Chand Baori / चाँद बावड़ी एक सीढ़ीदार कुआँ है, जो राजस्थान में जयपुर के निकट दौसा ज़िले के आभानेरी (abhaneri) नामक ग्राम में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आभानेरी को राजा चांद ने बसाया था। चाँद बावड़ी ‘हर्षत माता मंदिर’ के सामने स्थित है और भारत ही नहीं, अपितु विश्व के सबसे बड़े सीढ़ीदार और गहरे कुओं में से एक है। इस बावड़ी का निर्माण आज से करीब 1200 साल पहले यानि 9वीं शताब्दी के आसपास किया गया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस बावड़ी का निर्माण भूतों ने किया है।
चाँद बावड़ी राजस्थान – Chand Baori Rajasthan History & Story in Hindi
प्राचीन काल में वास्तुकारों और वहां के लोगों द्वारा जल संरक्षण और वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बनाई गई इस प्रकार की कई बावड़ियां आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनमें काफी पानी जमा रहता है। यह पानी क्षेत्र के निवासियों के वार्षिक उपयोग के काम में आता है। चांद बावड़ी इन सभी बावड़ियों में सबसे बड़ी और लोकप्रिय है। इस बावड़ी के अंदर 3,500 सीढ़ियां हैं जो नीचे की ओर जाती हैं। उस समय अगर किसी भी व्यक्ति को बावड़ी के भीतर से पानी निकालना होता था तो उसे पहले साढ़े तीन हजार सीढ़ियां नीचे जाना पड़ता था।
यह बावड़ी हर्षत माता मंदिर (Harshat Mata Temple) के समीप स्थित है। ऐसा कहा जाता है चांद बावड़ी का हर्षत माता मंदिर से कोई धार्मिक रिश्ता भी है, जिसके चलते इस मंदिर के ठीक सामने इस बावड़ी का निर्माण करवाया गया। 9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावडी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चाँद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था, और उन्हीं के नाम पर इस बावडी का नाम चाँद बावडी पडा।
दुनिया की सबसे गहरी यह बावडी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौडी है तथा इस बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावडी 100 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 3500 सीढियाँ (अनुमानित) हैं।
इस मंदिर के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी में लगभग 33 करोड़ देवी देवताओं के चित्र बनाए गए थे। चांद बावड़ी के अंदर बनी आकर्षक सीढि़यां कलात्मक और पुरातत्व कला का शानदार उदाहरण है। गुप्त युग के पश्चात तथा आरंभिक मध्यकालीन स्मारकों के लिए प्रसिद्ध आभानेरी पुरातात्विक महत्व का प्राचीन गांव है। चाँदनी रात में एकदम दूधिया सफ़ेद रंग की तरह दिखाई देने वाली यह बावडी अँधेरे-उजाले की बावडी नाम से भी प्रसिद्ध है।
इस क्षेत्र की जलवायु रूखी है और उस समय यहां पानी की बहुत कमी रहती थी, तभी इतनी गहरी बावड़ी का निर्माण करवाया गया। इस बावड़ी में जमा किया गया पानी एक साल तक स्थानीय लोगों की जरूरतें पूरी करता था।
जब आप चांद बावड़ी की गहराई पर जाने लगेंगे तो आप तापमान में भी 5-6 डिग्री की कमी महसूस करने लगेंगे। कहा जाता है मॉनसून के समय में इस बावड़ी में ऊपर तक पानी भर जाता है।
बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिसासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। इस बावड़ी में एक सुरंग भी है जिसकी लंबाई लगभग 17 कि.मी. है जो पास ही स्थित गांव भांडारेज में निकलती है। कहा जाता है कि युद्ध के समय राजा एवं उनके सैनिकों द्वारा इस सुरंग का इस्तेमाल किया जाता था।
मंदिर के वहां के एक पुजारी के अनुसार मंदिर में छह फुट की नीलम के पत्थर की हर्षत माता की मूर्ति 1968 में चोरी हो गई। किंवदंती है कि हर्षत माता गांव में आने वाले संकट के बारे में पहले ही चेतावनी दे देती थीं, जिससे गांव वाले सतर्क हो जाते और माता उनकी हमेशा रक्षा करती थीं। इसे समृद्धि की देवी भी कहा जाता है।
बताया जाता है कि 1021-26 के काल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया तथा सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया था। खंडित मूर्तियां आज भी मंदिर परिसर तथा चांद बावड़ी में सुरक्षित रखी हुई है। जयपुर के राजा ने 18 वीं शताब्दी में इसका कायाकल्प करवाया था। इसी तरह चांद बावड़ी का निर्माण भी राजा चांद ने 8 या 9वीं शताब्दी में कराया था।
अब इस जगह की पूरी देख रेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है और इसी के द्वारा इस जगह को प्रबंधित किया जाता है। यहाँ स्थित स्मारक को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों को किसी भी तरह का कोई भी शुल्क नहीं देना होता है और ये पूरी तरह मुफ्त है । इस स्थान को कई फिल्मों में भी दिखाया गया है जिनमें “द फॉल” और द डार्क नाईट राइजिज प्रमुख है।
इस बावड़ी का निर्माण भूतों ने किया है। – Chand Baori Haunted in Hindi
चाँद बावड़ी के बारे में एक कथा प्रसिद्ध हैं जिसमे कहा जाता है कि ठाकुर जयसिंह घोड़े पर सवार होकर जोधपुर से रणसी गांव की ओर अपने सेवकों के साथ वहां के प्रसिद्ध मेला गणगोर को देखने निकले। राह में सेवकों के घोड़े काफी आगे निकल गये और ठाकुर जयसिंह पीछे छूट गए। राजा का घोड़ा काफी थक चुका था, उसे प्यास भी लगी थी। रास्ते में एक तालाब को देखकर ठाकुर जयसिंह ने अपने घोड़े को रोका और नीचे उतरकर घोड़े को पानी पिलाने के लिए उस तालाब के पास पहुंचे। उस समय आधी रात बीत चुकी थी। घोड़ा पानी पीने के लिए ज्यों ही आगे बढ़ा, जयसिंह को तालाब के किनारे एक आकृति दिखाई दी। वह आकृति तुरंत ही आदमी के रूप में बदल गई। ठाकुर साहब को बहुत आश्चर्य हुआ।
उस आदमी ने कहा- मैं भूत हूँ। किसी शाप के कारण इस तालाब को छू नहीं सकता। मुझे भी जोर से प्यास लगी है, पानी पिलाइये। ठाकुर जयसिंह ने निर्भीकता पूर्वक उस आत्मा को पानी पिला दिया। ठाकुर की निर्भीकता एवं दयालुता को देखकर भूत ने उनकी अधीनता स्वीकारते हुए कहा- आप जो भी आदेश देंगे, उसे मैं पूरा करूँगा। ठाकुर जयसिंह ने कहा मेरे लिए एक गढ़, महल तथा पानी की बावड़ी के साथ-साथ एक सुन्दर-सा शहर तुम्हें बनाना होगा।
भूत ने कहा- मुझे आपका आदेश स्वीकार है, किन्तु मैं यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं करूंगा। आप दिन भर जो भी निर्माण कराएंगे, वह रात में सौ गुना अधिक बढ़ जाया करेगा, किन्तु आप इस रहस्य को किसी को नहीं बताएंगे। जिस दिन भी यह भेद खुल जाएगा, उसी दिन मेरा काम खत्म हो जाएगा। संवत् 1600 में निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। अगले ही दिन से महल एवं बावड़ी भूत बावड़ी की इमारतें बनने लगीं। पूरे गांव में कौतुहल छा गया। रात में पत्थर ठोकने की रहस्यमय आवाजें आने लगीं, दिन-प्रतिदिन निर्माण कार्य त्वरित गति से आगे बढ़ता गया।
एक दिन जब जयसिंह की पत्नी ने महल व बावड़ी के विस्तार का रहस्य पूछा तो ठाकुर ने उन्हें भी बताने से साफ-साफ इन्कार कर दिया। इस पर रानी रूठ गई और अनशन शुरू कर दिया। कई दिनों तक अनशन करने के कारण रानी की दशा बिगड़ने लगी। रानी को मरणासन्न देखकर ठाकुर ने उसे सारा रहस्य बता दिया। ठाकुर के ऐसा करते ही उसी रात से सारा निर्माण कार्य रूक गया। इसके परिणामस्वरूप सात मंजिला महल केवल दो मंजिला ही बना रह गया और पानी की बावड़ी का अंतिम हिस्सा, दीवार भी अधूरी ही रह गई जो आज भी ज्यों का त्यों ही है।
कैसे पहुंचे और कहा ठहरे – Chand Baori Information
आभानेरी के महत्त्व को बढ़ाने के लिए ‘भारतीय पुरातत्त्व विभाग’ विदेशी पर्यटकों को यहाँ लाने के लिए अपने प्रयास कर रहा है। विभाग की ओर से यहाँ हर वर्ष ‘आभानेरी महोत्सव’ के नाम से तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें राजस्थान सहित देशभर के कलाकार यहाँ अपनी कला की प्रस्तुति देते हैं। यही नहीं विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए यहाँ विदेशी दूब युक्त पार्क भी बनाया गया है। इसकी उचित देखभाल तथा रखरखाव के लिए यहाँ विभाग ने अपने कर्मचारी भी तैनात कर रखे हैं।
विदेशी पर्यटकों के आभानेरी के प्रति बढ़ते लगाव के कारण अब यहाँ उनके ठहरने के लिए सुविधाएं भी बढ़ने लगी हैं। यहाँ आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए होटल भी बन गए हैं, जिसमें इन्हें सभी प्रकार की सुविधाएँ दी जा रही हैं। यही नहीं अब तो होटल में आने वाले विदेशी पर्यटक यहाँ हाथियों पर पोलो भी खेल रहे हैं।
जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-11) पर स्थित दौसा जिले का ह्रदय कहे जाने वाले सिकंदरा कस्बे से उत्तर की ओर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आभानेरी गाँव। यहाँ पहुँचाने के देश के सभी हिस्सों से वाहन मिल जायेंगे।
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