ब्लैक होल की जानकारी, इतिहास | Black Hole Information History in Hindi

Black Hole / ब्लैक होल ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है। ब्लैक होल में एक-तरफी सतह होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है, जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता। इसे “ब्लैक (काला)” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी रिफ्लेक्ट (प्रतिबिंबित) नहीं करता, थर्मोडाइनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी) में ठीक एक आदर्श ब्लैक-बॉडी की तरह। ब्लैक होल का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। इसके बारे में यहां तक कहा गया कि यह स्पेस में ऐसा •ांवर गर्त है, जिसमें फंस कर हम नीचे से किसी अन्य सृष्टि में पहुंच सकते हैं। 

ब्लैक होल की जानकारी और इतिहास | Black Hole Information in Hindiब्लैक होल की जानकारी – Black Hole Information in Hindi

जब कोई विशाल तारा मरता है, तो अपने भीतर की ओर वह गिर पड़ता है। गिरते-गिरते यह इतना सिकुड़ जाता है और इतना भारी हो जाता है कि सबकुछ अपने भीतर समेटने लगता है। इसकी ओर जाती गैस तपने लगती है और एक्स किरण छोड़ने लगती है। बस इसी से वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल के होने का अनुमान लगाया। हालांकि अभी तक उपलब्ध किसी थ्योरी या सिद्धांत से इसे पूरी तरह समझना असंभव रहा है। लेकिन  ब्लैक होल स्पेस में वो जगह है जहाँ भौतिक विज्ञान का कोई नियम काम नहीं करता. इसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बहुत शक्तिशाली होता है।

अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। एक ब्लैक होल का पता तारों के उस समूह की गति पर नजर रख कर लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से का चक्कर लगाते हैं। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे से आप एक अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस को गिरते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, यदि प्रकृति की हमारी समझ पूर्णतया गलत साबित न हो जाये तो, हमारे ब्रह्मांड में ब्लैक होल का अस्तित्व मौजूद है।

सैद्धांतिक रूप से, कोई भी मात्रा में तत्त्व (matter) एक ब्लैक होल बन सकता है यदि वह इतनी जगह के भीतर संकुचित हो जाय जिसकी त्रिज्या अपनी समतुल्य स्च्वार्ज्स्चिल्ड त्रिज्या के बराबर हो। इसके अनुसार हमारे सूर्य का द्रव्यमान 3 कि. मी. की त्रिज्या तथा धरती का 9 मि.मी. के अन्दर होने पर यह ब्लैक होल में परिवर्तित हो सकते हैं। हालांकि व्यावहारिक रूप में इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन आपजात्य दबाव के विपरीत न तो पृथ्वी और न ही सूरज में आवश्यक द्रव्यमान है और इसलिए न ही आवश्यक गुरुत्वाकर्षण बल है। इन दबावों से उबरकर और अधिक संकुचित होने में सक्षम होने के लिए एक तारे के लिए आवश्यक न्यूनतम द्रव्यमान तोलमन – ओप्पेन्हेइमेर – वोल्कोफ्फ़ द्वारा प्रस्तावित हद है, जो लगभग तीन सौर द्रव्यमान है।

Types of Black Holes in Hindi

ब्लैक होल बहुत छोटे भी हो सकते हैं और बहुत बड़े भी। वैज्ञानिकों का मानना है कि छोटे ब्लैक होल्स एक एटम के बराबर भी हो सकते हैं, लेकिन इनका द्रव्यमान एक बड़े पहाड़ इतना होता है। एक दूसरे प्रकार का ब्लैक होल भी होता है, जिसे स्टेलर कहते हैं। इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 20 गुना होता है। पृथ्वी के गैलेक्सी में इस तरह के द्रव्यमान वाले ढेर सारे स्टेलर ब्लैक होल्स होते हैं। पृथ्वी के गैलेक्सी को मिल्की वे कहते हैं। इस तरह के ब्लैक होल्स को ‘सुपरमैसिव’ कहते हैं। इन ब्लैक होल्स का द्रव्यमान एक मिलियन सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है। वैज्ञानिकों ने इस बात का खुलासा किया है कि प्रत्यके बड़े गैलेक्सी के केंद्र में सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है। मिल्की वे गैलेक्सी के केंद्र में जो सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है, उसे सैगिटेरियस ए कहते हैं। इसका द्रव्यमान लगभग चार मिलियंस सूर्य के बराबर होता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि छोटे ब्लैक होल्स का निर्माण ब्रह्मांड के शुरुआत के साथ ही संभव हो सका। स्टेलर ब्लैक होल्स का निर्माण तब होता है, जब केंद्र का बहुत बड़ा तारा खुद से इसके अंदर गिर जाता है या नष्ट हो जाता है। इस घटना को सुपरनोवा कहते हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि सुपरमैसिव ब्लैक होल्स त•ाी बने थे, जब गैलेक्सी का निर्माण हुआ था।

ब्लैक होल को देखा नहीं जा सकता, क्योंकि तीव्र गुरुत्वाकर्षण ब्लैक होल के मध्य में प्रकाश को तेजी से खिंचता है। किस तरह से तीव्र गुरुत्वाकर्षण ब्लैक होल के चारों ओर गैस और तारों को प्र•ाावित करता है, वैज्ञानिकों के लिए इसे देख पाना असंभव है। वैज्ञानिक तारों के अध्ययन से इस बात का भी पता लगा सकते हैं कि किस तरह से तारे ब्लैक होल के चारों ओर उड़ते हैं। जब ब्लैक होल और तारे एक-दूसरे के करीब होते हैं, तो तीव्र प्रकाश उर्जा का निर्माण होता है। हालांकि इंसान इस प्रकाश को नहीं देख सकता। स्पेस में इस प्रकाश को देखने के लिए वैज्ञानिक सैटेलाइट और टेलिस्कोप का प्रयोग करते हैं।

क्या पृथ्वी नष्ट हो जाएगी?

ब्लैक होल्स तारों, चंद्रमा और प्लेनेट्स को खाते हैं, यह धारणा गलत है। लोग यही सोचते हैं कि हमारी पृथ्वी ब्लैक होल में समा जाएगी, लेकिन यह भी गलत है, क्योंकि कोई भी ब्लैक होल सोलर सिस्टम के करीब नहीं है। यहां तक कि अगर ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के बराबर भी हो जाए, तब भी पृथ्वी ब्लैक होल के अंदर नहीं समा सकती। जब ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण सूर्य के बराबर होगा, तो ऐसी स्थिति में पृथ्वी और अन्य प्लेनेट्स ब्लैक होल के आॅरबिट (कक्ष) में होंगे, जैसा कि वे अभी सूर्य के आॅरबिट में हैं। वैज्ञानिकों ने धरती के सबसे करीब मौजूद एक ब्लैक होल की खोज की है। यह ब्लैक होल धरती से कुछ साढ़े 9 हजार मिलियन किलोमीटर दूर है।

एम 87

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ब्लैक होल का पता लगाया है, जो इतना बड़ा है कि हमारे पूरे सोलर सिस्टम को निगल सकता है। एम87 नामक इस ब्लैक होल का अकार 6.8 अरब सूर्यों के बराबर है। यह इस तरह की खोजी गई अब तक की सबसे विशालकाय संरचना है।

What is Inside the Black Hole in Hindi – Black Hole Kaise Banta hai

जब कोई विशाल तारा अपने अंत की ओर पहुंचता है तो वह अपने ही भीतर सिमटने लगता है। धीरे धीरे वह भारी भरकम ब्लैक होल बन जाता है और सब कुछ अपने में समेटने लगता है। इसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बहुत शक्तिशाली होता है। इसके खिंचाव से कुछ भी नहीं बच सकता। प्रकाश भी यहां प्रवेश करने के बाद बाहर नहीं निकल पाता है। यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है। ब्लैक होल के अंदर, केंद्र तक वो असीम घुमावदार होता है। यहां आकर समय और स्पेस दोनों अपना अर्थ खो देते हैं और भौतिक विज्ञान को कोई नियम काम नहीं करता। यहां पहुंचने पर क्या होगा, कोई नहीं जानता। हो सके दूसरा यूनिवर्स आ जाएगा या फिर नई दुनिया मिल जाएँ, यह भी रहस्य अब तक बना हुआ है।

ध्यान देनेवाली बात यह हैं की हर तारा ब्लैक होल नहीं बनता, ये सिर्फ बड़े बड़े तारों के साथ होता है, वो तारे जो साइज़ में सूरज से कहीं ज्यादा बड़े होते हैं और उससे बनने वाले एक ब्लैकहोल का साइज इतना बड़ा होता है कि उसमें लाखों सूरज समा जाएं।

Black Hole ki Khoj Kisne ki

मन जाता हैं 1783 में सबसे पहले ब्लैक होल की कल्पना जॉन मिचेल ( John Michell) नाम के फिलोसोफर ने की थी। इसके बाद अल्बर्ट आइंस्टीन ने पहली बार 1916 में सापेक्षता के अपने सामान्य सिद्धांत के साथ ब्लैक होल की भविष्यवाणी की। “ब्लैक होल” शब्द को 1967 में अमेरिकी खगोलशास्त्री जॉन व्हीलर द्वारा गढ़ा गया था, और पहली बार 1971 में खोजा गया था। महान भौतिकशास्त्री स्टीवन हॉकिंग ने ब्लैक होल से दुनिया को असल में मिलवाया। स्टीवन हॉकिंग ने ब्लैक होल के बारे में बहुत कुछ नया बताया और नया सिखाया।


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