Akbari Sarai in Hindi / अकबरी सराय, मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थित एक ऐतिहासिक इमारत हैं। इसका निर्माण अब्दुल रहीम खानखाना ने करवाया था। उस समय खानखाना सूबा खानदेश के सूबेदार थे। बादशाह जहांगीर के आदेश पर इसका निर्माण हुआ था। यह ईमारत उस ज़माने एक पांच सितारे होटल की तरह इस्तेमाल किया जाता था।
अकबरी सराय की जानकारी – Akbari Sarai Burhanpur, Madhya Pradesh in Hindi
बुरहानपुर के मोहल्ला क़िला अंडा बाज़ार की ताना गुजरी मस्जिद के उत्तर में स्थित मुग़ल युग की प्रसिद्ध यादगार अकबरी सराय है। जिसे अब्दुल रहीम खानखाना ने 1621वीं बनवाया था। जिस समय बादशाह जहांगीर का शासन था। तब इंग्लैंड के बादशाह जेम्स प्रथम के राजदूत सर टॉमस रॉ यहां आए थे।
सर टॉमस इसी सराय मे ठहरा था। यहां आकर उन्होंने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी को शुरू करने की मांग की थी। उस समय शहज़ादा परवेज़ और उसका पिता जहांगीर शाही क़िले में मौजूद थे।
इस सराय के पास एक सुंदर मस्जिद भी है, जो अच्छी हालत में नहीं है। सराय का मुखय द्वार लगभग 80 फुट ऊँचा है। प्रवेश द्वार काले पत्थर से बना है। इसके मध्य भाग मे पेशानी शीर्ष पर एक शिला लेख फ़ारसी भाषा में अंकित है, जिसकी लिखावट से पता चलता है कि, यह सराय 1027 हिजरी मे सूबेदार निर्माण विभाग के प्रबंधक लशकर ख़ाँ की निगरानी में कई वर्षों में बनवाई गई थी। प्रवेश द्वार के भीतरी भाग में दोनों ओर कमरे बनाये गये हैं, जहाँ से सराय की व्यवस्था का संचालन किया जाता था।
सराय के भीतरी भाग में प्रवेश करने के बाद पूर्व पश्चिम की ओर लगभग 400 कमरे बने हैं, जो आज भी अच्छी स्थिति मे हैं। इन कमरों का उपयोग गोदामों के लिए किया जा रहा है। इन कमरों की छत कुब्बेनुमा है। इस पर लोहे के बड़े- बडे पाइप लगाये गये हैं, जिनका प्रयोग वायु और प्रकाश के लिए किया जाता था। वर्तमान में यह सराय नगर निगम बुरहानपुर के अधीन है।
तिहासकार कमरूद्दीन फलक के अभिलेखों के अनुसार मुगलकाल की इस सराय के कमरों के गुंबद पर हवा के आवागमन के लिये छेद बने हुए हैं। इनमें भूसा भरकर बर्फ रखी जाती थी और उस पर नमक डालते रहते थे। कमरों के अंदर एक हत्था था जिससे ठंडी हवा को बंद-चालू कर सकते थे।
मुगलों के दौर में कभी एशिया की सबसे बेहतरीन फाइव स्टार होटल रही अकबरी सराय को पुराने स्वरूप में लौटाने का काम शुरू हो गया है। 400 साल पुराने इस सराय का जीर्णोद्धार 500 साल पहले अपनाई जाने वाली पद्धति से किया जा रहा है। प्रशासन को राज्य पुरातत्व विभाग से 25 लाख रुपए मिल चुके हैं।
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