्र स्थापित हुआ, उसमें वही सब कमजोरियाँ थीं जो तृतीय गणतंत्र में थीं। सारा अधिकार राष्ट्रसभा के हाथ में केंद्रित था और विविध राजनीतिक दलों में एकता न हो सकने के कारण कोई भी मंत्रिमंडल स्थायित्व प्राप्त करने में असमर्थ रहा। इसी बीच उत्तर अफ्रीका तथा हिंदचीन में फ्रेंच शासन के विरुद्ध विद्रोह की व्यापकता बढ़ती गई। तब जनरल डी गॉल को पुन: प्रधान मंत्री के पद पर प्रतिष्ठित किया गया। नया संविधान बनाया गया जिसमें कार्यपालिका एवं राष्ट्रपति के हाथ मजबूत करने के लिए विशिष्ट अधिकार दिए गए। मतदाताओं ने अत्यधिक बहुमत से इसका समर्थन किया। नए चुनाव के बाद दिसंबर 1958 में डी गोल के नेतृत्व में पाँचवें गणतंत्र की स्थापना हुई। सन्‌ 1961 तक फ्रांस ने अपने अधीनस्थ कितने ही देशों को स्वतंत्र कर दिया। वे अब संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बन गए हैं।

France ki kranti Note in Hindi

1789 की फ्रांस की क्रांति तत्कालीन राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक कारणों से हुआ। इसमें सबसे बड़ा कारण राजतन्त्र था, जो मनमानी ढंग से राज्य को चलाया करते थे। न कोई प्रशासनिक व्यवस्था, न कोई कानून। राजा के हाथों में सारी शक्ति केंद्रित थी। राजा अपने आप को ईश्वर का प्रतिनिधित्व मानता था। उनकी इक्षा कानून होती थी। इन घटनाओ के कारण फ़्रांस के दार्शनिक, विचारक और लेखकों ने भी तत्कालीन व्यवस्था की कड़ी निंदा की, जिसने 1789 की फ़्रांस की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

फ्रांस में विषम परिस्थिति होते हुए भी संभवतः क्रांति नहीं होती अगर शासन का बागडोर एक योग्य राजा के हाथों में होती। लुई सोलहवाँ मात्र 20 वर्ष की आयु में 1774 में गद्दी पर बैठा, उसमे प्रशासनिक अनुभव नहीं था। इस कारण क्रांतिकारियों को बल मिला। 14 जुलाई, 1789 ई. को क्रांतिकारियों ने बास्तील के कारागृह फाटक को तोड़कर बंदियों को मुक्त कर दिया। तब से 14 जुलाई को फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का नारा फ्रांस की राज्याक्रांति की देन है। फ्रांसीसी क्रांति में सबसे अहम योगदान वाल्टे‍यर, मौटेस्यू एवं रूसो का था।

फ्रांस के पर्यटन स्थल – Tourist Places in France

पेरिस

पेरिस फ़्रांस देश का सबसे बड़ा शहर और उसकी राजधानी है । इसे दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत शहरों में से एक और दुनिया की फ़ैशन और ग्लैमर राजधानी माना जाता है । यहीं पर दुनिया की सबसे मशहूर मीनार आइफ़िल टावर स्थित है ।

एफ़िल टॉवर

एफ़िल टॉवर फ़्राँस की राजधानी पैरिस में स्थित एक लौह टावर है। इसका निर्माण 1887-1889 में शैम्प-दे-मार्स में सीन नदी के तट पर पैरिस में हुआ था। यह टावर विश्व में उल्लेखनीय निर्माणों में से एक और फ़्रांस की संस्कृति का प्रतीक है।

फ्रांस के बारे में रोचक बाते जानने के लिए यहां से पड़े >> Interesting Facts about France In Hindi

और अधिक लेख –

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *