बृजेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास और जानकारी | Bajreshwari Mata Temple, Kangra

Bajreshwari Mata Temple / बृजेश्वरी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में स्थित एक शक्ति पीठ है। माना जाता है कि इसी जगह पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यह तन्त्र-मन्त्र, सिद्धियों, ज्योतिष विद्याओं, तन्त्रोक्त शक्तियों, देव परंपराओं की प्राप्ती का पसंदिदा स्थान रहा है। यह मंदिर काँगड़ा क्षेत्र के लोकप्रिय मंदिरों में से एक है।

बृजेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास और जानकारी | Bajreshwari Mata Temple, Kangra

बृजेश्वरी देवी मंदिर की जानकारी – Bajreshwari Mata Temple Information in Hindi

बृजेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा शहर के समीप मालकड़ा पहाड़ी की ढलान पर उत्तर की नगरकोत में स्थित है। यहां माँ सती का बायां वक्षस्थल गिरा था। इसलिए इसे स्तनपीठ भी कहा गया है और स्तनपीठ भी अधिष्ठात्री वज्रेश्वरी देवी है। स्तनभाग गिरने पर वह शक्ति जिस रूप में प्रकट हुई वह वज्रेश्वरी कहलाती है।

इस मंदिर में देवी को प्रसाद तीन भागों- ‘महालक्ष्मी’, ‘महाकाली’ और ‘महासरस्वती’ के लिए विभाजित कर चढ़ाया जाता है। माँ बृजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन माँ की पांच बार आरती होती है। दोपहर बाद मंदिर के कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं।

मंदिर में देवी माँ एक पिंडी के रूप में पूजी जाती हैं। कहा जाता है कि पहले यह मंदिर बहुत समृद्ध था। इसे बहुत बार विदेशी लुटेरों द्वारा लूटा गया। ग़ज़नवी शासक महमूद ने 1009 ई. में इस शहर को लूटा और मंदिर को नष्ट कर दिया। मंदिर 1905 ई. में जोरदार भूकंप से पूरी तरह नष्ट हो गया था। 1920 में इसे दोबारा बनवाया गया।

यह मंदिर मध्यकालीन मिश्रित वास्तुशिल्प का सुन्दरतम उदाहरण है। सभामण्डप अनेक स्तम्भों से सुसज्जित है। इस मंदिर के अग्रभाग में प्रवेश द्वार से जुड़े मुखमंडप और सभामंडप के शीर्ष भाग पर बने छोटे-छोटे गुम्बद, शिखर, कलश और मंदिर के स्तम्भ समूह पर मुगल और राजपूतकालीन शिल्प का प्रभाव दीखता है। यह स्तम्भ घट पल्लव शैली में बने हैं।

पौराणिक कथा – Bajreshwari Mata History in Hindi

बृजेश्वरी देवी के धाम के बारे मे कहते हैं कि जब माता सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए, तब क्रोधित शिव उनकी मृत देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान ‘शक्तिपीठ’ कहलाया। मान्यता है कि काँगड़ा के इस स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था, इसलिए बृजेश्वरी शक्तिपीठ में माँ के वक्ष की पूजा होती है।

एक अन्य कथा के अनुसार जालंधर दैत्य की अधिवासित भूमि जालंधर पीठ पर ही देवी ने वज्रास्त्र के प्रहार से उसका वध किया था। इस दैव्य का वक्ष और कान का हिस्सा कांगड़ा की धरती पर गिरकर वज्र के समान कठोर हो गया था। उसी स्थान पर वज्रहस्ता देवी का प्राकट्य हुआ। वज्रवाहिनी देवी को शत्रुओं पर विजय पाने के लिए भी पूजा जाता रहा है।

वज्रेश्वरी मंदिर का गर्भगृह और पूजा Bajreshwari Mata Mandir in Hindi

वज्रेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में भद्रकाली, एकादशी और वज्रेश्वरी स्वरूपा तीन पिण्डियों की पूजा की जाती है। यहां पिण्डी के साथ अष्टधातु का बना एक पुरातन त्रिशूल भी है जिस पर दस महाविद्याओं के दस यंत्र अंकित हैं। इसी त्रिशूल के अधोभाग पर दुर्गा सप्तशती कवच उत्कीर्ण है।

वज्रेश्वरी मंदिर में देवी की पूजा प्राचीनकाल से तांत्रिक विधि से होती थी। वर्तमान में वज्रेश्वरी मंदिर में पूजा ब्रह्मïमुहूर्त में स्नान व शृंगार के साथ की जाती है और पंच मेवा का भोग लगाया जाता है तथा इसके पश्चात आरती होती है। मध्याह्नï चावल और दाल का भोग लगाकर आरती होती है। सायंकालीन आरती दूध, चने और मिठाई का भोग लगाया जाता है। यहां चैत्र और आश्विन नवरात्रों तथा श्रावण मास में मेलों को मनाने की प्रथा का अनूठा प्रचलन है।


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