अशोक स्तम्भ का इतिहास, जानकारी | Ashok Stambh History in Hindi

वैसे तो कई अशोक स्तम्भ (Ashok Stambh) का निर्माण किया गया था, पर आज शिलालेख के साथ सिर्फ 19 ही शेष बचे हैं। इनमें से सारनाथ का अशोक स्तंभ सबसे प्रसिद्ध है। इस स्तम्भ के शीर्ष भाग को सिंहचतुर्मुख कहते हैं। इस मूर्ति में चार भारतीय सिंह पीठ-से-पीठ सटाये खड़े हैं। अशोक स्तम्भ अब भी अपने मूल स्थान पर स्थित है किन्तु उसका यह शीर्ष-भाग सारनाथ के संग्रहालय में रखा हुआ है। यह सिंहचतुर्मुखस्तम्भशीर्ष ही भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके आधार के मध्यभाग में स्थित धर्मचक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में बीच की सफेद पट्टी में रखा गया है।

अशोक स्तम्भ का इतिहास, जानकारी | Ashok Stambh History in Hindi

इन स्तंभों में चार शेर एक के पीछे एक बैठा हुआ है। आज इसे राष्ट्र चिन्ह के रूप में अपना लिया गया है। यह चार शेर शक्ति, शौर्य, गर्व और आत्वविश्वास के सूचक हैं।

अशोक स्तम्भ का इतिहास – Ashok Stambh History & Story in Hindi

अशोक स्तंभ दरअसल उत्तर भारत में मिलने वाले श्रृंखलाबद्ध स्तंभ हैं। जैसा कि नाम से ही साफ है, इन स्तंभों को सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में तीसरी शताब्दी में बनवाया था। हर स्तंभ की ऊंचाई 40 से 50 फीट है और वजन कम से कम 50 टन है। इन स्तंभों को वाराणसी के पास स्थित एक कस्बे चुनार में बनाया गया था और फिर इसे खींचकर उस जगह लाया गया, जहां उसे खड़ा किया गया था।

अशोक के धार्मिक प्रचार से कला को बहुत ही प्रोत्साहन मिला। अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए उसने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया और संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार हुआ। धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपर्वू विकास अशोक के समय में हुआ। परंपरा के अनुसार उसने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया। इनमें से ऋषिपत्तन (सारनाथ) में उसके द्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूप का भग्नावशेष अब भी द्रष्टव्य हैं।

इसी प्रकार उसने अगणित चैत्यों और विहारों का निर्माण कराया। अशोक ने देश के विभन्न भागों में प्रमुख राजपथों और मार्गों पर धर्मस्तंभ स्थापित किए। अपनी मूर्तिकला के कारण ये स्तंभ सबसे अधिक प्रसिद्ध है। स्तंभनिर्माण की कला पुष्ट नियोजन, सूक्ष्म अनुपात, संतुलित कल्पना, निश्चित उद्देश्य की सफलता, सौंदर्यशास्त्रीय उच्चता तथा धार्मिक प्रतीकत्व के लिए अशोक के समय अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी। इन स्तंभों का उपयोग स्थापत्यात्मक न होकर स्मारकात्मक था।

स्तंभ के ही निचले भाग में बना अशोक चक्र आज राष्ट्रीय ध्वज की शान बढ़ा रहा है। बुद्ध धर्म में शेर को विश्वगुरु तथागत बुद्ध का पर्याय माना गया है। बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह भी है, यह हमें पालि गाथाओं में मिलता है। इसी कारण बुद्ध द्वारा उपदेशित धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त को बुद्ध की सिंहगर्जना कहा गया है।

ये दहाड़ते हुए सिंह धम्म चक्कप्पवत्तन के रूप में दृष्टिमान हैं। बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्खुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का आदेश इसिपतन (मृगदाव) में दिया था, जो आज सारनाथ के नाम से विश्विविख्यात है। इसलिए यहाँ पर मौर्यसाम्राज्य के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों को बनवाया था। (Pillars of Ashoka in Hindi)


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